माँगि आ कोखि

by | Apr 17, 2016 | 0 comments

– रामदेव शुक्ल

RamdevShukla
‘अकाट गरीबी में जाँगर फटकत जनम बिता देबू कि तनिएसा मन बदलि के अमीर हो जइबू? सोचि समुझि ल, अपने मालिक से बतिया लऽ, हमके बिहने बता दीहऽ।’

कहि के मौसी चलि गइली। कुसुम लगली अपने मन में बाति के मथे। मौसी कहतियॉ कि आन के बेटा अपनी कोखि से जनमावे खातिर हमरा आन मरद की साथे सूते के नाहीं परी। अस्पताल में जाके सूति जाए के परी। ओइजा डाक्टर हमरी कोखि में ओह मरद के बीज रोपि दीहें। नव महिन्ना तक हमरे खइले पियले के सब खरच-बरच उहे लोग उठाई । कवनो बेमारी होई त ओकर दवइयो उहे लोग कराई। सब जतन कइले कि बाद जब लइका जनमि जाई तब ओके उ लोग ले जाई जवने लोग से हमहन से कवनो चिन्हापरची नइखे। मौसी ईहो कहि रहलि बा कि लइका जनमवले के जवन पीरा बत्था होला, उहो हमरा नाहीं होखे पाई। डॉक्टर लोग पेट खोलि के लइका निकारि लीहें। एक अठवारा में हमार घाव सूखि जाई आ हम अपने घरे लवटि के मउज से रहे लगबि। चारि लाख रूपया हमहन के पहिलहीं मिलि जाई आ बकियवा चार लाख अस्पताल से निकलते मिलि जाई। जवन जिनगी आठ सैकड़ा के मोहाल बा ओके आठ लाख मिलि जाई त सब दुख दलिद्दर भागि जाई। कुसुम दिन भरि ईहे कुलि सोचत, समुझत, गुनत मथत, मनही मन लजात
सकुचात, गुदुरावन उठले पर मुस्कियात बिता दिहली।

बुझइबेनहीं कइल कि कब सॉंझि भइल कब अन्हार भइल आ कब शहर से हारल थकल दरसन आके उनके सोझा खाड़ हो गइले। उनकर चेहरा बतावत रहल कि एहू बेर उनके नोकरी नहीं मिलल। जल्दी से पानी ले आके उनके थम्हवली। दरसन मुँह हाथ धोवलें, तबले एक गिलास रस घोरि के ले अइली। रस पी के बइठले तब बिस्कुट आ चाय लेके आ गइली। दरसन पुछलें-बिस्कुट कहाँ किनलू हऽ। कुसुम मुसुकी मारिके बतवली कि मौसी आइल रहलि हऽ। उहे ले आइलि।

चाय पियत दरसन अचके चिहा गइलें। पुछलें-‘तहार लिलार त एइसन चमकि रहल बा जइसे मौसी कवनो गाड़ल धन लेआके तहके सँउपि गइली हऽ।

कुसुम लजा गइली। सोचिए ना पावें कि कइसे बताई? मूड़ी गाड़ि के धरती निहारे लगली। चाय पीके फेरू पुछलें त धधा के उनके अँकवारी में भरि के कसि लिहली। दरसन के दिनभर के थकान आ निराशा कम
होखे लागल। जब कुछ देर बाद बाँहि के कसावट ढील कइके कुसुम के मुँह दूनू हथेली में भरि के आँखि के सोझा कइलें त एक बेर फेरू चिहा गइले। उनकर दूनू ऑंखि से लोर बहत रहल। कुछु देरले पोल्हवले,
सुहुरवलें, तब जाके कुसुम के लेकार फूटल आ कवनो लेखा लजात लजात मौसी के कहल कुल्हि बात बता दिहली।

सुनि के दरसन त काठ हो गइलें। कुसुम उनके मुँह देखि के अदकि गइली। लगली समुझावे कि काहें जीव थोर करत बानी? कवनो सचहूँ हम मौसी के बाति माने के कहले बानीं? आरे, हमन के जइसे बानीं, ओइसे रहि के जूझते बानी जा। राउर पढ़ल लिखल बेकार नाहीं जाई। कहियो न कहियो काम-काज भेंटइबे करी।’

दरसन कुछ बोललें नाहीं। उठि के टहरे लगलें। कुसुम कुछ देर उनके टहरत देखत रहली। उठि के रसोई बनावे लगली। रसोई का बनइती, आलू के चोखा आ रोटी बनाके ले अइली।

