कबहुं केहु सब्जी तरकारी के बारे में सोचल?

by | Jul 15, 2012 | 0 comments

– जयंती पांडेय

एक दिन बाबा लस्टमानंद बड़ा दुखी हो के रामचेला से कहले, हो भाई जदि तोहरा थरिया में परल तरकारी ठीक ना बनल त तूं का अपना मेहरारू के गरियइबऽ कि उल्टा सीधा बोलबऽ? ना नु. लेकिन केहु सब्जी के भावना के खेयाल ना करे. ऊ त आपन खीस सब्जियन पर निकाल ले ता. अब देखऽ केहु के औकात देखावे के बा त कहल जाई ‘तूं कवना खेत के मुरई हउअ?’ अब ई सुनते जेकरा के कहल जाई ऊ झगड़ा क दी. लेकिन कबहु केहु सोचल कि मुरई के कानफिडेंस पर एकर का असर परत होई. केहु ना सोचे. जबकि लोग रोज मुरई के कांच से लेके पका के खाला, अचार बना के खा लेला. ओकर सेवा के लोग बिसार दे ता. मुरई के बाद सबसे ज्यादा निंदा के पात्र चना होला. ई ऊ चना ह जेकर बादशाह शाहजहां खाए के प्रस्ताव दिहले रहले जब उनका के गिरफ्तार क के औरंगजेब पूछलसि कि ऊ एगो कवनो अनाज खा सकेले. एह पर शाहजहां कहले कि ऊ चना खइहें. काहे कि इहे एगो अनाज बा जेकरा कच्चा से ले के भूंज के, पीस के, पका के, भिंजा के सब तरह से खाइल जा सकेला. लेकिन एही चना पर सबसे ज्यादा कहावत बा. पंच जे बा से अकेला चना भाड़ ना फोरेला से ले के लोहा के चना चबावल ले ना जाने केतना कहावत गढ़ दिहले बा. सब कहावत डेरोगेटरी बा. एको गो कहावत में बेचारा चना के बड़ाई नइखे। ई पक्का मान ल रामचेला कि जे तरकरियन का ओर से मुकदमा के गुंजाइश रहित त एह देश के हर आदमी पर एगो मोकदमा चलत रहित.

आम आदमी जब बेमार परे ला बड़हन- बड़हन डाक्टर अनार के रस पीए के सलाह देला. लेकिन ओही अनार जब लूगा लूटे के होला त लोग चट दे कहि देला कि एगो अनार सौ गो बेमार. अब सोचऽ कि अनार के अगर बाल बच्चा होईत आ पूछ सकित त पूछित कि ना कि तहरा बारे में लोग अइसन काहे कहे ला? त का जवाब बा तहरा लगे?

बैगन के बारे में देखऽ. कहल जाला कि ऊ तरकारी के राजा ह. लेकिन ओकर औकात त नोकरो के नइखे. जब कवनो दल बदलू के बारे में कहे के होला त चट दे कह दियाला कि फलनवां थरिया के बैंगन ह.

ओसहीं दाल जेपर कई हाली सरकार हिल गइल, ओहु के पंच ना छोड़ल. जब कवनो भ्रष्टाचार के बात कहे के होई त कहि दियाई कि दाल में कुछ करिया जरूर बा. अगर लइकी ना पटल त कहि दियाई कि दाल ना गलल. हम आजु ले अइसन दाल ना देखनी जे कूकर के सीटी पर ना गले लेकिन लोग खट दे कहि देला कि दाल ना गलल.

एकरा अलावा गजरा मुरई के नाहिन कटा गइल त केहु कहि देला कि खरबूजा के देखि के खरबूजा रंग बदलेला आ करैला नीम पर चढ़लो कहावत सुनले होई सभे. अतने नइखे, भोजपुरी भाषा के शब्द शास्त्री अंजोरिया वाला ओ.पी सिंह जी से निहोरा करब कि ऊ बन सके त ई मुहावरा कइस बनल, कइसे चलन में आइल, लोगन के बतावल जाए.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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