सुकुलजी..रउआँ बहुते बेजोड़ बानी जी

by | Aug 31, 2012 | 2 comments

Prabhakar Pandey

– प्रभाकर पाण्डेय “गोपालपुरिया”

आजु हमरा सुकुलजी के बहुते इयादि आवता. जब हमरा खूब हँसे के मन करेला त हम सुकुलजी के इयादि क लेनी. सुकुलजी के एइसन-ओइसन मति समझीं सभे. सुकुलजी त बहुते काम के चीज हईं. सुकुलजी त ओमे के हईं की उहाँ का बालू में से तेल निकालि देइबि.
सुकुलजी जब घरे रहबि त फटही बंडी अउर लुंगी पहिनी के, कांधे पर गमझा लटका के, नंगे गोरे पूरा गाँव का जवार घूमि देइबि पर उहे सुकुलजी जब कवनो रिस्तेदारी में जाए के तइयार होखबि त गवनही मेहरारू कुल की तरे सजबि, सँवरबि. 
पता ना सुकुलजी के बाबूजी उहाँकी बिआहे में कोट सिउआ के सही कइनी की गलती, इ हम ना कहि सकेनी पर बिआहे की 20-22 साल बादो आजुओ सुकुलजी के कोट ओहींगा चमकता. हँ इ अलग बाति बा की ओमे-किसिम-किसिम के बटाम लागि गइल बा. अब रउआँ सोंचति होखबि की इहाँ कोट के बखान काहें कइल जाता, त हम इ कहल चाहतानी की जब सुकुल जी कहीं पहुनाई में निकलबि त इ आपन बिहउती कोट अउर बिहउती मोजा-जूता जरूर पहिनबि.
सुकुलजी के अगर रऊआँ उनकी गाँव में देखि लेइबि त इहे कहबि के कवनो भकभेल्लर ह (भकभेल्लर हम एसे कहनी हँ की हम सुनले बानी की सुकुलजी की बिआहे में जब सुकुलजी अपनी ससुरारी में खीर खाए बइठने त ओ गाँव के जनाना बुढ़-पुरनिया एगो गीत सुरु कइल सब…ई भकभेलरा दामाद कहाँ से हमरी इहाँ आइल रे, बरओ पाकल, मोछियो पाकल, लागता इ भागलपुर के भागल… ई भकभेलरा दामाद कहाँ से हमरी इहाँ आइल रे…) चाहें हँसमतिया के भाई ह पर उहे सुकुलजी जब गवनहीं मेहरारू कुल की तरे बनि-छनि के रिस्तेदारी में जाए के निकलिहें त लागि की कवनो दुबिआहा अब पहिले-पहल अपनी ससुरारि जाता.
सुकुलजी के इयादि आवते हमरा हँसी काहें आ जाला इहो बता देतानी अउर गारंटी दे तानी की रउओं आपन हँसी रोकि ना पाइबि. खैर हम त सुकुलजी के तीन-चार गो खेला देखले बानी ओमे से रउआँ सब के अबे एक्के गो सुनाइबि, काँहे कि सगरी सुना देहलहुँ पर मजा किरकिरा हो जाई.
हम सुकुल जी के जबन घटना बखाने जा तानी उ टटका बा, कहले के मतलब इ बा की पिछलहीं गरमिए में उनकर इ खेला हम देखनी.
बिआह-सादी के दिन रहे अउर हमहुँ नोकरी पर से छुट्टी ले के गाँवे गइल रहनी. रउआँ सब के त पते बा की बिआह-सादी की दिन में केतना नेवता गिरेला. अगर घर में 3-4गो सवांग होखे लोग तबो सबके एक-आध दिन आंतर दे के कवनो तिलक, बिआह आदि में जाहीं के परेला. हमार बाबा कुछ नेवता लिआ के हमरी आगे ध देहने अउर कहने की बाबू छाँटि ल की तूँ ए में से कगो में जइबS, वइसे तोहरी ऊपर बा ना त झुनझुन-मुनमुन के भेजि देइबि चाहें हमहीं चलि जाइबि. हम नेवतन के निहारे लगनी त का देखतानी की ओ ही में सुकुलोजी के नेवता बा. सुकुलजी के नेवता देखते तS हम ओ के खोलि के लगनी पढ़ें. सुकुलजी की छोट बहिन के बिआह रहे अउर एकदिन की बादे तिलक रहे. अब हम काहे के अउर नेवतन के देखीं, हम दउरि के बाबा की लगे गइनी अउर कहि देहनी की सुकुलजी वाला तिलक अउर बिअहवो में हमहीं जाइब. बाबा कहने नया रिस्तेदार हउअन अउरी तिलके में घरभरी के चले के कहले बाने. तोहार बाबूओजी आ रहल बाने बिहने सबेरे, ओ तिलके में जाए खातिर. फेर बाबा कुछ सोंचि के कहने ठीक बा तूँ अउर तोहार बाबूजी चलि जइहS जा. हमरा त अंदर से लड्डू फूटत रहे, हम कहनीं ठीक बा.