दरसन कहलें- अपनो ले आवऽ साथे खाइल जाव।

साथे खाए के बात दरसन तब कहेलें, जब ढेर पियार उमड़ेला। अपनों थरिया परोसि के ले अइली। खात-पियत मन कुछ बदले लागल। दरसन कहलें – ऊ कवन मरद हऽ?
कुसुम कहली – मौसी कहत रहली हऽ कि मेहरारू सथवें आइल बाडें स। होटल में ठहरल बा लोग। मौसा ओही होटल में काम करेले। अँगरेज लोग आस्ट्रेलिया से आइल बा। मेहरारू के कोखि लइका जनमावे लायक नइखे। ओमें कवनो खामी बा। उ लोग मउसा से पूछल कि कवनो एइसन जवान लइकी बतावें जेकर बियाह भइल होखे। मरद मेहरी राजी हो जइहे त आठ लाख रूपया देई लोग। चारि लाख पहिले चारि लाख बादि में। मौसा घरे आके मउसी से बतवलें। मौसी कहले रहुवे कि उ सोचलसि कि आपन कुसुमिए काहें न तेयार हो जा? ईहे सोचि के आइल रहुवे। बाकिर बिहने आई तऽ हम बता देबि कि हम तेयार नइखीं।

राति दूनू परानी कि ऑखिए में बीतल। पछिले पहर उघाँई लगलि त कुछु अबेर के उठले पर दूनू जने एक दुसरे के सोझे नाहीं ताकत रहलें। कुसुम चाय पियत समय पुछली कि आजु कहीं जाए के होखे त सबेरवें रसोई बना दीं।
दरसन कहलें-नाहीं, आजु घरहीं रहे के बा।
कुसुम अपने मन के समुझावे लगली कि लालच पाप के बाप कहाला। हमरा एह राहि पर जाए के नइखे। दरसन आपन कागद पत्तर उलटत-पलटत रहलें।

तिजहरिया मौसी के अवाई भइल। आहट पाके कुसुम केवाड़ी खोले चलली त दरसन कहले – सोझे इनकार जानि करिहऽ। तनि हमहूँ मौसी से बतिआइबि।
कुसुम केवाड़ी खोलि के मौसी के बोलवली. भित्तर ढुकत मौसी उनकी ऑखि में ताकि के जानल चहली कि का भइल। कुसुम महँटिया दिहली आ उनके चाय पानी के फिकिर में परली। दरसन मौसी के पैलग्गी
क के उनकी लगहीं बईठि गइलें। कहले – ‘तनि हमहूँ के बताईं का माजरा बा।’

मौसी सब हाल छितिरा-छितिरा के बता दिहली। अपनी ओर से ईहो कहि दिहली कि कुसुम हमरी लग्गे रहिहें। गॉव जवार कसबा में केहू का कुछ पता नाही चली। अस्ट्रेलिया से आइल साहेब-मेम आपन लइका लेके हवाई जहाज से फुर्र हो जइहें। तहन पॉच इहां चैन के बंसी बजइहऽ।

जाए के तेयार भइली मौसी त दरसन कहलें – ‘ठीक बा। कुसुम के हम समुझाइबि। ई राउर बात मनिहें।
मौसी अपनी कुसुमी के सुबुद्धि के कामना करत बिदा भइली।

सब कुछ ओही लेखा भइल, जइसन होखे के चाहीं। समय पर आपरेशन भइल। लइका आस्ट्रेलिया गइल। कुसुम अगोरत रहली कि घाव सूखि जाव त कुछु दिन बिता के घरे लवटें। एक्के गो तकलीफ रहे कि उनकी
छाती में दूध उतरे लागल रहे। मौसी से कहली। मौसी डाक्टर से पुछली। डाक्टर कहले कि अबहिन गारि के निकालि दीहल करें। चार दिन बादि हम दवाई देबि त दूध उतरल बन्द हो जाई। दरसन आपन नवका
रोजगार जमावे के जोगाड़ में जुटि गइल रहलें। अपने घर के एह लेखा बनवावे लगलें कि सामने चारि ठे दोकानि निकलि जाँ सँ आ केराया पर उठा दीहल जाव। एह नव दस महिन्ना में उनकर बढ़ंती देखि के लोग
चिहाए लागल त सब के जबाब मिले कि सरकार पढ़ल लिखल जवानन के पुरहर लोन दे रहल बा। कुछ घर घुमनी ईहो चरचा चलावें कि कुसुम कहॉं परा गइली? दरसन बता दें कि शहर में मौसी किहाँ रहि के कंपूटर
सिखि रहल बाड़ी। साल भरि के ट्रेनिंग लिहले कि बाद एइजा आके लइकिन के कंपूटर सिखइहें। औरो बहुत तरह के काम काज पढवइया लइकिन के सिखवे के पलान बनि रहल बा। दरसन के एह परचार से लइकी एतना खुश रहे लगलिन सऽ कि घरघुमनी लोग के मुँहवे बन्हा गइल।

