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भूत होला का ?

by | Apr 5, 2014 | 2 comments

– ‍नीमन सिंह

बात १९८० के बरसात के समय के ह. हमरा खेत में धान रोपे खातिर बेड़ार में बिया उखाड़े लागल मजदूर बिया उखाड़त रहले सन.
बगल में भिंडा रहे पोखरा के एक तरफ, दोसरा तरफ मुरघटिया रहे. मजदूरन में एगो मजदूर ६ फीट लमहर बाकिर सिकिया पहलवान रहे. कुछ समय बाद ओकरा पैखाना लागल त उ जा के भिंडा पर पखाना क के ओही पोखरा में पानी छू लेहलस. फेर आ गइल बिया उखाड़े. दिन भर बिया उखडलस फेर अपना गावें चल गइल.
दोसरका दिन बिया उखाड़त रहे.फेर ओकरा पखाना लागल त जा के ओही भिंडा पर पखाना कइलस आ ओही पोखरा में पानी छुअलस.
खेत में आके बिया उखाड़े लागल. अचानके उ बेहोस हो गइल. ई देख के बाकि मजदूर बहुते घबरइले सन आ ओकरा के होस में लावे के जतन कइले सन. फेर उ बिया उखाड़े लागल.
तनिक देर बिया उखाड़त –उखाड़त फेर बेहोस हो गइल.
फेर सब मिल के होस में ले आके हमरा घरे ले अइलन सन कि देखि ना, ई भिंडा पर पखाना कइलस तब से बेर बेर बेहोस हो जाता. कहीं भूत त ना ध लेलस. (गाँव में भुतभावर ढेर लागेला.)
सभ कर राय से एगो ओझईतिन से देखावे के बिचार भइल त ओझइतिन मिसरीबो के बोलावल गइल.
मिसरी बो ओकरा के देखते–देखत अपना बस में क लिहली. ओकरा के खेलावे लगली. ओकरा से कई तरह के सवाल पूछसु जवना के उ जवाब देव. लेकिन ओकरा के छोड़ के जाए के कहाव त उ आँख तरेरे लागे आ कहे, ना हो ना छोडब एकरा के. काल्ह छोड़ दिहनी बाकिर आज ना छोडेब.
ई देख सुन के कुछ नवसिखियो लोग ओझइती करे लागल. दू जाना ओझा लोग जब मंतर पढ़ के कुछ करे लोग त उ आँख लाल क के तरनाये लागे.
फेर दुनू ओझा लोग मंतर पढ़ के चार जाना मजबूत जवान लोग से कहले, एकरा के कान्ह पकड़ के दबावऽ लोग. जब चारो आदमी ओकर कान्ह पकड़ के दबावे लागल त एगो अचम्भा भइल. उ आँख तरेर के चारो जाना के उठा के फेक देहलस जबकि ओकरा में एतना जान ना रहे.
मिसरी बो कहली, ‘इ लोग तहरा के ठीक क दी लोग. बड़का गुनी ह लोग.”
ई सुन के उ तरनाइल. के ह रे गुनी तनि आव त. ई सुन के उ ओझा लोग कहल लोग कि एङ ना भागी ई भूत. एकरा से भगवान के नाम लिआवल जाव आ मुँह पर कपडा बांध के पानी के छींटा दिआव त ई उजबुजा के भाग जाई.
फेर ओकर हाँथ पीछे बांध के ओकरा मुह पर कपडा बंधाइल आ पानी के छींटा दिआए लागल. तनिके देर में ऊ कहे लागल, जातानी-जातानी. ओझा लोग बोलल, बोल जय बजरंग बली. ऊ कहलस, जय बजरंग बली. फेर कहाइल जय श्री राम. जय श्री राम. उहो कहलस जय श्री राम. एह बीच ओकरा मुँह पर लगातार पानी के छींटा दीआत रहे. जवन कहल जाव ऊ उहे कहे. बीच–बीच में कहे जातानी–जातानी.
