– डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल
मन इ जब जब उदास होखेला
तोहरे आस-पास होखेला
घर धुँआइल बा आँख लहरेला
जब भी बुधुआ किताब खोलेला
तोहरा के भुला सकबि कइसे
आजुओ मन लुका के रो लेला
चोर भइलीं भलाई ला जेकरा
ऊहे हमरा के चोर बोलेला
मेहरी से पिटाके मुसकाले
हारि अपनन से केहू बोलेला
दोष कइसे विमल के दे दीं जी
देखि लछिमी कबो ना डोलेला
2.
नेह अमिरित झरित जो कबो
जीव हुलसित फरित जो कबो
जोत जिनिगी में जगमग रहित
मन अन्हरिया हटित जो कबो
लोर काहें नयन से बहित
ई दरदिया घटित जो कबो
आसरा मोर होइत सफल
भास तनिको मिलित जो कबो
पूछितीं अर्थ आनंद के
पट विमल के खुलित जो कबो