"फगुआ के पहरा" पर एक नजर

by | Feb 13, 2013 | 2 comments

– मनोकामना सिंह ‘अजय’

आदरणीय डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल जी,
सादर प्रणाम.

अपने के भेजल “फगुआ के पहरा” सावन में भाई गंगा प्रसाद अरुण के मार्फत मिलल. राउर गजल के ई लाइन हमनी पर बिलकुल ठीक बइठत बा –

फागुन कहाँ गइल ना कुछऊ लगल पता
सावन बा हमरा आँख में आके समा गइल.

“फगुआ के पहरा” में राउर लिखल गीत सभ रसगर, मजगर आ दमगर बा. एह में छपल सभ गजल में शहर आ देहात के गमक बा. साँच कहीं त “आँखि लागि गइल” कविता सबसे नीक लागल. राउर “अनुभव” के विस्तार लोगन के एगो नया अनुभव दीही.

आजु बहुते गिरल जा रहल आदमी
हर गिरल जिंदगी के उठावल करीं.

*********
कल तक पियावल जे अँजुरी से अमिरित
ओकरे अँजुरिया जहर से भरल बा.

आज हमनी के जिनिगी के साँच के दरसा रहल बा.

आज के जरूरी के राउर लिखल ई लाइन गौर करे लायक बा –

आईं हमनी सभ बइठीं सुख दुख आपन बतियाईं जा
घरफोरवा बा के हमनी के ओकर पता लगाईं जा
मान बढ़ाईं जा माटी के भेदभाव सभ छोड़ि के.

‘फगुआ’ शब्द त शहर का, गाँवो-जवार से धीरे-धीरे खतम हो जाई. हमनी का जब लड़िका रहीं जा त फगुआ के दू चार दिन पहिलेहीं से धूर-माटी अपना संघी-संघतियन पर उड़ावत मजा लेत रहीं जा. फगुआ के दिन त धूर माटी के के कहो पाँक में लभराइल बोथाइल हमनी का घरे-घरे घुमत रहीं जा. अब ऊ दिन कहाँ देखेके मिली. अब त पानी बचावे के नाँव पर टीका होली खेलल जा रहल बा.

रउरा जब भोजपुरी माध्यम से लिखला पर भौंह, भृकुटी का सङही मिजाज बदले के बात लिखत बानी त ओकरा संगही इहो ख्याल राखे के चाहत रहे कि भोजपुरी में ‘ही’, ‘भी’ के प्रयोग अच्छा ना मानल जाला. एह पुस्तक में अनावश्यक रूप से कुछ हिन्दी आ अँग्रेजी के शब्दन के प्रयोग कइल गइल बा जेकरा से बँचल जा सकत रहे. कुल मिलाके गाँव के माटी से राउर जुड़ाव प्रशंसा करे के योग्य बा.

– मनोकामना सिंह ‘अजय’


कृष्णा भवन,
२७, विवेक नगर, छोटा गोविंदपुर,
जमशेदपुर ८३१०१५

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2 Comments

  1. omprakash amritanshu

    विमल जी के बहुत – बहुत बधाई .

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