– ओमप्रकाश अमृतांशु

fagun
कि आरे झुरू -झुरू बहेला फगुनवा ,
सगुनवा लेइके बा आईल.
लाल -पियर शोभेल गगनवा ,
धरती के चुनरी रंगाईल.
{1}
आमवा से अमरित टपके ,
चह-चह चहके चिरइयाँ.
महुआ सुगंध में मातल,
कुकू -कुकू कुकेले कोइलिया .
कि आरे काऊँ- काऊँ करेला रे कागावा
छप्परवा पे बिरहा गवाइल.
{2}
खेतवा- बधारावा लहसेला ,
हरसेला हियरवा .
अंगना में बरसेला रंगवा,
दुआरा पे बाजेला मजिरावा .
कि आरे सारा रा रा उडेला रे मनवा,
दुधवा में भंगवा घोराइल.
{3}
घुंघटा के फांकावा से झलकेला
सुनर चान मुखडावा.
पोरे -पोरे निखाराइल जबसे
चढ़ल बसंत बेयारावा .
कि आरे खन-खन खनके कंगनवा ,
मिलनवा के घडी नीके आईल .
लाल -पियर शोभेल गगनवा ,
धरती के चुनरी रंगाईल.

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By Editor

3 thoughts on “धरती के चुनरी रंगाई”

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