– अभयकृष्ण त्रिपाठी
बीत गइल शिवरात्रि बाबा नाही अइलऽ तू,
पडल रह गइल भांग धतूरा नाही खइलऽ तू |
का दिल्ली का कलकत्ता का काशी का मथुरा,
तोहरा आड़ में खा रहल बा हर केहू भांग धतूरा,
जहर के खाके जहर उगीलत नाही देखलऽ तू,
बीत गइल शिवरात्रि बाबा……….|
मानत बानी सब डूबल बा बाबा तोहरा रंग में,
कवनो दोष नाही बा बाबा परसादी के भंग में,
जहर खिया के जहर पचावल नाही सिखवलऽ तू,
बीत गइल शिवरात्रि बाबा………..|
दिल के चाह बदल रहल बा कइसे बताईं हम,
मृगतृष्णा के आगे रोटी कपड़ा तोड़ रहल बा दम,
सृष्टि नियम के झाँसा देके बहुत सतवलऽ तू,
बीत गइल शिवरात्रि बाबा………….|
भविष्य के समुद्र मंथन में जहर जब पीहिअऽ तू,
कइसे पचवलऽ हालाहल के जरूर बतइहऽ तू,
ई सृष्टि जब तोहरे बा त प्रेम से रखीहऽ तू,
ना त सब बरबाद हो जाई मान ही लेबऽ तू,
केहू ना रही दुनिया में तब के तोहरा के मानी हो,
भोले बाबा भोला बाडे दुनिया कइसे जानी हो,
समुन्द्र के हलाहल पी लिहलऽ अब इंसान के पिहिअऽ तू,
अगिला बरिस शिवरात्रि पर जरूर से अइहऽ तू,
बीत गइल शिवरात्रि बाबा नाही अइलऽ तू,
पडल रह गइल भांग धतूरा नाही खइलऽ तू |
बहुते नीमन