बिलाई भागे सिकहर टूटल (बतकुच्चन १३४)

by | Dec 1, 2013 | 0 comments


सुतार बइठला के बात ह. बइठ जाव त सब काम देखते देखत पूरा हो जाव आ ना बइठे त बरीसन ले इंतजार करत रह जाईं. सुतार आ सुजोग. बढ़िया तार आ बढ़िया योग. बाकिर सुजोग से अलगा होला संजोग. सुजोग बइठावल जाले आ संजोग खुद बखुद आ के बइठ जाला. रचनाकारन के अकसरहाँ एह सुतार बइठावे का फेर में सुजोग बइठावे में लागत रहे के पड़ेला. मन में बात घुमरियात रहेला आ ओकरा के कागज प उतारे के सुतार खोजात रहेला. कई बेर सुजोग बइठा के काम चल जाला त कबो संजोग अतना तेज रहेला कि बात बन जाला.

अब देखीं ना, देश के पीएम बने के सपना देखे वाला नेता के सुतार ना जुटत रहे कि बिहार आ पावसु. आ जब सुतार बन गइल त अइलन आ अपना मीता के थई थई करा दीहले. उ त थई थई करा के रह गइले बाकिर कुछ अनेरिया बिहार सरकार के थू थू करा दीहले. अब हमरा नइखे लागत कि थई थई आ थू थू का फेर में पड़ी. थई थई केहू के चिंदी उड़ावल होला जबकि थू थू ओकरा के बइज्जत कइल. बात सुतारे तक रहे त हमरा ला नीक रही. त ओह अनेरियन के सुतार बइठल आ बिलाई भागे सिकहर टूटल. बड़हन भीड़ भगावे के योजना बनल. बाकिर एहीजा संजोग ठीक रहल आ ओहनी के मकसद पूरा ना हो पावल. सोचले रहल स कि या त बम फटला का बाद मीटिंग रद्द क दीहल जाई ना त भगदड़ का फेर में सैकड़ो लोग के जान ले लीहल जाई. सरकार मीटिंग के भगवान भरोसे छोड़िए दिहले रहुवे से ओकनी के काम आसान हो गइल रहे.
बाकिर कहल जाला नू कि मारे वाला से बचावे वाला अधिका बरियार होला. त बड़हन हादसा होखे से बाच गइल.

एह समय एगो बड़हन दुविधो बन गइल रहे. नेता लोग अहजह में पड़ गइल कि का कइल जाव. मीटिग चलत रहे कि रोक दीहल जाव. हालत ओह कहावत वाला बन गइल रहे कि भई गति साँप छूछून्दर के री, उगलत आन्हर निगलत कोढ़ी. फैसला भइल कि मीटिंग तय कार्यक्रम का हिसाब से चलत रहे. एह तरह आगे के भीड़ के पते ना चलल कि पीछे का होखत बा. बम फाटत रहल आ मीटिंग बदस्तूर चलत रहल. भगदड़ होखे से बाँच गइल. बाकिर विरोध करे वाला एहू में दोष खोजे लगलन कि जब बम फाटल पहिलही शुरू हो गइल रहे त मीटिंग काहे चालू राखल गइल. एह लोग के अफसोस लागल कि मीटिंग बिगाड़े के अतना बढ़िया मौका हाथ से निकल गइल.

बाकिर तनी सोचीं कि वास्तव में कतना दुविधा के बात रहल. एक तरफ मीटिंग में जमल भीड़ के बम के जानकारी दिहला का बाद भगदड़ मचे के पूरा अनेसा रहल त दोसरा तरफ एह बात के कि हो सकेला कि कुछ बम भीड़ का बीचो में फाटे. एहिजा ई होइओ सकत रहल आ नाहियो हो सकत रहे बाकिर बतवला पर त भगदड़ मचल तय रहे.

अब केहू कतनो बतकुच्चन क लेव एह बात प बाकिर हमरा याद नइखे कि कबो अइसन भइल होखो जब बम फटला का बादो भीड़ अपना नेता के सुने जमल रह गइल होखे आ नेता बम के अनेसा का बीच मंच प आवे के हिम्मत देखवले होखे. एहिजा हिम्मत आ जिम्मेदारी के लाजवाब नमूना देखे के मिलल. जतना सहज भाव से आखिर में भीड़ के इत्मीनान से निकले के सलाह दीहल गइल ऊ साधुवाद लायक रहल. आ हम बतकुच्चन के परंपरा तूड़त आजु ई सब लिख दिहनी.

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