रमबोला आज जवान भइल

by | Jul 11, 2016 | 1 comment

Rambola
भोजपुरी साहित्य से हमार पहिलका परिचय जवना रचना से भइल तवन रहल हरीन्द्र हिमकर जी के लिखल खण्डकाव्य रमबोला के एगो अंश से. रचना अस नीक लागल कि रटा गइल आ जबे मौका मिले एकरा के सुना के बतावल करीं कि देखीं भोजपुरी में कतना मजगर रचना लिखल जा रहल बा. तब हम मेडिकल के विद्यार्थी रहनी. समय पर डाक्टर बन गइनी आ शुरु हो गइल एगो अन्तहीन सफर. बीच में आइल एगो भँवरजाल से उबर त गइनी बाकिर फेंका गइनी दियर में. अब संसाधन त ना रहुवे बाकिर समय भरपूर रहल से ओकर उपयोग करे का जुगत में शुरु क दिहनी भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट अंजोरिया . ओह पर प्रकाशित करे ला साहित्य उपरावल शुरु कइनी तब फेरु याद आइल रमबोला. पता लगावत-लगावत आखिरकार हरीन्द्र जी से संपर्क मिलिए गइल. रमबोला के बारे में पूछनी त पता चलल कि दुसरका संस्करण छापे खातिर प्रेस में भेजल बा मिलते हमरा लगे भेज दीहल जाई. आ करीब ठीक एक बरीस बाद रमबोला के दुसरका संस्करण हमरा हाथ में बा.

सतसईया के दोहरे अरु नाविक के तीर, देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर – वाला उक्ति रमबोला को बारे में सोरहो आना साँच बा. देखे में त दूबर पातर बा बाकिर जस जस पढ़त जाएब तस-तस एकरा आनन्द सागर में डूबत चलि जाएब. मन ना करी कि एह आनन्द अनुभूति से बाहर निकलीं.

रमबोला के समीक्षा लिखत डॉ ब्रजभूषण मिश्र जी लिखले बानी कि –

आजादी के कुछ अरसे बाद जब प्रगतिशील आन्दोलन ने साहित्य के क्षितिज को छूना प्रारम्भ किया और आम आदमी को उसके सुखों-दुखों की वाणी मिलने लगी, तब भोजपुरी प्रबंधकाव्य भी उससे अपनी ऑंखें चुरा नहीं सका। भोजपुरी भाषी क्षेत्र में जनमे जननायक जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन के फलःस्वरूप राष्ट्र की सामाजिक चेतना के जो परिणाम लक्षित हुए, उससे सत्ता का परिवर्त्तन हुआ और पूरे देश में एक नयी आस्था, एक नया विश्वास और आम आदमी के प्रति एक नया दृष्टिकोण विकसित हुआ। संभवतः यही कारण था कि अब तक के उत्पीड़ित, उपेक्षित, अगणित और निरीह चरितनायक-नायिकाओं के प्रति भोजपुरी प्रबंधकाव्य अचानक मुड़ गया। ‘बनवासी की शक्ति-साधना‘ (रामबचन लाल श्रीवास्तव), ‘रमबोला‘ (हरीन्द्र हिमकर, 1977 ई.), ‘लवकुश‘ (तारकेश्वर मिश्र राही, 1982 ई.), ‘द्रौपदी‘ (चन्द्रशेखर मिश्र, 1982 ई.), ‘निरधन के धनश्याम‘ (रामबचन शास्त्री ‘अंजोर‘, 1982 ई.), ‘द्रौपदी‘ (दूधनाथ शर्मा, 1982 ई.), ‘सेवकायन‘ (अविनाश चन्द्र विधार्थी, 1984 ई.) में यह स्वर मुख्यरूप से मुखरित हुआ- कभी विवरण में, कभी व्यंग में कभी परिवर्त्तन की संभावनाओं में, कभी आम आदमी को प्रतिश्ठित करने के संदर्भ में और अक्सर मान्य आभिजात्य परंम्पराओं को तोड़ने में। हरीन्द्र हिमकर ने तुलसी जैसे स्थापित संत कवि को आम आदमी की तरह खींचकर वास्तविक धरती पर ला खड़ा किया और उनके माध्यम से आधुनिक संस्कृतिकर्मियों की उपेक्षा और संघर्ष को वाणी दी।

…….

आठ तारांकित खण्डों में आबद्ध ‘रमबोला‘ में कल्पना का उपयोग उतना अधिक हुआ है कि कथा अपनी भूमि से ऊपर उठकर, कल्पना के पंखों पर सवार होकर वायव्य हो गई है। ‘रमबोला‘ गोस्वामी तुलसीदास के जीवन पर आधारित भर है, लेकिन उसके तुलसी आधुनिक संदर्भों में जीते हैं और वे आज के संघर्षशील रचनाकारों के प्रयत्नों के प्रतीक बन गये हैं, जो वर्त्तमान सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अपनी रचनाधर्मिता का युद्ध लड़ रहा है। यों तो कवियों को उनके भोजपुरी खण्डकाव्यों में सर्वथा पृथक रखकर देखना संभवतः समीचीन नहीं होगा; क्योंकि, ये कवि अपने खण्डकाव्यों के साथ इतनी सघनता से जुड़े हैं कि कभी-कभी तो उसकी कथा, वर्णन शैली, चरित्र या गीतात्मकता के साथ उनका तादात्मय-सा हुआ दृष्टिगत होता है। ‘रमबोला‘ के कवि हरीन्द्र हिमकर ने जिस वैयक्तिक परिस्थियों में काव्य रचना की थी, उनमें केवल यही स्वाभाविक था कि अपनी विपरीत परिस्थितियों के विरूद्ध अपने को स्थापित करने के लिए कोई संघर्षशील कवि संघर्षशील हो और यह कथा गोस्वामी तुलसीदास को इस परिस्थितियों में रखकर बड़े प्रभावषाली ढंग से प्रस्तुत की गई है –
कब दूध मतारी के पी के लइका ढेकरी
कब कवनो तुलसी का घर होई काशी,
कब कवनो तुलसी टेटनस भइले ना मरिहें,
कहिआ ले ई सतमी होई पुरनमासी?

…..

‘रमबोला‘ अपनी क्षीण काया के बावजूद छाप छोड़ने में वृहदाकार ग्रंथों को पीछे छोड़ देता है। यह भोजपुरी प्रबन्धकाव्य की परंपरा को तो परिपुष्ट करता ही है, भोजपुरी कविता की परम्परा में अपनी स्तरीयता के कारण उद्हरण बनकर उपस्थित हुआ है। वैसे भोजपुरी कविता के क्षेत्र में कवि हरीन्द्र हिमकर की पहचान का परिचायक भी है।

रमबोला अपना पूरा रुप में भोजपुरिका पर पहिले से मौजूद बा. बाकिर हम चाहब कि रउरा सभे एह किताब के खरीद के पढ़ीं. किताब के छपाई रचने लेखा सुघड़ भइल बा. रमबोला बिहार विश्वविद्यालय के भोजपुरी पाठ्यक्रम में शामिल बा.

प्रकाशक हउवें –

नवारंभ
63, एम आई जी,
हनुमान नगर,
पटना – 800020
फोन – 08434680149

लेखक के संपर्कसूत्र –
हरीन्द्र हिमकर,
हिन्दी विभागाध्यक्ष, खेमचन्द ताराचन्द कॉलेज,
प्रोफेसर कॉलोनी,
रक्सौल,
पूर्वी चंपारण – 845305
फोन – 09430906202

Loading

1 Comment

  1. VISHAL

    PADH K ACHCHA LAGAL

Submit a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

संस्तुति

हेल्थ इन्श्योरेंस करे वाला संस्था बहुते बाड़ी सँ बाकिर स्टार हेल्थ एह मामिला में लाजवाब बा, ई हम अपना निजी अनुभव से बतावतानी. अधिका जानकारी ला स्टार हेल्थ से संपर्क करीं.
शेयर ट्रेडिंग करे वालन खातिर सबले जरुरी साधन चार्ट खातिर ट्रेडिंगव्यू
शेयर में डे ट्रेडिंग करे वालन खातिर सबले बढ़िया ब्रोकर आदित्य बिरला मनी
हर शेेयर ट्रेेडर वणिक हैै - WANIK.IN

अँजोरिया के भामाशाह

अगर चाहत बानी कि अँजोरिया जीयत रहे आ मजबूती से खड़ा रह सके त कम से कम 11 रुपिया के सहयोग कर के एकरा के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराईं.
यूपीआई पहचान हवे -
anjoria@uboi


सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
anjoria@outlook.com
पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.


अबहीं ले 10 गो भामाशाहन से कुल मिला के पाँच हजार छह सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)


18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
रामरक्षा मिश्र विमत जी
सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


अँजोरिया के फेसबुक पन्ना

Categories

चुटपुटिहा

सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


अउरी पढ़ीं
Scroll Up