फेर लोग पानी के छींटा देहल बंद क के सूखल कपडा पहिनवलस ओकरा के. अचानके उ फेर बेहोस हो गइल आ गिर गइल. फेर मिसरी बो ओकरा के उठवा के बइठवली. आ उहे नाटक चले लागल. ऊ फेर गुरनाए लागल.
ओह समय हमरा गाँव में एगो रहले “तपेसर काका“. वहुते काफी बुजुर्ग आ भुतभाँवर के जानकार. लोग कहे लागल, ”ई मिसिरिया बो एकरा के एहिंङ खेलाई. केहू जाके तपेसर काका के बोलाव लोग उहे एकरा के ठीक करीहें”. ई बात सुन के सभे हाँ –हाँ कइल. तब हम गइनी तपेसर काका के बोलावे. काहे से कग हमरा खेते में उ बिया उखाडत रहे आ ई सब हमरे दुआर पर होत रहे.
“तपेसर काका हमरा खेत में एगो मजूर मेरहा के खेत में बिया उखाड़त रहल हा, उहे भिंडा पर मैदान कइलस ह त शायद ओकरा भूत ध लेले बा. मिसिरिया बो ओकरा के खेलावत बिया. तनी चलीं ओकरा के देख दीहीं”.
ई सुन के तपेसर काका कहले ,”ठीक बा तनी पलनिया में से हमार लाठी ले आवs.
हम लाठी ले आके दिहनी त उ हमरा संगे चले लगलन. कुछ देर में हमनी के दुआर पर पहुचनी सन.
जइसही तपेसर काका के मिसिरिया बो देखलस चुपेचाप पीछे से भाग गइल.
काका ओकरा के देखले. देखतहीं बोलले ,”ई एकरा के कहाँ से धलेलस ह.” जाके पीपर के दूगो टूसा आ तनिका सिंदूर लेआवs.
हम घर से सिंदूर आ पीपर पर से दूगो टूसा ले आ के उनका के दिहनी.
काका ओकरा बगल में बइठ के सबसे ओकरा आगे से हट जाए के कहले. फेर मंतर पढ़े लगलन. कुछ देर बाद ऊ दुनू पीपर के टूसा में सिंदूर लगवले फेर टूसा के नुकीला भाग के ओकरा दुनु कान में लगा के दूगो छोट-छोट खिपटा से दबा के मंतर पढ़े लगले. कुछ ही देर में ऊ चिलाए लागल,”जातानी–जातानी.” ई सुन के काका पूछले, ते के हई आ एकरा के काहे धइलिस हा? फेर ऊ बके लागल,”हम हईं नेटुआ पचास बरिस पहिले हमरा के चोर एही भिंडा पर मार देहले सन. तबसे हम एहिजे रहेनी. काकाजी पूछले, एकरा के काहे धइलिस हा ? त ऊ बोललस,”ई काल्हुओ भिंडा पर मैदान कइलस आ आजुओ. हम काल्ह त छोड़ दिहनी आज न छोडब.”
फेर काकाजी ओकर कान दबा के मंतर पढे लगले. त फेर उ चिलाए लागल, जातानी जातानी ……..
काकाजी कहले फेर ना नू पकड़बे. ऊ कहलस, ना. हम जातानी.
फेर काकाजी ओकरा सामने से लोग के हटवले आ जोर से ओकरा पीठ पर हाथ मार के ओकरा मुँह में सिंदूर डाल के छोड़ देहले.
चमत्कार भइल. ऊ जवन चार-चार जवानन के तरना के आँख लाल क के फेंक देत रहे, लुंजपुंज हो गइल. ओकरा घर वाला सहारा देके अपना घरे ले गइले सन.
दोसरका दिने ऊ सामान्य आदमी लेखा बिया उखाडत रहे. आ हम ई सब देख सुन के मतिभ्रम में बानी कि, का भूत होला का ?

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2 Comments

  1. नीमन

    धन्यबाद

  2. amritanshuom

    बहुत खूब, बहुत सुन्दर ….

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