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बूंट के पेड़ (बतकुच्चन – १२१)

by | Aug 12, 2013 | 1 comment


रउरा में से केहू बूंट के पेड़ देखले बा? हम त नइखीं देखले काहे कि बूंट के पेड़ होखबे ना करे पौधा होला. बूंट के पेड़ वाला किस्सा पिछला दिने बयानवीर नेता लोग के बकतूतई से धेयान में आइल. केहू बारह रुपिया में भरपेट खियावत रहे त केहू पाँच रुपिया में. एगो बड़का जानकार बता दिहलें कि खाए खातिर त एको रुपिया में खाइल जा सकेला. ओकरा बाद जवन हल्ला मचल त एक जने त माफी माँग लिहलें बाकी लोग सफाई दे के रहि गइल. सफाई अइसन कि मन करे कि झड़ुआ दीं. खैर छोड़ीं ई सब बाति चलीं बतकुच्चन कइल जाव. हँ त पहिले झाड़ू आइल कि पहिले झाड़? झाड़ शब्द से झाड़ू बनल कि झाड़ू से झाड़? छोट पौधन के शाखा के झाड़ कहल जाला आ ओही झाड़ से झाड़ू बनेला. हालांकि जवन नारियल वाला झाड़ू होला तवन त पतई से निकलेला. बाकिर झाड़े के काम आवे का चलते उहे झाड़ू हो गइल. एगो झाड़ू कूंची होला. कूंची माने कि ब्रश. मुलायम पतइयन के रेशा से बनावल झाड़ू के कूंची कहल जाला. अइसहीं खरहरा होला. रहर के झाड़ से खरहरा बनेला आ ओकरो से झाड़े के काम लिहल जाला. खरहरा एगो अउरी चीझु के कहल जाला जवना से घोड़ा के पीठ रगड़ल जाला. खरहरा हम देखले नइखीं एहसे बेसी ना बता पाएब. कुछ रउरो सभे त बतावल करीं. गाँव देहात में सहन भा माटीवाला आंगन झाड़े खातिर खरहरा के इस्तेमाल होला जवन माटी त ना बहारे बाकि सब गंदगी कूड़ा करकट जरुर बहार देला. ओह से महीन सफाई करे के होखे त झाड़ू लगा लीं आ ओहू ले महीन करे के होखे त कूंची. बाकिर एह बीच बहारल छूटल जात बा. बहरला से निकलल कूड़ा करकट के बहारन कहल जाला. हालांकि एह बहारल शब्द के जनम कइसे भइल होखी से हमरा समुझ में नइखे आवत. काहे कि बहार त ओहके कहल जाला जवन आनन्ददायक होखे. वसन्त ऋतु में पेड़ पौधन पर आइल नया नया फूल पतइयन से जवन माहौल बनेला तवने के कहल जाला कि बहार आ गइल बा. आदिमिओ का जिनिगी में कबो बहार आवेला त कबो पतझड़. हो सकेला कि बहरला का बाद जब घर बाहर अपना सफाई से आनन्द देबे लागेला त ओही बहार ले अइला के बहारल कहल गइल होखी आ एह बहारत बहारत में बहार से संबंध पीछे छूट गइल होखी. बहारल आ झड़ुआवल एके काम होखला का बावजूद दू तरह के भाव जतावेला. गलतबयानी करे वाला भा गलत काम करे वाला आदिमी के झड़ूआवल जा सकेला बहारल ना. शायद एह से कि झड़ूअवला का बाद झड़ुआवल आदिमी का मन में आनन्द ना जागे. बाकिर घर आँगन त झड़ुआवल ना जा झाड़ल जाला. एहसे साफ बा कि झाड़ल आ झड़ुअवला में फरक होला. रउरो सभे सोचत होखब कि आखिर बेबात के बात से अतना बात कइसे निकले लागेला त जान जाईं कि बात का पीछे का बात पर धेयान देबे लागीं त बहुते कुछ जानकारी में आवे लागी. अंगरेजी में एगो मुहावरा ह, रीडिंग बिट्वीन द लाइन. जवन लिखल बा तवना का बीच से ओकरा के पढ़ल जवन लिखाइल त नइखे बाकिर भाव उहे लिखे वाला बा. कई बेर जवन लिखल जाला तवन जरूरी ना होखे कि कुछ बतावे खातिर लिखल गइल होखे. कई बेर त एह ले लिखल जाला कि लोग के अन्हार में राखल जाव, उ बात मत जाने दिहल जाव जवना के छिपावल बहुत जरूरी बा. अलग बाति बा कि करम के लिखल लेख पढ़ाव भा ना जिए के पड़बे करेला. हमनिओ का अपना कर्म से आपन करम लिखत रहीले. पाँच पाँच साल पर होखे वाला चुनाव में त हमनी का आपने करमे नू लिखिले जा आ बाद में ओकरा के लिखल करम के लेख मान के बरदाश्त करत रहीले जा. याद राखीं कि झाड़ू से निकासल कूड़ा करकट के कपारे ना चढ़ावल जाव घूरा पर फेंक दिहल जाला. एहसे झड़ुआवे जोग नेता के चुने के गलती मत करब अबकी बेर. हर साल जात पाँत, धरम भासा, हित नात देखत रहीं पोसत रहीं बाकिर पाँच साल में एक बेर, बस एक बेर अपना वोट के बटन दबावत घरी सही फैसला करे के आदत डालीं ना त बूंट के पेड़ देखेवाला आदमी हमनी के खेती सिखावे लगीहें.

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1 Comment

  1. omprakash amritanshu

    बहुत नीमन

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