ashokdvivedi

– डा॰ अशोक द्विवदी

कबो सोचले ना रहीं
घर गाँव छूटी.
रहब आके हम
इहाँ, अइसन नगर में!

चाह-चिन्ता तनिक ना
परवाह रिश्ता के अउर नेकी-बदी के
नेह-नाता कुल भुलाइल आदमी
घिसिया रहल बा घर-घरौंदा गिरस्थी के.
जहाँ देखीं, लोग धकियावत, दरेरत,
घुइर के ताकत
मिलत बाटे सफर में!

इहाँ राजा का किला में
ढहल बा दरबार
गद्दी आ गलइचा
महल रानी के, सुखाइल पोखरा
उजड़ल बगइचा
दबल-दाबल अउर भसकल
बँचल बा इतिहास इहवाँ खंडहर में.

राह चललो बा कठिन पैदल –
अगाड़ी भा पिछाड़ी
सड़क का ऊपर सड़क
नीचे जमीनी में चलत बा रेलगाड़ी
स्वर्ग के दुख, नरक के सुख
दुनू हहरत बा भुलाइल काँचघर में.

नदी करिया होत पानी, बजबजाइल
शहर से सटले किनारे
पाल अस उधियात छान्ही प्लास्टिक के
टीन-टापर का सहारे
सभ्यता का नाँव से सहमल डेराइल
हया मिल जाले इहाँ अक्सर गटर में!


टैगोर नगर, सिविल लाइन्स बलिया – 277001
फोन – 08004375093
ashok.dvivedi@rediffmail.com

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By Editor

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