पोसुआ आ पोसपूत के चरचा (बतकुच्चन १४१)

by | Dec 31, 2013 | 0 comments

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कहे वाला त कह गइल बाड़े कि “पूत कपूत त क्यों धन संचय आ पूत सपूत तो क्यों धन संचय” बाकिर बिटोरे मे लागल लोग के संतोष नइखे बिटोरला से. आ पूते ना पोता पड़पोता तक ले के चिंता बा. जे सक्षम बा से आपन धन हिन्दुस्तान का सीमा का बाहर कवनो बैंक में रखले बा. एह बारे में तरह तरह के बात कहात रहेला. दोसरा देश मे राखल धन अतना बा कि अगर देश का कामे आ जाव त तीस साल ले सरकार के सगरी खरचा निकल जाव. केहू से कवनो तरह के टैक्स लिहला के जरूरत ना पड़े. बाकिर सरकार एह दिसाईं कुछ कर नइखे पावत काहे कि एहमें सबले अधिका ओही लोग के बा जेकर सरकार प सबले अधिका असर बा. बाकि बोले खातिर सभे भ्रष्टाचार का खिलाफ बोलत बा. जे कुकर्म में उस्ताद बा से प्रवचन देबे में लागल बा. मीडिया से लगवले न्यायपालिका ले हर जगहा अइसनका लोग मौजूद मिल जाई. कहे वाला त इहो कहेलें कि साहित्य आ भासो के मैदान में अइसनका खिलाड़ी भरल बाड़े. अइसनका लोग सबले पहिले ओकरे प निसाना लगावेला जे ओकर मातहत होखे. जबरा मरबो करे आ रोवहुं ना देव. बाकिर अब बात निकले लागल बा. पहिले जवन फुसुर फुसर मे कहात रहुवे उ अब सभका सोझा कहाए लागल बा.

खैर बात तनिका बहक गइल. पूत के चरचा एह से कइले रहीं कि पोसुआ आ पोसपूत के चरचा करे के मन रहे. पोसुआ के चरचा पहिले क चुकल बानी. से आजु पोसपूते पर बतियावल जाय. पोसपूत ओकरा के कहल जाला जेकरा के पूत लेखा पोसल जाला. जेकरा आपन पूत ना होला से केहू अपना के पूत अपना लेला आ ओकरा के पोसपूत बना लेला. बाकिर अइसनो लोग होला जे अपना पूत का रहतो पोसपूत बनावत रहेला. ओह लोग के चिंता रहेला कि पोसपूत का ताकत का सहारे अपना पूत के बढ़ावल जाए. राजनीति में अइसनका पोसपूत ढेरे मिल जइहें. पोसपूत अपना दायरा में रहत अपना पुत के बढ़ावेले आ एह काम में कवनो बाधा ना आवे से अपना के पोसेवाला के पूत के सहारा बनत रहेले कि उहो आगे बढ़त रहे.

अब बतकुच्चन के एह झोल का बीच समुझेवाला समुझ जइहें कि कवना पूत आ कवना पोसपूतन के चरचा होखत बा. हमार काम ई झोल हटावे के नइखे. आपन आपन झोल सभके अपने हटावे पड़ेला. ना त हाल उहे हो जाई कि “जमाने की गर्दिश सितारों का फेर, मकड़ी के जाले में फँस गया शेर”. अधिकतर झोल मकड़ी के जाले से बनेला. छोड़ दीं त ई मकड़जाल बढ़ते जाला. झोल बातो में होला. कुछ लोग अपना बात के झोल में दोसरा के फँसावे में माहिर होले. उ लोग अपना एह झोल के इस्तेमाल आपन राजनीति बढ़ावे चलावे खातिर करेला आ बतबनवा लोग बतकुच्चन करे में. हालांकि एगो झोल उहो होला जवन तरकारी भा माँस मछरी के होला. एह झोल के झोर कहल जाला बाकिर होला उहो झोले. आ अब रउरा सोंची कि झोल आ झोला के बीच के नाता का ह. काहे कि झोला बटोरले के कामे आवेला. धर द झोला, भर द झोला.

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