सुमना के बाबा

by | Nov 29, 2014 | 1 comment

– देवेन्द्र कुमार

DevendraKumar
सउंसे घर में कोहराम मच गइल. सुमना के बाबा के मिजाज राति खानि एकाएक खराब हो गइल. सभे लोगन के चेहरा प हवाई उड़त रहे. अब का होई? अतना राति के ऊहां के अस्पताल ले जाए के परी. काहेंकि एह घड़ी तो कवनो डाक्टर बुलवलो प ना आई. इहे बोलिहें कि मरीज के जल्दी से ले के आ जाईं. सब से भारी बखेड़ा त ई रहे कि ड्राइवर धरमो कार गैराज में पार्क क के अपना घरे चल गइल रहे. खैर पापा फोन क के धरमा के बोलउलन. बड़ा मुश्किल से ऊ अतना राति के आवेला तइयार भइल. असल में ऊ अबहिं थोड़ही देरी पहिले त गइल रहे.

खैर केहू तरह से धरमा आइल. बाबा के कार में लेटा के अस्पताल भेजल गइल जहां ऊहां के तुरंते दाखिल कर लीहल गइल. बाबा के हालत एकदमें नीक ना रहे. बुझात रहे कि अब शायद ऊ बचिहें ना. घर के सभे लोगन के चेहरा बित्ता भर लटकल रहे. डॉक्टर साहेब बाबा के एगो सूई लगवलें आउर ईलाज तुरंते शुरू हो गइल.

पापा, मम्मी आउर बड़का काका परेशान दिखत रहन. सभे एक-दोसरा के दिलासा देत रहन. बड़का काका घबड़ा के डॉक्टर से पूछलन, “इनकर हालत कइसन बा डॉक्टर साहेब?”

डॉक्टर साहेब एगो मशीन के गौर से देखत कहलन, “आपन नाता-रिश्तेदारन के बोलवा लिहीं. कम से कम इहां के अंतिम दर्शन त कर लिहें स. काहें कि इहां के हालत एकदमें नाजुक लागत बा. इहां के दिल के धड़कन के देखीं ना. ई अब बंद होखहीं के बा. उमिरो त इहां के बेसी हो चुकल बा.”

डॉक्टर साहेब बड़का काका के ओह मशीन में भकभुक करत एगो लकीर देखावत रहलें. बड़को काका बहुते बैचैनी से ओह मशीन के देखत रहले. भितरे-भीतर ऊ बाबा खातिर प्रार्थनो करत रहलें.

तब ले पापा आपन सेलफोन से सभे रिश्तेदारन के बारी-बारी से ई खबर देवे लगलें कि बाबा के बचे के अब उम्मीद एकदमें नइखे. जदि इहां से मिले के बा त तुरंत लाइफलाइन अस्पताल आ जाईं, ना त इहां से अंतिम मुलाकातो ना होखी.

नाना-नानी, मौसी-मौसा, बुआ-फूफा जेही ई खबर सुनल सभे हड़बड़ा गइल आउर राते-बिराते बाबा से मिले खातिर चल दिहले. अब त घर के सभे लोग के मोबाइल घनघनाए लागल. बाबा के देखभाल करे के बजाय अब घर के सभे लोग इहे बतावे में बिजी हो गइलें कि कवना अस्पताल में बाबा के भरती कइल गइल बा. ओहिजा आवे-जाए खातिर रूट केने से बा. कवना वार्ड में एडमिट बाड़न आउर कतना नंबर बेड पर बाड़न.

बड़का काका के इहे चिंता सतावत रहे कि ऐह बरखा-बूनी के मौसम में लकड़ी कहवां से लावल जाई. काहें कि बाबा के दाह-संस्कार खातिर लकड़ी के जरूरत त पड़हीं के बा. ऊ अपना बड़का अधिकारी के फोन करत रहलें कि डिपो के खोलवा के लकड़ी के इंतजाम कर देवे के बा ना त काल्हु भोरे-भिनसारे परेशानी हो जाई. बेचारा अधिकारी जइसहीं ई बात सुनलें आपन माथा ठोक लिहलें. अब अतना राति खानि डिपो कइसे खुली आउर लकड़ी कइसे भेजल जाई? खैर ! बाबा के दाह-संस्कार के बात रहे त लकड़ी के इंतजाम त करहीं के रहे कवनो तरह से.

