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कहल गइल बा कि बीत गइल तवन बात गइल. बाकिर का ई सचहू एतना आसान होला? बीते ला त चुनाव बीतिए नू गइल बाकिर ओकर फल अब खट्टा निकले भा मीठ पता ना कतना साल ले खाए के पड़ी. जीते वाला त जीत गइल बाकिर कुछ लोग जीतिओ के ना जीतल. सपना सपने रहि गइल. ना त अबकी त अस कुकुरबझाँव देखे के मिलित कि चेंगड़ी के बाजार झूठ पड़ जाइत. फेंकू आ पप्पू के बीच के लड़ाई त सभे देखल बाकिर हम अझूरा के रहि गइनी. सोचे ला मजबूर हो गइनी कि फेंकल के लोके के चाहत रहुवे कि लपके के. लोकल आ लपकल के बीच के फरक समुझल जरूरी हो गइल. अतना त रउरो मानब कि एहिजा लोकल के मतलब हावड़ा बण्डेल लोकल वाला अंगरेजी लोकल के ना हो के भोजपुरी लोकल के होखत बा. भोजपुरी लोकल के मतलब कैच कइल होला. अगर अंगरेजी में समुझे के होखे त बात बहुते आसान हो जाई. लोकल माने कैच आ लपकल माने कैप्चर भा प्लक. बाकिर अंगरेजी में समुझवला से बतकुच्चन के सगरी आनन्दे खतम हो जाई से हम भोजपुरिए में बतकुच्चन करब.

हँ त फेंकल चीज के लोकल जाला. आ लोके खातिर जरूरी होला कि रउरा ओकरा सीध में रहीं. एने ओने फेंकाव त दउड़ि के ओकरा सीध में जा के लोके के कोशिश करे के होला. लोके वाली चीझु रउरा तरफ आवेला जबकि लपकला में रउरा खुदे ओह चीझु का तरफ जाए के पड़ेला. जइसे कि फेंड़ पर टंगाइल फल लपक के तूड़ल जाला अगर उ लपके का सीमा में होखे. कुछ लोग लपके में एतना माहिर होलें कि तनी मनी नजर एने ओने भइल ना कि उ राउर कवनो सामान तड़ीपार कर दीहें. अइसनका लोग के हाथलपक कहल जाला. अंगरेजी के शब्द क्लेप्टोमनियक एही हाथलपक लोगन ला बनल बा. उनका ओह सामान के जरूरत बा कि ना, उ सामान के कवनो दाम बा कि ना एह सबसे हाथलपक आदमी के कवनो मतलब ना होखे. ओकरा त बस लपके के होला.

पिछला चुनाव में हर तरह के खेल देखे के मिलल. फेंकू के खासियत इहे रहुवे कि उ जतना तेजी से फेंकत गइले ओतने तेजी से लोकहू में माहिर रहलन. लपकस त ना बाकिर लोके में असकतियास ना. मरदवा में अस खासियत रहल कि अपना ओर फेंकल हर ढेला के फूल बना दिहलें आ ओकरा के अपना माला में गूंथ के पहिरत गइलें. फेंकू पर फेंके वाला परेशान होत गइले आ हर बेर नया नया शब्दबान छोड़ के देखलें. हर वार खाली गइल आ विरोधी अपने फेंकल ढेला से घवाहिल होत गइलें.

सीखे वाला ला ई चुनाव बहुत कुछ सीखा गइल. अरबा सही रहला का बावजूद कुनबा डूबत गइले सँ. अरबा हिसाब किताब के कहल जाला. बैंक में धइल धन धइले रहि गइल आ बिना बैंक वाला जीत गइले. चुनाव सीखा गइल कि बैंक का भरोसे राजनीति करे के दिन बीत गइल. अब कुछ करे के पड़ी ना त अगिला चुनाव में लोग अइसन राजनीति करे वालन के ‘करनी ना धरनी, धियवा ओठ बिदोरनी’ मान के नकार दीहें. करम के धन कामे आई बैंक वाला धन छितिर बितिर हो के छितरा जाई आ पते ना चली कि केने छिटा गइल.

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By Editor

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