तिसरका दिने डॉक्टर के गाड़ी मौसी के कुवाटर पर हाजिर भइल। तुरंते मौसी के बोलावा रहल। मौसी गइली त डॉक्टर साहेब कि समने आस्ट्रेलिया वाला साहेब मेम साहेब खिरखिनी एइसन लइका के चुपवले में
जुटल रहले। डॉक्टर साहब मौसी से बतवले कि लइका बाहर के कवनो दुध पियते नइखे। रातिदिन रिरियात रहता। रोवलहू के टूब नइखे। ओइजा के डाक्टर लोग के कहाव रहे कि महतारिए के दूध पची। साहेब मौसी के हाथ में दू लाख रूपया के गड्डी थमाके हाथ जोरि लिहलें। उनकी ओर से डाक्टर साहब मौसी के बतवलें कि कुसुम एह लइका के आपन दूध पियावें तब्बे एकर जान बची। मौसी कि सथवें लइकवा के लिहले मेमवो आ गइलि। कुसुम के छाती मुँहें में लिहले के बाद लइकवा चुपा गइल। एहर कुसुम के ऑंखि से लोर बहे लागल अउर लइकवा के महतारियो सुसुके लगलि। मौसियो मोहा गइली।

कुछुए देर बाद लइकवा पीके अघा गइल आ गहिर नींद में पहुंचि गइल। मेम ओके उठा के अपनी छाती से लगावल चहली। जइसे जरत लुत्ती से छुवा गइल होखे ओह लेख लइका चिचियाए लागल। मौसी ओके
लेके आके फेरू कुसुम की कोरा में दे दिहली। तुरंते लइका उॅघा गइल। पहिले साहेब मेम साहेब सोचले रहले कि दूध पियले की बाद लइका अपने होटल में राखी लोग, बाकि कुसुम के छोड़िके लइका रहबे नाहीं
करे। डाक्टर सब हालि जनलें त कहलें – ‘छव महीना लइका महतारी के दूध पर पालींजा त जिनगी भरि कई तरह के रोग बियाधि से बचल रहि सकेला। साहेब के धन दौलत के कमी रहल नाहीं। होटल में रहि के
लइका पोसवावल ओह लोग खातिर तनिको गढ़ू ना रहे। मौसी फेरू कुसुम के समुझवली कि रतियो के लइकवा के अपनिए लगे रखलो पर अउर रूपया देबे के तेयारी बा। कुसुम अपनहूँ लइकवा के साथे रहले
में अजबे तरह के सुख सवाद पावे लगली। उनके घाव भरि गइल। घूमे फिरे लगली। दरसन बीच बीच में अवते रहें। कुसुम से बता दिहलें कि उनके कंपूटर सिखले के बात सुनि के आई जानि के कि लवटि के
लइकी कुल्हिनि के सिखइहें पढ़इहें सगरी बहुत खुश भइल बाड़ीसन। कुसुम कहली कि सचहूँ हम कंपूटर सीखि लेई त बहुते लाभ हो सकेला। एहर लइका के देखत रहले के साथ लिहले ओकर माईबाप लोग
कुसुम कि लगहीं बनल रहे। पहिले दिन साहेब के देखिके कुसुम मौसी से कहली कि इनकी सामने हम लइका के दूध कइसे पिआई। तय भइल कि साहेब ओह कमरा में तब्बे आवे जब लइका दूध पी लिहले
होखे। साहेब अगिले दिन आपन कपड़ा के उठवले अइलें। जबले लइका दूध पियलसि, साहेब बइठका में अपने कंपूटर पर कुछ काम काज करत रहलें।

मौसी पुछली – ए साहेब ई का हऽ?
साहेब कहलें – एके गोद में राखि के काम करे वाला कंपूटर कहले जाला।
मौसी पुछली – एके कुसुम सीखि सकेले?
साहब कहलें – काहें नाही? सीखि सकेली।
मौसी कुसुम से कहली। उ पुछली-के सिखाई?
मौसी कहली – दरसन से कहब, उहे कवनो के लगा दीहें।