जइसे-तइसे क के डिपो में सूतल स्टोरकीपर के जगावल गइल, ओकरा से लकड़ी निकलवावल गइल आउर ट्रक में लाद के घरे भेजल गइल. आपन सभे जान-पहचान, संघतिया, नाता रिश्तेदारन के खबर पेठावे खातिर पूरन नाऊओ के बोलवा लीहल गइल. सिद्धि महाराजो के खबर क दीहल गइल कि काल्हु बाबा के दाह संस्कार के बखत ऊहां के जरूरत त परहिं के रहे. ऐह से रउवा सुबहे तइयार रहब.

तब ले खबर सुन के बुआ जी आउर फूफाजी अपना पूरा परिवार समेत आ गइलें. बाबा के अंतिम जातरा खूबे धूमधाम से निकले के चाहीं. ऐह प विचार होखे लागल. एगो खूब नीक बैंड बाजा होखे के चाहीं. फटाको होखे के चाहीं. फूल माला वाला के आर्डर दे दिहल गइल अच्छा क्वालिटी के कफन होखे के चाहीं.

पूरन नाऊओ आपन अस्तूरा आउर कैंची वाला बक्सा ले के हाजिर हो गइल रहे. शमशान घाट के लगे फार्म हाउस प लागल पंपिंग सेटो खातिर डीजल के पूरा व्यवस्था कर लिहल गइल. ताकि सभे लोग के नहाए फीचे में आसानी होखे. पापा कच्चा बांस खातिर परेशान रहलें. आखिर बाबा के रंथी बनावे खातिर कच्चा बांस के जरूरत त परहिं के रहे. पापा आपन विभाग के चपरासी महरू के कच्चा बांस के इंतजाम क के रखे खातिर कह दिहलें रहलें.

एही सब इंतजाम में सउंसे राति गुजर गइल. सभे लोग बदहवास जइसन नजर आवत रहन. तबहइं चमत्कार हो गइल. बाबा के सांस फेरि से चले लागल. ऊ बोललें, “हमरा के तू सब कहवां ले आइल बाड़ऽ? चलऽ चलऽ हमरा के आपन घरे ले चलऽ.”

अब त सभे पर भर घइला पानी पड़ गइल. सभे इंतजाम धरल के धरल रहि गइल. अनमोलवा चुटकी लिहलस, “बाबा त डब्ल्यू॰डब्ल्यू॰ई॰ चैंपियन अंडरटेकर जइसन उठ के बइठ गइलें. अब त इहों के डेडमैन के उपाधि से विभूषित करहीं के परी.”

सुमना ओकरा के डँटली, “तू चुप कर. जे जी में आवेला बकत रहेला. बाबा खातिर कहूं अइसन बात कइल जाला.”

अगिला दिन बाबा के मसान घाट का बजाय बाइज्जत घरे ले आइल गइल. सभे के चेहरा अकुला गइल रहे. बाकिर इहे संतोष रहे कि बाबा बाच गइलें. ना त आज तऽ कहानी कुछ आउरे होइत.

संजोग से ओहि दिन धरमा के सास गुजर गइली. कुल्हि लकड़िया ओहि में काम आ गइल. घर के नौकर रतना जब सुबहे-सुबह काम प आइल त ऊ देखलस कि घर में अतना गहमागहमी बा. अतना सारा लोग काहे खातिर आइल हवन. असल में ओकरा त कुच्छो मालूम रहे ना कि काल्ह राति खानि का गुल खिलल रहे. ऊ अचंभा में पड़ के बाबा से पूछलस, “बाबा, ई अतना-अतना फटाका कब फूटी?”

अब त बाबा रतना प बरस परलें. बोललन, “जब तू मरबे त फूटी आउर का.”

