(१)
आजादी के जश्न मनउला के दिन बाटे आज
गली गली झंडा फहरउला के दिन बाटे आज
जे सीना पर गोली खा के आजादी ले आइल
ओ बीरन के गाथा गउला के दिन बाटे आज ।
सत्तावन में गदर भइल उ घाही मन के पीर रहल
जंजीर गुलामी के तोड़ला के उ पहिला तस्वीर रहल
चूम के फांसी के फंदा जे सगरो देश जगा दिहलस
नाम ओकर मंगल पांड़े, बलिया के बांका बीर रहल
(२)
रूपवा सुघर सलोना बाटे छटा निराली
शक्ती जहां के देलीं मइया पहाड़ वाली
धरती ई पुण्य-पावन आईं कइल जा वंदन
मिलि के मनावल जाला जहॉं ईद आ दीवाली ।
भाषा जहां बा कइ गो, आ हिंदी बा सबके रानी
पैदा जहॉं पे होलें विद्वान, संत, ज्ञानी
गॉंधी, कबीर, तुलसी, टैगोर के ई धरती
माने ला विश्व लोहा बाटे न कउनो सानी ।
महके खिलल बगइचा, धरती के रंग धानी
उगले जहॉं के माटी भरि-भरि के सोना चानी
पूजा जहॉं पर होले, खुर्पी, कुदार, हर के
लइका स भुइयां लोटें, बरसावे खातिर पानी ।
फहरे सुघर तिरंगा सम्मान के निशानी
जउना के मान खातिर कुर्बान बा जवानी
अंखिया अगर देखाई हमनी के केहू तनि के
तब झारि दीहल जाई ओकरा के सगरो पानी ।
बंदूक धइले कान्हीं बन्हले कमर में गोली
रंग दे बसंती चोला गावत फिरे ले टोली
माई के आन खातिर सगरो जहॉं भुला के
खुनवा से अपने खेलें सरहद पे वीर होली ।
ई मुल्क गर पड़ोसी नफरत के बोल बोली
आ हमनी के धरा पर दहशत के बिष उ घोली
तब छोड़ि के अहिंसा के राह हमनी के भी
घरवा में घुसि के मारल छतिया पर जाई गोली ।
ई मुल्क गर पड़ोसी आतंक अइसे पोसी
कबले बना के रक्खब हमनी जा भी खामोशी
जा के केहू बता दे कि छोड़ि दे ई हरकत
वरना जहान से ही मिटि जाई ई पड़ोसी ।
(३)
आईं आज कइल जा प्रण, कि बइठल ना जाई निरूपाय
करे के उनकर पीड़ा दूर, जे निर्बल बा जे बा असहाय
जरावे के आशा के दीप, कइल जाई मानव हित काम
हरल जाई दुख मानव के, विजयिनी मानवता हो जाए ।
– देवकांत पाण्डेय