– जयंती पांडेय

हम भ्रष्टाचार के भविष्य के लेके निश्चिंत बानी. ई एकदम सत्य हऽ कि खाली हमनिए के देस में भ्रष्टाचार आ भ्रष्टाचरियन खातिर तमाम संभावना आ सुविधा बा. हमनिए के ई हुनर हऽ कि हमनी का कहीं भी, कबहुओं करप्शन के बुनियाद रख सकेनी सन. क्षेत्र चाहे राजनीति के हो चाहे संस्कृति के, हमनी कदाचार के बीया उगाइए लेनी सन. अपनहुं खाएनी सन आ सामनहु वाला के खाए दबाए के पूरा मोका देनी सन. ई त भ्रष्टाचार के पवित्र नियम हऽ कि दोसरा के मुट्ठी गरम कइला बिना आपन मुट्ठी गर्म ना हो सकेले.

भ्रष्टाचार के संस्कृति के नित नया आयाम देवे में हमनी के जन-हितैषी राजनेता लोग महत्वपूर्ण योगदान कइले बा लोग. सत्ता पावे के ई मतलब ना होला कि आप हमेशा जनते का बारे में सोचीं, चाहे उनकर सुख-दुख के ख्याल राखीं. अपना आ अपननो के बारे में सोचे परेला. पइसा कहां से आई, कइसे आई एह पर गहन मंथन करे के परेला. तमाम तरह के योजना बनावे के परेला. गांव के भले बुझाउ कि कि सत्ता में रहिके पइसा कमाइल बहुत आसान हऽ, पर वास्तव में ई बेहद मुश्किल काम हऽ. बैलेंस बनाके चले के होला. छवि साफ-सुथरा रखे के होला. चेहरे के रूप-प्रतिरूप के साधे-संवारे के होला. अगर विधायक चाहे मंत्री बाड़े तऽ जनता के नजर में रहे पड़ेला. एक बेर पद से हट गइले तऽ केहु ना पूछे . सोचीं केतना कठिन काम हऽ. छविओ बनावे के बा आ पइसो. हालांकि बड़का तबका के लोगवन खातिर मुसकिल तनी कम बा. जइसे अफसरन खातिर ई रास्ता तनी असान बा. घोटालन में नेता जल्दी आवे ला लोग आ अफसर बाद में. हालांकि फंसेला दूनों में केहु ना. ना बड़का मछरी आ ना छोटका सिधरिया. आ केकड़न के तऽ चान्दी बा. भ्रष्टाचार के केकड़ा हर जगहि मौजूद बाड़े सन. एही से ई दोहरा रवैया बन होखे के चाहीं. करप्शन के विरोध बन कईल जाउ. आ एगो बात अउरी बा कि जे दूचार आदमी ईमानदार रहिए गइल तऽ का होई. बस अतने नऽ कि लोग कही, फलनवा बड़ा इमानदार रहले. एह से कवन पद्म पुरस्कार मिल जाई. ई पुरस्करवो ऊ बेइमनवां ले जइहें सन. एह से आटा चाउर आ माटी के तेल मिली ना. ऊ तऽ ओकरे मिली जेकरा लगे अर्थ बा उहे समर्थ बा ना तऽ सब बेअर्थ बा. जे सांच कहीं तऽ हमनी के ई भ्रष्टाचरियन के सभ्यता संस्कृतियो के नायक बना देले बानी सन. एगो तऽ बात तय बा कि भ्रष्टाचार बढ़ी तऽ अर्थव्यवस्था के रफ्तार बढ़ी. अब केहु दू नम्बर से पइसा कमाई तबे नु आलीसान बंगला बनवाई ना तऽ ईमानदारी से कमावे वाला तऽ पांच सौ हजार वर्गफुट के फ्लैट बैंक से लोन ले के कीनी आ ओही के देत देत मरि जाई. जब खबर आवेला कि भारत कें रुपिया स्वीस बैंक में जमा बा तऽ मन गदगद हो जाला. विदेशी लोग दांत से अंगुरी दबा के कहेला ‘ओह इंडिया इज सो रीच.’ ई जान जाई कि भ्रष्टाचार के बिना हमनी का माने हमार देश वल्ड पावर ना बन सके.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

Loading

%d bloggers like this: