– अनुप पाण्डेय
आग लागो बेरहा परो अइसन विकास में
गांव अबो खड़ा बा पहिलका इतिहास में
भूख खा के पियास पी के लोग रोज सुतेले
किसान के कफनो भर के ताकत नइखे रुई में कपास में
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जवान बेटी रहे कापर पर भूख रहे पेट में
मंगरू जहर खा के सूत गइले उँखी के खेत में
मुनिया के मांगी में कइसे भराइ सेनुर दहेज़ के
सताईसे गो रुपया मिलल उनका धोती के चेट में
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बिरजू से मिलनी त कहनी कि आपन हाल चल बतावऽ.
अरे …..तू तs खास तारs एकर दवाई काराव
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कहले कि लोरे त फायदा बा भारत के किसानी में
देखीं ना बुढ नियन लागत बानी सउँसे जवानी में
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सरकारी किताब में हमनी के एतने त आदर बा
छः रूपया गेंहूँ बा अउर तीस रूपया खादर बा
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मुअले बिना जियत बानी रउरा आपन बताई
उँखी के पुर्जी भजें तब न दवाई कराई
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मिलनि छः महिना बाद
त हमरो करेज पिघल गइल रहे
तबले बिरजू के खांसी दवाई के अभाव में
टीबी में बदल गइल रहे
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रोवत घर आंगन बा
डहकऽता दिवाली अउरी होली
गवई गरीबी के इहे त निदान बा
बैले के पगहा के फँसरी
ना त सल्फासे के गोली
अपना एह कविता के आपन सबले प्रिय कविता बतावे वाला अनुप पाण्डेय स्वतंत्र पत्रकार आ कवि हईं. इनका से 08800638578 भा anupkmr77@gmail.com पर संपर्क कइल जा सकेला.
खूब सुन्नर भाव बा कविता में .बहुत -बहुत धन्यवाद .
Bda achha lagal tohar kavita padhke… Hm chahtani ki aisan kavita likhal kr… Aur aage badhal kra….thanks..
बहुते बढ़िया चित्रण ग्रामीण समाज के।। माटी से लिखल, माटी के कविता।। आभार।