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बसंत ऋतु से पहिले पतझर आवेला. पुरान पतई झर जाली सँ आ नया नया पतई निकले लागेला त कहल जाला कि बसंत आ गइल. बाकिर आजु ऋतु का बारे में ना बतिया के हमरा पत से पतुरिया के चरचा ले अपना के बन्हले राखे के बा. काहे कि पिछला दू बेर से पत से पतुरिया के चरचा छूट जात रहल ह.

आजु जब पत से पतुरिया के चरचा उठावे के सोचनी त पतझर दिमाग में आ गइल आ संगही धेयान में आइल कि पत से पतझर के कतना बढ़िया संबंध ह. पत झर जाव त नीमन नीमन फेंड़ पौधा ठूँठ हो जाले. वइसे त पत के माने होला मान प्रतिष्ठा इज्जति आ सोंची त पेड़ पौधा खातिर पतई ओकर पत जइसन होखेला. पतई झर जाव त पेड़ नंगा हो जाई आ आदमिओ के इहे हाल होला. एहीसे बनल बा पत उतारल, पत लीहल, पत राखल. औरत के पति एह पत से जुड़ल होले कि ना से त विद्वाने बता पइहें बाकिर बतकुच्चन खातिर ओकरो के पत से जोड़ल जा सकेला. जे औरत के पत राखे आ उतारे दुनू के हक राखेला उहे नू पति होखेला. अब अलग बाति कि आजु का जमाना में महिला सशक्तिकरण वाला लोग एह पर बवाल मचा सकेला. बाकिर ई ओह लोग के रोजी रोटी होला आ बहुते लोग एही काम के कमाई खाला. पता ना कतना लाख एनजीओ देश में बाड़े जे कवनो ना कवनो मुद्दा ले के जीयत बाड़े आ जीयत खात बाड़े. एह लोगन के मकसद कबो ओह मुद्दा के समाधान करे के ना होखे काहे कि जबले मुद्दा जीही तबले ओह लोग के रोजीरोजगारो जिंदा रही. पोलियो देश से खतम हो गइल त पता ना कतना लोग के रोजी रोटी खतम हो गइल. अब उ लोग कवनो दोसरा बेमारी का फेर में लागल होखीहें भा मनावत होखीहें कि कवनो ना कवनो जगहा एकाध गो केस फेरू भेंटा जाव आ पाँच सात साल फेरू कमाए खाए के जोगाड़ बन जाव.

मामिला फेरु पत से बहके लागल बा एहसे बात के रुख मोड़ के लवटल जाव पताका प. पताका प्रतीक से बनल कि पत से एहु बात प विद्वाने चरचा कर पइहें. बाकिर हम त कहब कि पत देखावत, फहरावत कपड़ा के पताका कहल जाला. एह पताका का फेर में राजनेतो लागल रहेलें कि उनुकरे पताका फहरो आ दोसरा के पताका के पतन हो जाव. पतन माने पत+न. पत गिरल त पतन हो गइल. वइसे गिरला के पतन थोड़ही कहल जाला ओकरा ला त गिरल ढिमलाइल ढहल जइसन शब्दन के इस्तेमाल होला. बात के ढेर लमारे चलीं त पतरो के पत से जोड़ दीं बाकिर तब लोग हमरे पतरा बाचे लागी. पतरा पन्नो के कहल जाला बाकिर खास क के ओह पन्ना के जवना प ग्रह नक्षत्रन के चाल चलन के पूरा जानकारी उतारल होले. आ चाले चलन से पत रहेला भा उतरेला. पतराइल माने दूबर भइल, पातर हो गइल, भा कम पड़ गइल. दाल पतराए त ओह में पानी डाल के अउरी पतरा दिहल जाला आ एह पतरइला से ओह पतरइला के समाधान हो जाला जवन कम होखला प कहाला.

बाकिर अतना कुछ कहला का बादो हमरा बुझात नइखे कि पतुरिया के पत से कइसे जोड़ीं. पतुरिया वेश्या के कहल जाला खास क के ओह वेश्या के जे नाचे गावे का साथे आपन धंधा चलावेले. अब पुतली से पतुरिया बनल कि पतुरिया से पुतली बाकिर हम त इहे कहब कि जब औरत आपन पत तूड़ देव त पुतुरिया हो जाले आ मरद आपन पत तूड़े त पतित.

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By Editor

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