धरमपत्नी त होला बाकिर धरमपति काहे ना होखे (बतकुच्चन – 185)

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दिमाग में अगिला बतकुच्चन के ताना बानबुनत जात रहनी तबले रमचेलवा भेंटा गइल. देखते पूछलसि, ए बतकुचन, बतावऽ धरमपत्नी त होला बाकिर धरमपति काहे ना होखे. बूझ गइनी कि बाबा लस्टमानंद से कुछ सीख के आइल बा आ उनुके कहल बात पर हमरा के अजमावल चाहत बा. अब बाबा ठहरले एकबाल वाला आदमी. एकबाली माने प्रतापी लोग का लगे कई-कई गो पत्नी होली सँ. ओहिमें कुछ धरमपत्नी होली सँ आ कुछ महज पत्नी. बाकी लोग का लगे त बस एके गो पत्नी होले आ ओकरा के धरमपत्नी कहसु भा अर्धांगिनी उनकर मरजी. बाकिर जहाँ ले पति के सवाल बा त पति ओकरा के जेकरा में केहू के पत होखो. भर सभा के पत बा त सभापति, जेकरा में अधिकारन के पत बा से अधिपति. पति महज कवनो मेहरारू के मरदे के ना कहल जाव. पति मालिको के कहल जाला आ पति होखला के स्थिति खातिर शब्द होला पत्य. अधिकार के पति आधिपत्य वाला होला. त जे पत राखे से पति. पत माने भरोसा, इज्जत, प्रतिष्ठा, विश्वास. आ अइसन नइखे कि पतिए लोग का लगे अनेके पत्नी होखेली सँ. कबो कबो एके औरत के कईगो पति होखेलें. कुछ का बारे में लोग जान जाला आ कुछ का बारे में पता ना रहे. जइसे कि द्रोपदी का बारे में त सभे जानल कि उनकर पाँच गो पति बाकिर कुन्ती का बारे में चरचा कमे होला कि उनकर कव गो पति अलग-अलग समय में रहले. कर्ण त बिआहो का पहिले पैदा भइल रहुवे बाकिर युद्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल-सहदेव के बाप का एके जाना रहले? केहू धर्मराज के बेटा, त केहू पवनदेव के, एक जने इन्द्रके पुत्र त जुड़वाँ नकुल-सहदेव अश्विनी कुमार के.

छोड़ीं, बात बढ़ी त जगहे-जगहा महाभारत होखे लागी. एही से लोग घर में महाभारत ना राखे ना ओकर पाठ होखेला. बात बहक गइल त पीछे लवटत बानी. धरमपत्नी आ पत्नी के चरचा खातिर तनी फूहड़ होखीं त कह सकीले कि जहाँ पतन होखे उ पत्नी आ जहाँ एकरा खातिर बाकायदा धार्मिक अनुष्ठान क के बनावल जाव ऊ धरमपत्नी. याद बा नू बाप-बेटा वाला बात. बाप वाप: से बनल ह. माने कि बोवे वाला बाप. त जे पतन करावे से पत्नी. त हमरा हिसाब से पत्नी आ धर्मपत्नी अलग-अलग होलीं आ पति चूंकि एके गो के कहल जाला त धर्मपति के सवाले ना उठे. बहुपतित्व वाला समाज में सगरी पति धर्मपतिए होलें से ओहिजो धर्मपति कहला के जरूरत ना पड़े.
अब रमचेलवा का बात पर याद पड़ल कि हमरा दिमाग में करमसाँढ़ शब्द घनघनात रहुवे ओह बेरा. सोचत रहनी कि अगिला बतकुच्चन करमजरू आ करमसाँढ़ ले के लिख मारीं. अब कहे खातिर कहल जाव कि करमसांढ़ त कहाला करमगाय काहे ना होखे. त गाय के करमे का. ऊ त वइसहीं उदारता के प्रतीक होले. केहू बहुते सिधवा होखे त कहल जाला कि बेचारा गाय जस ह जेने मन करे तेने हाँक दीं. बाकिर साँढ़ का बारे में अइसन ना कहाव. ऊ त छुट्टा घुमेला आ ओकरा पारंपरिक हक मिलल बा जवना खेत में मन करे मुँह मार देबे के. साँढ़ पोसुआ ना होखऽ सँ. करमसाँढ़ ओकरा के कहल जाला जे साँढ़ त बड़ले बा करमो के धनी बा. जेकरा चारो ओर हरियरिए भेंटाव. आ करमजरू ऊ जेकर भाग्य खराब हो गइल होखे. ऊ बेचारा भा बेचारी नीमनो काम करे चली त मामिला बिगड़ जाई. बाकिर करमसाँढ़ के बिना कवनो मेहनत उपज भेंटात जाला. जइसे कि दुनिया भर में कच्चा तेल के दाम गिरत जाव आ देश में डीजल पेट्रोल के दाम घटत जाव त कहल जा सकेला कि शासक करमसाँढ़ बा. मजा के बात बा कि एह बीचे सरकार लगातार आपन टैक्स बढ़ावतो चलत बिया आ लोग के पतो नइखे चलत. आ एगो करमजरू बावे बेचारा. जहँ जहँ चरण डालेला तहवें बंटाधार हो जाला. उनुका ला त रहीम बाबा के दोहा दोहरा सकीलें कि, रहिमन चुप ह्वै बैठिए देखि दिनन के फेर, जब नीके दिन आइहें, बनत न लगीहें देर. त बबुआ घबड़ो जन, तोरो दिन लवटी.

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