झड़ुआवल आ बहारल के चरचा (बतकुच्चन – 175)

by | Oct 27, 2014 | 0 comments

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पिछला अतवार के बाबा लस्टमानंद से भेंट हो गइल. बाबा के आदेश भइल कि हम बतकुच्चन में झाड़ू पर चरचा करीं. बाबा के त ना बतवनी बाकिर रउरा के बता देत बानी कि पिछला साल अगस्त में एगो कड़ी में एकर चरचा कइले रहीं. आजु ओकरे में कुछ बात फेरू दोहरा देत बानी. बड़ बूढ़ के आदेश हमेशा सिर माथे राखे के संस्कार मिलल बा हमनी के.

हँ त पहिले झाड़ू आइल कि पहिले झाड़? झाड़ शब्द से झाड़ू बनल कि झाड़ू से झाड़? छोट पौधन के शाखा के झाड़ कहल जाला आ ओही झाड़ से झाड़ू बनेला. हालांकि जवन नारियल वाला झाड़ू होला तवन त पतई से निकलेला. बाकिर झाड़े के काम आवे का चलते उहे झाड़ू हो गइल. एगो झाड़ू कूंची होला. कूंची माने कि ब्रश. मुलायम पतइयन के रेशा से बनावल झाड़ू के कूंची कहल जाला. अइसहीं खरहरा होला. रहर के झाड़ से खरहरा बनेला आ ओकरो से झाड़े के काम लिहल जाला. खरहरा एगो अउरी चीझु के कहल जाला जवना से घोड़ा के पीठ रगड़ल जाला. गाँव देहात में सहन भा माटीवाला आंगन झाड़े खातिर रहर के डंठल से बनल खरहरा के इस्तेमाल होला जवन माटी त ना बहारे बाकि सब गंदगी कूड़ा करकट जरुर बहार देला. ओह से महीन सफाई करे के होखे त झाड़ू लगा लीं आ ओहू ले महीन करे के होखे त कूंची. बाकिर एह बीच बहरनी छूटल जात बा. बहरला से निकलल कूड़ा करकट के बहारन कहल जाला आ ओकरा के निकाले वाला साधन होले बहरनी.

तब हम इहो कहले रहीं कि, बहारल आ झड़ुआवल एके काम होखला का बावजूद दू तरह के भाव जतावेला. गलतबयानी करे वाला भा गलत काम करे वाला आदिमी के झड़ुआवल जा सकेला, बहारल ना. शायद एह से कि झड़ुअवला का बाद झड़ुआवल आदिमी का मन में आनन्द ना जागे. बाकिर घर आँगन त झड़ुआवल ना जाय, झाड़ल जाला. एहसे साफ बा कि झाड़ल आ झड़ुअवला में फरक होला.

हँ, इहो माने में हमरा कवनो उरेज नइखे कि झाड़ू के इतिहास हमरा नइखे मालूम आ बाबा लस्टमानंद हमरा से झाड़ू के इतिहासो जानल चहले. कब झाड़ू बनल, कब के पहिला बेर झाड़ू चलावल एह सवाल के जवाब में हम बस कवनो कवि के कहल बात दोहरा सकीलें कि ‘वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान’. खेले खेल में कवनो लड़िका कवनो झाड़ उठा के जमीन पर खेलल होखी आ बाप महतारी जब देखले कि एकरा से जमीनो साफ हो गइल त फेर ऊ ओकरा के अपना लिहले होखीेंहे. तब कवनो पेटेन्ट त मिलत ना रहे कि उ झाड़ू के पेटेन्ट करा लेतें. से झाड़ू के इतिहास ना त लिखा पावल ना केहू पढ़ पावल.

बाबा मोदी के झाड़ू के चरचा त कर गइले बाकिर उनुका फाउन्टेनपेन के चरचा ना कइलें. लाख ना त कुछ हजार के जरूर होखी उ कलम आ ई दाम हम मोदी के कलम के नइखीं बतावत ओह कलम के बतावत बानी. मोदी के कलम नीलामी पर चढ़े त हो सकेला कि कुछ करोड़ में बिका जाव. जइसे कुछ बरीस पहिले दिदिया के पेंटिंग बिकाइल रहे कुछ करोड़ में. कहले गइल बा कि हीरा के दाम पारखी बता सकेला दोसर केहू ना. ओही तरह एगो झाड़ू लेके केजरीवालो चलल रहले आ एगो झाड़ू ले के मोदी. मोदी के जागल भा ना बाकिर झाड़ू के त भाग जरूरे जाग गइल बा.

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