-चंदन मिश्र
डाढ़ी जर अब गाछ के, बाटे रहल बटोर।
आखिर फल कइसे मिली, पत्ता पत्ता चोर॥
जर से ले के डाढ़ तक, केहू ना कमजोर।
केहू अधिका ले गइल, केहू थोरका थोर॥
जब घरहिं के लोग कइल, आपन देस गुलाम।
जिअते जी जे मर गइल, ओकरा से का काम॥
पानी मेहनत खेत सब, आपन कहे किसान।
नेताजी के पेट में, चहुँपल सारा धान॥
सर-सर करते जब चलल, मुखिया जी के कार।
आपन टूटल साइकिल, बाह बाह सरकार॥
सभका खातिर एक बा, भइया ई कानून।
साँझे छूटल, जे कइल भोरे दस गो खून॥
काल्हे ले जे जोड़लस, आपन दूनो हाथ।
पाँच बरिस के बाद मिलि, अइसन कहवाँ साथ॥
लूटल पहिले पाँच जे, लूटल आज पचास।
भइल कहां बा आजतक, अतना तेज बिकास॥
नइखे आपन घर कहीं, ई कइसन भगवान।
तबहूं पूजे रात दिन, सारा हिन्दुस्तान॥
कोई लउके जब कहीं, तनिओ मनी प्रसन्न।
पहुँचावल जे दुख उहे, बाटे मानुष धन्न॥
लीटर के मीटर घटल, पूरा गड़बड़ खेल।
सस्ता ‘चंदन’ खून से, भइल किरासन तेल॥
मढ़ौरा, छपरा
राउर ई रचना कमाल के बाऽ
चन्दन जी बेहतरीन लिखले बानी ..हर पंक्ति बेहतरीन..
निखिल पांडेय जी,
बहुत बहुत धन्यवाद, एह रचना पर आपन बिचार देवे के खातिर।
रउओ कुछउ लिखी । रउओ तऽ बडा सुन्दर लिखेनी
भ्रष्टाचार के आंखमिचोली खेल के बड़ी बढ़िया से रचल बा .चंदन मिश्र जी बहुत -बहुत धन्यवाद !
ओ.पी.अमृतांशु