अगला दिने साहेब ओइसने एगो कंपूटर कीनि के कुसुम खातिर लेले अइलें। मेम साहेब कुसुम के देके कहली कि उनही खातिर ई किनाइल ह। एसे सीखि लीहें। खोलि के दुचारि बात बतवली। तले साहेब कमरा में झंकलें आ देखलें कि बिछौना पर लइका अपना हाथगोड़ फेंकि फेंकि खेलि रहल बा। बगल में कुसुम मेम साहेब से कंपूटर सीखि रहल बाड़ी। मुसुकी मारत साहेब कबो एह लोग के कबो बेटा के निहारत रहले।

डॉक्टर साहेब कुसुम के आ लइकावा के बोलवा के जॉच कइलें। दूनू जने के वजन लियाइल। कुसुम के खाना खोराक के लमहर लिस्ट बना के कहले कि जबले लइका दूध पियत रही तबले तहार खना पीना एह हिसाब से चली। कुसुम हाथ बढ़वली तबले मेम साहेब अपने हाथ में ले लिहली। सॉझ से पहिले सब समान लदले फनले एगो आदिमी आ गइल। पाछे पाछे साहेब-मेम। मौसी के समुझावल लोग कि अब से कुसुम के खाना-पीना एह लेखा चली। नवका समान बनवले में साहेब-मेम मदद करे लगलें। मौसी कहली – आज आपोलोग एही जा खाना खाई। बिना कवनो ना नुकुर के मानि लिहल लोग। मौसी, साहेब, मेम, कुसुम सब एक्के साथे खाइल। मौसी वाली तरकारी एक चम्मच लेके मेम चिखली आ लगली सीसी करे। मुँह लाल हो गइल। ऑखि नाक से पानी गिरे लागल। मुँह नाक धोवली, तब्बो सिसियाते रहली। मौसी सेब काटि के दिहली। धीरे धीरे चुभुलावे लगली। साहेब त रोटी पर मक्खन लगा के उसिनल आलू खा लिहलें।

दरसन अइलें। देखते कुसुम चिहा के कहली – आपके चेहरा काहे सुखि गइल? खात पियत नइखीं का?
कहलें- ‘खात पियत बानी, बाकि तहरे हाथ के खइले में जवन लज्जत मिलेला, ऊ त ना नू मिली।

कुसुम बना के हलुवा खियवली। खाना खोराक के नया हाल चाल बतवली। आपन कपड़ा देखवली। कुछ खटर पटर कइली आ बतवली कि मेम साहब रोज सिखा रहल बाड़ी। खा पी के लवटे लगलें, तले लइका के रोवाई सुनि के कुसुम ओहर लपकली। ओके गोदी में उठा के छाती ओकरे मुँह में धरवली आ ओही जा से बोलली – तनी लइकवा के देखाईं का?
दरसन कहले-‘नाही हो। हम का करब ओके देखि के? आ कहते बहरा निकड़ि गइलें।

कुसुम उनके मन के भाव समुझे लगली। लइकवा के चेहरा मोहरा लाल भभूका फरियाए लागल। ओकर ऑखि निलछहूँ लागे आ भउँहवा ललछौंह। सोचली, ठीके भइल दरसन एके नाही देखलें। उनके कलेस होइत।
एक दिन मेम साहेब कहली कि सॉझ के खाना सब लोग ओह लोगन के होटल में खाई। मौसा अइलें त सबलोग होटल से आइल बडकी गाड़ी में बईठि के होटल पहुँचल। साहेब के कमरा में कुछ देर बइठले कि बाद बड़का हाल में चले के भइल। कुसुम कहली – ‘हम लइका छोड़ि के नाहीं जाईबि। ओके कोरा में लिहले गइली। सैकड़न लोग बइठल रहे। कवनो मेज की लगे चारि जने, कवनो की लगे छव जने, कवनो बड़हन रहल त दस बारह जने। रोशनी एतना कम रहल कि कुछ सुझते नहीं रहे। खूब धीरे धीरे बड़ा रसगर कवनो बाजा बाजत रहल। मेज का लगे पहुंचि के बइठले पर लउकल कि हर मेज पर बीच बीच में मोमबत्ती जरावल बा। ओकरे चारू ओर ललटेन के सीसी लागल बा। बइठते में पर पलेट पर पलेट सजाए लागल। खाए पीए के समान ले आके उर्दी पहिरले बैरा लोग राखत रहल। कुसुम गोदी में लइका लिहले चुपचाप बइठल रहली। मौसी कहली – कुछ खा बेटी।
कुसुम कहली – मौसी हमके कमरवे में पहुंचा द। बाबू के लेटा के ओही जा खा पी लेबि।