रतना बेचारा आपन जइसन मुंह ले के रह गइल आउर चुपचाप अपना काम-काज में लाग गइल. अतना सारा लोगन खातिर चाय-नाश्ता के इंतजाम आउर खाना के इंतजाम कइल ओकरा बड़ा मंहगा परत रहे. खैर घर में आइल मेहमान लोगन के आवभगत में पापा, मम्मी आउर घर के सभे लोगन एक गोड़ पर खाड़ रहलें. सब के खाए-पीए के इंतजाम में कवनो कमी ना होखे के चाहीं, सभे एकर खास खयाल रखत रहलें.

अब त सुमना के आपन बाबा के खास खयाल रखे के परत रहे. घर के सभे लोगन के कहऊं आवे-जाये के होखत रहे त बेचारी सुमने के बाबा का लगे रहे के परत रहे. चाहिओ के ऊ कहूं ना जात रहे. बाबा के टैम प नाश्ता, खाना, दवाई जे देवे के परत रहे. बाबा के कमरा में एगो रूम हीटर अलगे से लगावल गइल रहे ताकि ऊहां के ठंडा ना सतावे. ब्यूटी, सनी सँ बाबा के मन बहलावते रहत रहन ताकि ऊहां के कवनो तकलीफ ना होखे.

एक दिन फेरू बाबा के तबीयत बिगड़ गइल. संजोग से बुआजी के बेटी कनु आपन नाना से मिले खातिर आइल रही. बाबा त एकदमें बेसुध जइसन परल रहले. कनु मम्मी से कहली, “लागता कि अब त नाना के अंतिम घड़ी आ गइल बा. अइसन करत बानीं मामी जी कि इहां के गंगा जल पियावतानी. हो सकेला कि इहां के मुक्ति मिल जाई.”

एगो कटोरी में गंगा जल ले के तुलसी पत्ता डाल के ऊ एगो छोट चम्मच से बाबा के पियावे के कोशिश कइली.

बाबा के जइसहिं तुलसी पत्ता के गंध लागल त उठ के बइठ गइलें आउर कनु प बरस परलें. लड़खड़ात आवाज में इशारा क के बोललें, “हमरा के मुआवे चाहतारे तू? तहार बियाह हमहिं न करइले रहीं. ना त तहार बियाहो ना होखत रहे. बियाह के सभे खर्चा हमहीं न दिहले रहिं. ना त तू अबहीं ले कुंवारिए बइठल रहतिस आउर तू हमरा के गंगा जल पिया के मारे चाहऽ तारे. अरे! हम अबहिं मरे वाला नइखीं. बुझाइल?”

बेचारी कनु आपन मुंह लटका के तुरंते वापिस चल गइली. आउर दोबारा ना अइली.

अब त बाबा के चलते घर के रंगाई-पोताईओ ना होवत रहे. काहें कि का पता कवना घड़ी बाबा ……….. आउर कुल्हि खर्चा दोबारा ना करे के पर जाई.

पापा अब बाबा के बारे में केकरो खबर नइखन करत. जवना घड़ी अइसन हालत होखी त पहिले बाबा के ठीक से हिला-डुला के देख लीहल जाई तबहिं केकरो खबर दिहल जाई. ना त बेकार में सब लोग आ जालन आउर उनका ऊपर हजारों रूपिया खरच करे के पड़ जाला. अनमोल से ओकर साथी संघतिया जबे मिलस त ई जरूर पूछस कि तहार अंडरटेकर के का हाल बा?


अनेके संस्थानन से प्रशस्ति पा चुकल देवेन्द्र कुमार जमशेदपुर पुलिस अधीक्षक कार्यालय में रीडर हईं. नालंदा जिला के मूल निवासी होखला का बावजूद भोजपुरीओ में रचना करीलें. इहाँ के लिखल हिन्दी आ भोजपुरी रचना अनेके पत्र पत्रिकन में प्रकाशित होखत रहेला.

पता:
फ्लैट नं 1, क्वार्टर नं 2,
कदमा, जमशेदपुर – 831 005
पूर्वी सिंहभूम (झारखंड)

मोबाइल नं- 9905572035
kumardevendra1961@gmail.com
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1 Comment

  1. amritanshuom

    सुन्दर भाव……

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