– अभय कृष्ण त्रिपाठी “विष्णु”
सच बोलहू में अब सवाल हो रहल बा,
खुदके मिटावे खातिर बवाल हो रहल बा,
ना रही बाँस ना बाजी बाँसुरिया ऐ विष्णु,
कफ़न ओढावे खातिर कमाल हो रहल बा़॥
महाभारतानुसार अब गुरु शिक्षक हो रहल बा,
आस्था के सामने धरम भिक्षुक हो रहल बा,
मत उझरी जिनगी के चक्रव्यूह में ऐ विष्णु,
सूरजो अब अंधकार के रक्षक हो रहल बा॥
नफरत के नींव पर बइठ चाहत बा प्यार करीं,
हद मउत के बता कहत बानी कि सत्कार करीं,
हमहू इंसान बानी सब काहे भुला जाला विष्णु,
रावण होके उम्मीद बा इंसान के विस्तार करीं॥
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