साहेब सुनले त उहो एह लोगन के सम्हारत सहेजत अपने कमरा में अइले। पाछे पाछे बैरा खाना पानी ले अइलें। साहेब कहलें कि कुसुम एइजा खालें, मौसी हाल में चलें।
कुसुमो कहली – मौसी तें चलि जो। हमरा कौनो दिक्कत नाहीं होखी।

मौसी साहेब की साथे चलि गइली। कुसुम बिछौना पर लेटि के लइका पियावे लगली। जब हिक भरि दूध पी के लइका उँघा गइल त उठि के कुछ खाए लगली। दस मिनट बाद एगो ठकठक सुनि के केवाड़ी खोले उठली। खोलली त देखली कि साहेब साथे बडहन बडहन पलेट लिहले बैरा खाड़ रहल। पाछे हटली। बैरा मेज पर समान सजावे लागल त कुसुम ओसे कहली – ई सब उठा ले जा। एतना के खाई।
साहेब अपने हाथ से कुछ समान चम्मच से एगो पलेट में राखे लगलें। बैरा से बाकी सब समान ले जाए के कहलें। कुसुम खड़ा रहली। अगोरत रहली कि साहेब निकड़ें त बइठें। साहेब दूनू हाथे से कुसुम के कान्हें पर से घेरि के कुर्सी पर बइठा दिहलें आ कहले – ‘खाइए।’
कुसुम फेरू उठि गइली आ कहली – ‘आप जाइए यहाँ से । मैं खा लूंगी। लपकि के केवाड़ी खोलि के कड़ी नजर से ताकि के कहली – ‘जाइए। ’

साहेब चुपचाप निकड़ि गइलें। केवाड़ी बंद क के बइठली आ लगली सोचे कि एह लेखा हमके पकड़ि के जवने तरे दबवलसि हऽ ओसे तऽ एकरे नेति में खाम सोझे लउकि रहल बा। खैर, आपन मन बस में रही त आन के नेति कुनेति से का बिगड़ी। कुछ खाई के लइका के बगल में सुति रहली। कुछ देर बाद उहे गाड़ी एह लोगन के घरे पहुंचा दिहली स।

छव महीना में कुछुए दिन बाकी रहल। लइका बकइयां खींचे लागल। ओकरा खाड़ होखे खातिर एगो गोल गोल घूमे वाली गाड़ी आ गइलि। बिच्चे में खाड़ करा के ओकर हाथ किओर पकड़ा दिहल जाव। ओही
के साथे लइका खड़ा होके डगरे लागे। कबो गाड़ी में चारू ओर लागल कपड़ा में लद्द दे बइठि जा। कबो खड़ा हो जा। अपनी ओर ताकत माई बाप के देखि के किलकारी मारि के हॅंसे लागे। साहेब मेम सब लोग दिन भर ओही के आगे पाछे लागल रहे। साहेब कौनो हरकत फेरू नाहीं कइलें।

एक दिन का भइल कि घर से मौसी आ मेम कुछ देर खातिर बजारे चलि गइलीं। साहेब कंपूटर पर आपन काम करत रहलें। ओह लोगन के बाहर निकरते साहेब कुसुम की कमरा में आ गइलें। बेटा के कोरा उठा के चूमें लगलें। कुसुम से कहले – ‘यह किसका बाचा है?
कुसुम कहली – आपका है।
साहेब कहलें – और इसका माँ कौन है?
कुसुम कहली – मेम साहब।
साहेब कहलें – नहीं। तुम्हारा पेट से जनमा है। तुम माँ है। हमारे बेटे की माँ तुम है। तो तुम हमारा क्या हुआ?
कुसुम बिना कुछ बोलले धड़ाम से केवाड़ी खोलि के बहरा निकड़ि गइली। ओही समे मौसी आ मेम आ गइलीं। कुसुम आंखी में आगी भरि के कहली – मौसी! हे साहेबवा के समुझा दे कि ई हमार कोखि किनले रहल। हमार माँगि हमरा सवाँग के हऽ। ओकरे ओर ताकी त एकर आँख फोर देबि।


भोजपुरी दिशाबोध के पत्रिका पाती के मार्च 2016 अंक से साभार


शीतल सुयश, राप्ती चौराहा,
पो0 आरोग्य मंदिर,
गोरखपुर – 273003

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(3)


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(4)

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(7)
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