अर्थ बा त समर्थ बा ना त बेअर्थ बा

– जयंती पांडेय

हम भ्रष्टाचार के भविष्य के ले के निश्चिंत बानी. ई एकदम सत्य ह कि खाली हमनिये के देस में भ्रष्टाचार अउर भ्रष्टाचारियन खातिर तमाम संभावना आ सुविधा बा. हमनिये के ई हुनर हऽ कि हमनी का कतहियों, कबहुँओं करप्शन के बुनियाद रख सकेनी सँ. क्षेत्र चाहे राजनीति के हो, चाहे संस्कृति के. हमनी कदाचार के बीया उगाइये लेनी सँ. अपनहुँ खायेनी सँ आ सानहुवाला के खाये दबावे के पूरा मौका देनी सँ. ई त भ्रष्टाचार के पवित्र नियम ह कि दोसरा के मुट्ठी गरम कइला बिना आपन मुट्ठी गरम ना हो सके.

आज करप्शन का नांव पर उहे लोग हो हल्ला मचा रहल बा, जेकरा करप्ट होखे के मौका ना मिलल. जसहीं मौका मिली, ऊ आपन ओठ सी लिहें. ई रीति जमाना से चलि आ रहल बिया. लोग भ्रष्टाचार के विरोध करत समय ई ताक में लागल रहेला कि उनका कब मलाई के परमानेंट सोर्स मिल जाई. अइसन होतहीं ऊ लोग भ्रष्टाचारियन के जमात में शामिल हो जाई. देश में भ्रष्टाचारी लोगन के संख्या एही से बढ़ रहल बा आ बढ़त रही. कुछ लोग त करप्शन के विरोध एह से कर रहल बा कि चर्चा में आ जाई. ऊ भ्रष्टाचार के संस्कृति के मुखालिफ ह लोग आ कहीं जे अगर उनुका करप्शन पर कुछबोले के कह दिहलजाउ त एकतरफा बतियाई लोग. ओकरा गहिराई में ना जाई लोग. खुद चाहें केतनो भ्रष्ट चाहे दुराचारी काहे ना बने के चाहे लोग लेकिन भ्रष्टाचार के गरिअवले बिना उनुका अङ्ही ना आवे. ई बौद्धिक बेईमानी ना त अउर का हऽ ?

भ्रष्टाचार के संस्कृति के रोजे नया आयाम देबे में हमनी के जन हितैषी राजनेता लोग महत्वपूर्ण योगदान कइले बा लोग सत्ता पावे के ई मतलब ना होला कि आप हमेशा जनते का बारे में सोचीं आ उनका सुख दुख के खयाल राखीं. अपना आ अपननो का बारे में सोचे के पड़ेला. पइसा कहाँ से आई, कइसे आई, एह पर गहन मंथन करे के पड़ेला. तमाम तरह के योजना बनावे के परेला. गाँव के भले बुझाउ कि सत्ता में रहि के पइसा कमाइल बहुते आसान हऽ, पर वास्तव में ई बेहद मुश्किल काम हऽ. बैलेंस बना के चले के होला. छवि साफ सुथरा रखे के होला. चेहरा के रूप प्रतिरूप के साधे सँवारे के होला. अगर विधायक चाहे मंत्री बाड़े त जनता के नजर में रहे पड़ेला. एक बेर पद से हट गइले त केहु ना पूछे. सोचीं केतना कठिन काम हऽ. छविओ बनावे के होला आ पइसो. हालांकि बड़का तबगा के लोगवन खातिर मुश्किल तनी कम बा. जइसे अफसरन खातिर ई रास्ता तनी असान बा. घोटालन में नेता जल्दी आवेला लोग, अफसर बाद में. हालांकि फँसेला दूनों में केहु ना. ना बड़का मछरी ना छोटका सिधरिया. आ केंकड़न के त चान्दी बा. भ्रष्टाचार के केकड़ा हर जगहि मौजूद बाड़े सँ. एहि से ई दोहरा रवैया बन होखे के चाहीं. करप्शन के बन कइसे कइल जाउ. आ एगो बात अउरी बा कि जे दू चार आदमी ईमानदार रहिये गइल त का होई. बस अतने न लोग कही, फलनवा बड़ा इमानदार रहले. एहसे कवन पद्म पुरस्कार मिल जाई. ई पुरस्करवो ऊ बेइमनवां ले जइहें सँ. एह से आटा चाउर आ माटी के तेल मिली ना. ऊ त ओकरे मिली जेकरा लगे अर्थ बा ना त सब बेअर्थ बा. जे सांच कहीं त हमनी के ई भ्रष्टचारियन के सभ्यता संस्कृतिओ के नायक बना देले बानी सँ. एगो बात त तय बा कि भ्रष्टाचार बढ़ी त अर्थ व्यवस्था के रफ्तार बढ़ी. अब केहु दु नम्बर से पइसा कमाई तबे नू आलीशान बंगला बनवाई ना त ईमानदारी से कमाये वाला त पाँच सौ हजार वर्गुफुट के फ्लैट बैंक लोम ले के कीनी आ ओही के चुकावत मरि जाई. जब खबर आवेला कि भारत के रुपिया स्विस बैंक में जमा बा त मन गदगद हो जाला. विदेशी लोग दाँत से अंगुरी दबा के कहेला, “ओह, इंडिया ज सो रीच.” ई जान जाईं कि भ्रष्टाचार के बिना हमनी का, माने हमार देश, वर्ल्ड पावर ना बन सके.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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