सुबरन को ढूंढ़त फिरे कवि कामी और चोर (बतकुच्चन – 199)

by | Jul 25, 2016 | 0 comments

भोजपुरी के एगो महान कवि रहलन महेन्दर मिसिर. उनुका के पूरबी गीतन के जनक मानल जाला. मिसिर जी के लिखल पूरबी अपना शृंगार रस का चलते बहुते लोकप्रिय भइली सँ. ओहि गीतन में से एगो गीत रहुवे – अंगुरी में डँसले बिया नगिनिया रे ननदी, भईया के जगा द. भईया के जगा द, तनी बईदा बोला द, रसे रसे उठेले लहरिया रे ननदी. एकरा साथही याद आवत बा हरीन्द्र हिमकर जी के लिखल खण्डकाव्य “रमबोला” के कुछ पंक्ति जवना में तुलसी दास के बरनन करत लिखल गइल बा – छलके जब काम कलश तन में सिमटे दुनिया अंगूठी नग में. आँखिन के जोत बढ़ल होला, नहतर पर घाव चढ़ल होला. एहू में काम वेदना के जिक्र कइल गइल बा. अब काम वेदना आ काम निहोरा के अलगे अलगे कवि गीतकार अलगा तरह से परोसेलें. कुछ लोग के परोसा सलीकेदार होला मिसिर जी आ हिमकर जी का तरह आ कुछ लोग के परोसा फूहर हो जाला. एकरा चलते भोजपुरिया लोगन में कबो कबो नगिनिए के लहर का तरह टीस उठत रहेला आ लोग फूहरपन का खिलाफ लाठी ले के धावे लागेला.

अब ओह लोगके के बतावे कि ‘सुबरन को ढूंढ़त फिरे कवि कामी और चोर’. एके सुबरन के मतलब कवि, कामी आ चोर खातिर अलग अलग होला. कवि बढ़िया वर्ण खोजत चलेला अपना रचना खातिर, कामी के बढ़िया वर्ण, देह के रंग चाहेला, आ चोर के सुवर्ण सोना. इहे हालत भाषा में सलीका आ फूहर के होला. एक आदमी के जवन फूहर लागे हो सकेला कि दोसरा के ऊ बहुते सहज लागत होखे. भाषा से समाज बनेला बाकिर समाजे भाषा बनावेला. अगर बोले सुने वाला फूहर बाड़े त भाषा फूहरे सहज लागी उनके. वइसहूं फूहर आ अश्लील भा वल्गर के मतलब एके होला डिक्शनरियन में – गँवार, असभ्य, देहाती, अश्लील.

श्लील लोग खातिर जवन श्लेष्मा होले तवना के अश्लील लोग खखार कहि के काम चला लेला, अब केहु के बाउर लागत होखे त लागो. वइसहीं फूहर लोग के दुअर्थी के बात करे वाला सभ्य शिक्षित लोग जब वइसने कवनो बात करेला त ओकरा के अलंकार कहल जाला, नाम ह श्लेष अलंकार. वाह रे समाज आ राउर श्लीलता. हमार पोंटा हम फेंक दीहिलें आ रउरा अपना नेजल डिस्चार्ज के रुमाल में सोख के राख लीलें! रउरा श्लील, हम गँवार आ फूहर!

बहुते लोग हमरा से नाराज रहेलें कि हम फूहरता के समर्थन करत रहीलें त ओह लोग के हम बार बार इहे बतावल चाहीलें कि भोजपुरी बोले लिखे वाला लोग आजुओ गाँवे देहात में बा, भा कवनो शहर में मजूरी करत. धंधापानी में लागल आपन रोजगार करे वाला लोग त कबे भोजपुरी के भुला दिहले बा. याद रखले बाड़ें इहे फूहर ट्रक-टेम्पो-टैक्सी ड्राइवर भा खलासी मजदूर. दिन भर के हारल थाकल मनई के देवी गीत नीक ना लागी ओकरा त उहे चाहीं जवना से ओकरा तसल्ली मिल जाव आ नींद आ जाव. अब उहे के मतलब रउरा उहे निकालीं भा उहे, ई रउरा सभे पर बा. हमहन के श्लेष अलंकार इहे ह.

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(1)


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सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
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सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
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सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
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सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


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एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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