– ओ.पी .अमृतांशु
जा रे झूम के बसंती बहार
पिया के मती मार
पिया बसेला मोर परदेसवा में .
सरसों के फुलवा फुलाईल
आमवा के दाढ़ मोजराईल ,
अंगे-अंगे मोर गदाराइल
हाय!उनुका ना मन में समाईल ,
लाली होठवा भइल टहकार
पिया के मती मार
पिया बसेला मोर परदेसवा में .
जब -जब कूहके कोयलिया
कहीं कईसे मनवा के बतिया ,
लय के लहरिया पे नाचेला मन
रुत फुंकले बा आई के बाँसुरिया,
चूड़ी खनकेला करे हनकार
पिया के मती मार
पिया बसेला मोर परदेसवा में .
चंदा के चकोरि
जइसन तोहरो गोरी ,
छने-छने निरखेली रहिया
आवत बाटे होरी ,
बीछल अँखिया बा हमार
पिया के मती मार
पिया बसेला मोर परदेसवा में .
दिल के डोर थमा के
नेह के गेठ जोडा के,
ले अइलें डोलिया में पिया
प्रीत के रीति रचा के,
सांवरिया हो गइलें साहुकार
पिया के मती मार
पिया बसेला मोर परदेसवा में .
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अब त सावन आ गइल।