– अक्षय कुमार पाण्डेय

AkshayKrPandey
(1) बसन्त

चमचम चमके लागल पीतर
सोना जइसन भाई –
समझऽ अब बसन्त आइल हऽ।

पुरुवा से पछया झगरत बा
दुपहर साँझ फजीरे,
पाथर के रसरी रगरत बा
हँसि-हँसि धीरे-धीरे,
उतर गइल पानी इनार के
उकचे लागल काई,
समझऽ अब बसन्त आइल हऽ।

नया रंग ले जागल जिनिगी
जागल सपन नयन में,
पीयर पतई झरल भरल
अब नया कल्पना मन में,
कान्हीं पर के करजा मौसम
करी फेर भरपाई,
समझऽ अब बसन्त आइल हऽ।

सोन किरिन बन सोन चिरइया
आसमान से उतरल,
धरती सजल सोहागिन लागे
माटी के दिन बहुरल,
मुरचाइल हरबा निहाल बा
गावे गीत निहाई,
समझऽ अब बसन्त आइल हऽ।

सीतलहर में हल्कू रखलस
निसुदिन आग जिया के,
बीत गइल बाउर दिन ठिठुरत
सूरज हँसल ठठाके,
बायाँ हाथ करे लागल
दायाँ से हाथापाई,
समझऽ अब बसन्त आइल हऽ।

(2) बुआ – सुआ

बुआ सुआ के पिंजड़ा खोलत
सोच रहल बाड़ी।
खुल के हँसे न खुल के रोवे
ई कइसन जिनिगी,
आसमान ना धरती आपन
आफत में बा जी,
बाहर-भीतर जमल अन्हार
खरोंच रहल बाड़ी।

पाँख पसरलस जब उछाह
तब अजगुत घाव मिलल,
आँखिन के सपना के ना
कतहीं ठहराव मिलल,
कठुवाइल अपना अतीत के
कोंच रहल बाड़ी।

बेकल नदी उदास घाट
थाकल जलधार लगे,
खिड़की से लउके जेतना
हरियरी बेकार लगे,
लपटा अस लपटाइल दुख के
नोंच रहल बाड़ी।


अक्षय कुमार पाण्डेय के दू गो गीत

ग्रा0 पो0 – रेवतीपुर (रंजीत मुहल्ला),
गाजीपुर (उ0 प्र0)

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By Editor

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