– डा॰ कमलेश राय
हम अइना हर आँगन क हर चेहरा के रखवार हईं
राख सहेज त एगो हम, तोरऽ त कई हजार हईं.
हिय में सनेह से राखी लां
दुख के पीड़ा सुख के उछाह
निरखी ला रोज थिर रहि के,
जिनिगी के सगरी धूप छाँह.
छन में अधरन के मीठ हँसी,
खन में अँसुअन के धार हईं.
हम अइना हर आँगन क हर चेहरा के रखवार हईं.
हर घरी समय के सांच बदे
हमहीं साखी, हमहीं नजीर,
हमके काशी काबा से का,
सगरे युग के हमहीं कबीर.
पहिचान जोगाईं ला सभकर,
अँखियन के हम उजियार हईं,
हम अइना हर आँगन क हर चेहरा के रखवार हईं
हम सभकर रूप रंग बाकिर,
ना रंग रूप कवनो हमार.
हमके निहारी के सिरजन के,
हर सूरत के सँवरे सिंगार.
हम सूरुज के निर्छल अँजोर,
सबका मन के एतबार हईं.
हम अइना हर आँगन क हर चेहरा के रखवार हईं
सुन्दर आ उम्दा रचना बा .