अगराइल आदमी आ जरत अगरबत्ती (बतकुच्चन – १४६)

by | Feb 6, 2014 | 0 comments

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अगराइल आदमी आ जरत अगरबत्ती मे कुछ एक जइसन खोजल जा सकेला का़? आजु एकरे पर आपन दिमाग खराब करे के बा.

अगर के एगो माने यदिओ होला. अब यदिओ के मतलब समुझावे के पड़े त भोजपुरी पढ़ला के जरुरत ना होखे के चाहीं. कई बेर कहल गइल बा कि भोजपुरी के सुभाव संस्कृत से बहुत कुछ मिलेला, ओतना जतना हिन्दीओ के ना मिले. एहिजा अलग अलग संदर्भ मे शब्द के रूप बदलत रहेला जवन कि हिन्दी पढ़े का आदत का चलते कई बेर दिमाग अझुरा देला. हँ त बात होत रहुवे अगर के. अगर एगो सुगंधित लकड़िओ के कहल जाला आ एही से बनल अगरबत्ती होला, जवन सुगंध फइलावेला. आ इ सुगंध उ खुद जर के फइलावेला. जल भोजपुरी मे जर हो जाला. हिन्दीओ मे जल के दू गो मतलब होला पानी आ जरल. जल भुन के खाक भइला के कवनो जरूरत ना होखे के चाहीं. बहुते लोग कहेला कि आदमी अपना दुख से ओतना दुखी ना होखे जतना दोसरा के बढ़न्ती देखि के. याद बा कि पढ़ाई का बेरा आपन कम नंबर ओतना दुखी ना करत रहे जतना संघतिया के मिलल अधिका नंबर.

अगर आ अगरइला मे का संबंध होला से त मालूम नइखे बाकिर अगराइल शब्द हिंदी मे ना होला. ओहिजा एकरा ला कहल जाला आत्ममुग्ध, जे अपने पर, अपना उपलब्धि प, अपना बढ़न्ती प खुश होखे. इ खुशी जबले मने मन होला तबले दोसरा के पता ना चले बाकिर जब इ खुशी चेहरा प, हाव भाव मे झलके लागे तब अगराइल हो जाला. लोग कहेला कि अगरात बा, अगराइल बा, अगरा ह. एह अगरइला मे ओकरा मन के खुशी ओही तरह पसरे ला जइसे अगरबत्ती के सुगंध. बाकि अगराइल बढ़िया ना मानल जाव काहे कि एह अगरइला मे कहीं ना कहीं अपना प अपना बारे मे घमंडो झलके लागेला. देश के राजनीति मे एह घरी अइसनका लोगन के जमात बढ़ल जात बा. जस जस चुनाव नियराता तस तस एह लोग के अगराइल बढ़ल जात बा. मानत बानी कि जबले अपना जीत के गुमान ना होखे तबले केहु चुनाव ना लड़े. सभका लागेला कि जनता के बड़हन समर्थन उनका हासिल बा आ एही हासिल प उनुकर अगराइल टिकल होला. बाकिर अगराइल आदमी अगरबत्ती का तरह गँवे गँवे सुनगत जाला. एह बाति के पता ओकरो ना होखे आ जबले पता लागेला तब ले बहुते देर हो जाला.

अगर आ अगरा के चरचा का बाद सोचतानी कि अगरीओ के चरचा करत चलीं. एह अगरी के अलग अलग जगह अलग अलग नाम से जानल जाला. अगरी लोहा भा लकड़ी के टुकड़ा होला जवन दरवाजा बन्द करे खातिर लगावल जाला. अगरी के कहीं कोंढ़ी कहल जाला त कहीं किल्ला. किल्ला मतलब बड़हन किल्ली. हालांकि किल्ली दरवाजा के दू पल्ला के बीच में लागल होला जबकि अगरी एह तरफ से ओह तरफ ले दुनू पल्ला के रोकले होला आ चौखट मे फँसावल जाला. सिटकिनी के भोजपुरी मे प्रचलित रुप छिटकिनी जवन बस स के छ बनला के चलते होला. सही सिटकिनी होखी कि छिटकिनी एह पर फैसला रउरे सभे करीं. सिटकिनी दरवाजा के सटा के राखेला जबकि छिटकिनी ओकरा के छिटके ना देव. रहल बात सिटकिनी के त एह घरी बहुते लोग के बहुत कुछ सटकल बा. उ लोग चाहत बा सटक जाए के बाकिर सटके के मौका नइखे मिलत. अब ओह लोग के मिले भा ना मिले हम त सटकत बानी. बाकिर जब बता के हटब त सटकल कइसे कहाई? सटकल त चुपचाप खिसक लेबे के नू कहल जाला.

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