दू गो कविता

by | Oct 2, 2011 | 1 comment

Dr.Ashok Dvivedi

– डा॰अशोक द्विवेदी

गोहिया

मार चाहे सटहा के होखे
चाहे जहर बुझल बात के
मार से
पीठि पर उखड़ल गोहिया त लउकेला
बाकि
मन पर परल करिया रेघारी
भा अन्तर में उखड़ल गोहिया
ना लउके
ना लउके दुर्दिन आ
दुर्भाग में लागल गहिर ठेस.


बोझा

बोझा चाहे औकात ले ढेर
काम क होखे चाहे
बालबच्चा का जिम्मेदारी के
भारी होइबे करेला.

भारीपन के
भारी खेप ढोवत-ढोवत
कतने लोग मरि-खप जाला
भगिगर बा ऊ लोग
जेकर बेटा या भाई
हित भा मीत
लगा देला आके आपन कान्ह
आ बोझा हलुक हो जाला.


अँजोरिया पर डा॰ अशोक द्विवेदी के दोसर रचना

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1 Comment

  1. amritanshuom

    सचमुच अंतर -आत्मा प लकीर खिचे वाला बा राउर दुनो कविता .
    ओ.पी.अमृतांशु

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