दूसरा दिन हम बाबूजी की साथे दुपरिअवे में सुकुलजी की इहाँ पहुँच गइनी. साँझिखान तिलक पहुँचि गइल लइका की दुआरे पर. अरे इ का तिलक त चढ़ि गइल पर तिलक चढ़ले की बादे अचानक हल्ला सुनाए लागल. सुकुलजी के बाबूजी अउर लइका की काका में लेन-देन के ले के कुछ बतकही होत रहे. हमहँ उहाँ पहुँचनी. सुकुलजी त पहिलहीं से उहाँ बँसखटिया पर मुँह लटका के बइठल रहने. सुकुलजी के बाबूजी खूब तेज आवाज में कहने की हमार सामान वापस क दS…तहरी घरे हमरी लइकिनी के बिआह ना होई. लइको के काका जोर से कहने की घर में से इनकर सामान ले आके वापस क द सन. इ बहुत चालू बाभन बाने सन. कहतानेसन कुछ अउर तथा करतानेसन कुछ अउर. सुकुलजी के बाबूजी सुकुलजी पर घोंघिअइने, “इ सब, एही सारे मउगे के कइल-धइल हS…का तय कइले बा..का नाहीं केहू के बतवले नइखे..अउर पूछले पर कहत रहल हS की हम बानी न सब संभारी लेइबि..तूँ टेंसन मति लS.”
अरे इ का ए दादा. सुकुलजी की बाबूजी की एतना कहते सुकुलजी त लगने भोंकार पारि के खूब जोर-जोर से रोवे. एइसन लागे की कवनो मेहरारू गवने जा तिया. सब लोग एकदम सांत हो गइल पर सुकुलजी आपन रोवल चालू रखने अउर बीच-बीच में रुँआँसे बोली में बोलत जाँ, ” इ हमार बाप नइखन, कसाई बाने. हर जगहिए कुछ न कुछ नाटक क के सब काम बिगाड़ि देने. खरमतियो कि बिआहे में इ एहींगा नाटक कइले रहनें..ऊँ…ऊँ…ऊँ……..” अरे अब त सुकुलजी के बाबूजी के ठकुआ मारि देहलसि, उ एकदम से चुप हो गइने, उनकर मुँह झँउआ गइल. एकरी बाद सुकुलजी उठने अउर रोवते लइका की काका से हाथि जोड़ि के कहने, “निकलवा दीं महराज, हमार समान. हमार बापे एइसन बा. राउर कवनो दोस नइखे.ऊँ…ऊँ…ऊँ……..”
सुकुलजी के रोवाई से सब गमा गइल रहे, सोंचे पर मजबूर हो गइल रहे पर हमार हँसी रुके ना…काँहे कि हमरा पता रहे की अब सुकुलजी की दाँव से केहू बँची ना. लइका के काका केतनो हुँसीयार होखों पर उनकरा अब फँसहिंके बा.
सुकुलजी के रोवाई अब अउर तेज होत जाव….बीच-बीच में कहल करें…अब हमार बहिन कुँआरे रही…जब बापे एइसन बा…त का कइल जा सकेला. अब त सुकुलजी की अगल-बगल में कईगो रिस्तेदार जुटी के समझावे लागल रहे लोग…बाबू..चुपा जा…ओने लइका की कको के समझावे खातिर कइगो मेहरारू (लइका के बुआ, ईया) घर में बाहर आ गइल लोग. लइका के ईया लइका की काका से कहली, “जा ए मास्टर, तोहरा इजति के कवनो लाज नइके. दुआरे पर हित-नात के बोला के एतना नाटक कS देहलS. देखबS सुकुल बाबू केतना रोवताने.”
अब हमरा पूरा यकीन हो गइल रहे की सुकुलजी अपनी खेला में कामयाब हो जइहें, काहें कि लइका के फुआ, माई, ईया सबलोग एकट्ठा हो के सुकुलजी के चुप करावे लागल अउर लइका की काका के डांटे लागल. लइका के कको ठकुआ गइल रहनें. हमार हँसी अब रूकले मान के ना रहे. काहे के सामान अब घर में से बाहर आओ, जे जहें रहे उहवें गमा गइल रहे. तिलकहरू लोग आराम से खाइल-पियल. अब लइका की काका के तनको हिम्मत ना रहे की एको सब्द बोलें. घर में जा के एकदम से गमा गइने. एकरी बाद बिआहो एकदम निमने-निमने बीत गइल. बिआह बितले की बाद हम सुकुलजी से कहनी की महराज राऊर कवनो जबाब नइखे, जहाँ सुई ना घुसी उहाँ रउआँ हाथी घुसा देइबि, काम परले पर गदहवो के बाप बना लेइबि. सुकुलजी की चेहरा पर कुटिल मुस्कान तैरि गइल.
बाद में पता चलल की सुकुलजी लइका की ओर से जेतना फरमाइस भइल रहे सब मानि ले ले रहने…पर देखा देहने लइका की काका के अँगूठा.. जय हो..


-प्रभाकर पाण्डेय, हिंदी अधिकारी, सी-डैक, पुणे

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2 Comments

  1. प्रभाकर पाण्डेय

    शुकुलजी के फोन आइल रहल ह..खाली एतने कहि के फोन काटि देहने हँ..की बाबू..तूँ घरे आवS तब तोहार खबर लिआई…खैर अब जवन होई उ देखबि..पर ए बात के खुशी बा की इंटरनेटिया जबाना में गाँव-जवार के लोग..अँजोरिया पढ़ता..अउर फोन पर धमकावता…हा..हा..हा..

  2. दिवाकर मणि

    हा हा हा… भाई पांडे जी! बहुत मजेदार बखान कईले बानीं अपने ई शुकुल जी के… मजा आ गईल…

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