– ऋतुराज
(1)
चाननी जइसन रूपवा के तोड़ नइखे
भोर, भोर हो गइल ऊ अॅंजोर नइखे.
चुप कराईं त आउर ज़ोर से बाजे
तोहरा पायल सन केहू मुँहजोड़ नइखे.
तोहरा पाछे बहुत बा हमें ठोक लऽ
हमरा हीया के पिरितिया के जोड़ नइखे.
होई हमर किसानी तोहरा चढ़ी सोना-चानी
हमरा मन के हुलास कमज़ोर नइखे.
कतनो करबू विचार नाहीं मिली अइसन प्यार
हमरा प्रीत के पगहिया के छोर नइखे.
(2)
लाज-शरम ऑंख में जेकरा शील ना रहे
ओह आदमी खातिर काम कवनो मुश्किल ना रहे.
फूल के नोच के हॅंसेवाला मालिअन के
पाकिट में रोपेया बाकिर दिल में दिल ना रहे.
सबदिन से नोचाइल बा सगरी बगिया का कहीं?
कबही ख़ूशबू से भरल कवनो महफिल ना रहे.
माई सबदिन से बेटवन के हॅंसी बाँटेली
माई रोवल जहॉं ओकरा ख़ुशी हासिल ना रहे.
तूड़े तलवार, छोड़े ख़ंजर, प्रीत के बात करे
प्रीत में डूबल आदमी कभो क़ातिल ना रहे.
शब्द छोट रहे मगर जिनगी बदल देवे
जे पाठ प्रेम के पढ़े, कभो जाहिल ना रहे.
वीरगंज, नेपाल के रहवईया ऋतुराज समाजशास्त्र में स्नातक कइला का बाद दिल्ली में रेडियो आ टेलीविज़न से जुड़लन आ लेखन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा हासिल कइलन. दिल्लीए में तीन चार साल ले विज्ञापन जगत से जुड़लन आ ओकरा बाद मुंबई में 2 साल ले टेलीविज़न ला निर्माण आ पटकथा लिखे के काम कइलन. हाल फिलहाल अब अपना व्यवसाय में लागल बाड़न.
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