पइसार आ पसार के चरचा (बतकुच्चन – 200)

by | Jul 25, 2016 | 0 comments

बात के खासियते होला कहीं से चल के कहीं ले चहुँप जाए के. कहल त इहो जाला कि एक बार निकलल ध्वनि हमेशा खातिर अंतरिक्ष में मौजूद हो जाले. आजु पइसार आ पसार के चरचा करे बइठल हम त पसोपेश में बड़ले बानी कि कहाँ से शुरु कइल जाव. काहे कि मकसद त इहे नू बा कि बात के अतना लमरा दीहल जाव कि एह छोर से ओह छोर ले बतिआ के पसार हो जाव. बात ले त ठीक रहल बाकिर बतिआ होखते सोचे लगनी कि बतिया आ बतिआ में कवन उच्चारण सही होखी, दुनू सही होखी कि दुनू दू चीज का बारे में इस्तेमाल कइल जाला. वइसे आमजन य के उच्चारन करे में हमेशा गड़बड़ा जालें आ कबो अ त कबो ज कर देलें. अब अहजह में पड़ला से पहिले बतिए, बतिअे, बतिये पर लवटल जाव. कवनो फल के शुरुआत वाला रूप के बतिआ कहल जाला. इहां कुम्हड़ बतिआ कोई नाहीं वाला पंक्ति त मशहूरे ह जवना में भगवान परशुराम के चुनौती देत लखन लाल ई बात कहलन. कहल जाला कि बतिआ का ओर अंगुरी देखवला पर ओकर बढ़ल रुक जाला. बातो का साथे इहे होला. केहु कवनो बात कहत होखे आ रउरा ओह बात का तरफ अंगुरी कर दीं त बात बहके के पूरा गुंजाइश हो जाला.

अब देखीं ना पसोपेश बनल पस आ पेश के जोड़ के. फारसी भाषा से आइल एह शब्दन के इस्तेमाल आमजन सहजता से इस्तेमाल करेलें काहें कि हजारन बरीस ले विदेशी आक्रांता के गुलामी करे वाला ओकरा भाषो के अपनावे ला मजबूर होलें. आ साँच कहीं त आजुओ देश पर ओह शासन के असर बरकरार बा जे मानेला कि देश के संसाधन पर पहिला हक एगो खासे समुदाय के होला आ ओकरा ला सत्तर भा सात हजार खून माफ होखे के चाहीं. हँ त पस के माने होला आखिर में भा बाद में. जबकि पेश शुरू के कहल जाला. एही से पेशगी बनल शुरुए में दीहल जाए वाला अगवढ़ धन के. त पसोपेश के मलतब साफ कइला का बाद हमहूं आपन पसोपेश छोड़ आवत बानी असल बात पर. पइसल आ पसारल पर.

पसारल शब्द पसर से बनल होखी बाकिर पसर से बढ़ के पसार हो गइल. पइसल खातिर हिन्दी के शब्द बतावे के होखे त पैठ भा प्रवेश आ पसार खातिर प्रसार बतावल सभे मान ली. पइसल आ पसार के जिक्र ओह दिन दू गो कवि लोग के बात में आइल रहुवे आ हम लोक भा लपक लिहनी अपना बतकुच्चन के एह कड़ी ला. एगो कवि अपना कविता में लिखले रहलन कि मन के कोठरी में अन्हार पइसल बा. जबकि दोसरा कवि के कहना रहे कि अन्हार त रोशनी के गैरमौजूदगी के कहल जाला. अन्हार शाश्वत होले आ ओकरा कहीं पइसे के जरूरत ना पड़े, बस पसर जाले. रोशनी के मौजूदगी से अन्हार मिट जाला बाकिर रोशनी हटते अन्हार पसरे में देरी ना लागे. दोसरा कवि के बात हमरा सोलह आने सही लागल. अब जब आना के चलती खतम हो गइल बा त कह लीं कि सौ पइसा सही लागल. टंच कहे के गलती ना करब ना त लोग के टंच माल याद आवे लागी.

अब बात के जतना पसारे के रहुवे ओतना त हमार पसार लिहनी. केतना रउरा दिमाग में पइसल से त रउरे बता सकेनी. चलत-चलत पसर का बारे में बतावत चलीं. अंजुरी मिला के जवन कटोरी लेखा बनेला तवना के फारसी में पसर कहल जाला. अब पसारल एह पसर से बनल कि प्रसार से ई रउरे तय करीं, हम कहब त कहाईन हो जाई.

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