– डा॰ शत्रुघ्न पाण्डेय,
बाबूजी के हम रहुईं आँखि के पुतरिया
राखसु करेजवा में मोर महतरिया
आवते ससुरवा अघोरनी रे,
सासु कहे कुलबोरनी.
हवे मतवाली ह कुलछनी मतहिया
सासुजी कहेली खेलवाड़ी ह भुतहिया
परल कपार बिया चोरनी रे,
सासु कहे कुलबोरनी.
गारिए के मुँहे भिनुसहरे जगावेली
उठि सुति हमरा के जहर पियावेली
बढ़नी बहारो घरफोरनी रे,
सासु कहे कुलबोरनी.
हाथ में उठाई लेली जरते लुआठी.
कहेली ककोचि देबी मुँहे खोरनाठी
खउरा लगाई इहे खोरनी रे,
सासु कहे कुलबोरनी.
ननदी गोतिन देखि मुँह बिजुकावे
ताकि ताकि हमरा के आँखि मटकावे
एगो में ई दू गो बिया जोरनी रे,
सासु कहे कुलबोरनी.
हमरा करमवा में इहे बा उठावना
सुखवा सपन भइले जबे अइनी गवना
कहेली ई मूड़ी के ममोरनी रे,
सासु कहे कुलबोरनी.
रिटायर्ड प्रधानाचार्य,
तीखमपुर, बलिया.
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