अर्थ, अनर्थ आ कुअर्थ के चरचा (बतकुच्चन – 180)

by | Dec 6, 2014 | 0 comments

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अर्थ का बिना सबकुछ व्यर्थ होला. चाहे ऊ कवनो बाति होखो भा आदमी. कुछ दिन पहिले हम कहले रहीं अर्थ, अनर्थ, कुअर्थ वगैरह के चरचा के बात. फेर बीच में कुछ दोसर बाति निकलत गइल बाकिर ऊ बाति बिसरल ना रहुवे से आजु ओहिजे से शुरू करत बानी.

रहीम के दोहा सबके याद होखी कि ‘रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून / पानी गए ना उबरे मोती मानुष चून.’ अर्थो एक तरह के पानिए ह. एकरो बिना सब कुछ सून हो जाला. अर्थ के एक माने मतलब होला आ दुसरका माने धन. अब एह बीच माने आ मतलब के फेर दिमाग में घुसे के कोशिश करत बा बाकिर तनी रूकब माने आ मतलब के बाति बतियावे से. पहिले अर्थ से निपट लिहल जाव. अरथिआवे वाला लोग हर बात के अरथ निकाल लेलें, इहाँ ले कि ओहू बात के जवना के कवनो अरथ ना होखे. अब एह फेर में बेअरथी बात के कुअर्थ निकल जाव त केकर दोष! आ जब कुअर्थ निकली त हो सकेला कि अनर्थो हो जाव.

अर्थ सभका के समरथ – समर्थ – बना देला. आ गोसाईंओ जी लिख गइल बानी कि ‘समरथ के नहीं दोस गुसाईं’. जेकरा लगे अर्थ होखो ओकरा त समरथ होखहीं के बा आ ओकरा के दोषी कहे-बतावे के बेंवत केकरा लगे बा!

धन वाला अर्थ के कई गो रंग होला बाकिर उजर आ करिया दू गो रंग सबले प्रचलित होला. एह दुनू रंगन का बीच भुअरा धन के बात कमे होला. आपन धन उजर नाहियो होखो त लोग ओकरा के करिया ना माने. बहुत भइल त भुअर भले मान लेव लोग. एकरा के एहू तरह कह सकीलें कि आपन धन कबो करिया ना होला. घूसखोरो कहेलें कि अइसहीं घूस ना भेंटाव, ओकरा ला बहुते ऊँच-नीच, झूठ-साँच करे के पड़ेला. अब एह मेहनत के कमाई के ऊ करिया कइसे कहसु. धन वाला अर्थे का तरह बातो वाला अर्थ के कई रंग हो सकेला आ जब खास तरीका से कहल जाव त ओकर दू गो अर्थ होला. एक त असल आ दुसरका ओकरा के लीपे-पोते वाला अर्थ. दुअर्थी बोल खातिर भोजपुरी खास क के बदनाम हिय काहे कि आम भोजपुरी में दुअर्थी बातन के प्रचलन बहुते सामान्य तरीका से होखल करेला. अब एह बाति पर केहू अनर्थ करे के मत सोचे लागे.

अनर्थ माने होला त बिना अर्थ वाला बाकिर अनर्थ हमेशा कवनो ना कवनो मतलब से कइल जाला. बिना मतलब के अनर्थ ना होखे. अलग बाति बा कि एह अनर्थ के भुगते वाला के ना बुझाव कि ओकरा साथे अनर्थ काहे भइल भा होखत बा. संयु्क्ताक्षरन से बचे वाला भोजपुरी में अर्थ के अरथ हो जाला आ अर्थ निकालल अरथियावल कहल जाला. बाकिर बेवहार में देखल जाव त अरथियावल कवनो बात के ओह अर्थ निकाले के कहल जाला जवन अर्थ कबो रहले ना रहे. समर्थ समरथ हो जाला आ व्यर्थ बेअरथ. बाकिर बेअरथ से बेकार वाला भाव साफ ना हो पावे. व्यर्थ बेकारो होला आ बेअरथो. अर्थी जरूर अर्थ से बनल होखी बाकिर अबहीं याद नइखे आवत कि अरथी पर चढ़ल आदमी के अरथ खतम हो गइला का चलते अरथी बनल आ कि रथ से बेरथी – अनरथी – हो जाए से. अब एह पर त देखे के पड़ी, संदर्भ खोजे के पड़ी से एह पर फेर कबो. बाकिर चलत-चलत माने आ मतलब से निपट लिहल जरूरी लागत बा.

माने आ मतलब दुनू के माने आ मतलब एके होला. ई अलग बात होला कि मतलब का पीछे कवनो अउरि मतलब हो सकेला बाकिर माने का पाछे कवनो दोसर माने ना होखे. माने बस माने होला जबकि मतलब मतलबी माने. मतलब निकाले वाला के मतलबी कहल जाला बाकिर माने निकाले वाला के मानी केहू ना कहे. मान मानी वाला के कहल जाला माने निकाले वाला के ना. आ एह तरह से हम मतलबी भले होखी मानी ना हईं. आजु के मतलब पूरा हो गइल आ एहिजे खतम करत बानी आजु के बात.

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