डाक विभाग के नांव बदलल जाउ

– जयंती पांडेय

बाबा लस्टमानंद कलकत्ता अइले. उहां उनकर नाती नोकरी करत रहे. ओकरा बगल में एगो आदमी रहे , बेचारा मजदूर. अपने ओर के. ओकर बाप बाबा के परिचित. बड़ा चिंता में रहे. सुनलस कि बाबा आइल बाड़े त भेंट करे चलि आइल. ओकरा देखते बाबा खिसिया गइले, तोर माई मू गइल पइसा के बिना आ तें एहिजा गुलछरा उड़ावऽतारे. ऊ बेचारा रोए लगलस. बतवलस कि माई के बेमारी में पांच हजार रुपिया भेजले रहनी. माई ऊपर चहुंप गइल लेकिन रुपिया ना पहुंचल. अब ओकरा लेवे खातिर रोज जातानी. एकदम भिखमंगा के हाल हो गइल बा. लेकिन पइसा नइखे मिलत. रोज चक्कर काटऽतानी. जानऽतारऽ बाबा? ऊहां जे बाबू बइठल बा ऊ कहऽता कि ‘बेफालतू जन बोलऽ , ई डिपाट एकदम उत्कृष्ट सेवा खातिर मशहूर बा.’ तहार माई ऊपर चलि गइली त का, डाकपिउन उनकर पता जोहे ऊपर गइल होई, अब अनजान रस्ता बा, ओहिजा जाए आवहू में टैम लागी. जोहहू में टाएम लागी. लेकिन घबरइहऽ जन, एकदम तहरा महतारी के लगे रुपिया चहुंप जरूर जाई.

दोसरा दिने ऊ बाबा लस्टमानंद के ले के डाकघर गइल. ओकरा देखते डाकबाबू लगले चिलाये. चलि अइलऽ. पइसा मांग मांग के हरान क दिहले बाड़ऽ. ऊ बेचारा मजदूर कहलस, बाबू हमार गति त एकदम भिखमंगा के हो गइल बा. डाकबाबू भड़क गइले. कहले, देखत नइखऽ हम तहरो से बड़हन भिखमंगा भ गइल बानी. सुबेरे से सांझ ले घिघिआनी, लोग से दांत चियारेनी कि कुछ द लोगिन. ना त फाइले के नांव पर द. लेकिन केहु नइखे देवे वाला. ऐने सब काउंटर बुक बा. सांझ के सबके पइसा बान्हल बा. अगर ना देहल त खैर नइखे. तहरा जे काम करवाये होखो त पाकिट ढील करऽ. ना त दऊरत रहऽ. अब बाबा से सहाइल ना. कहले, तूं भाई बेईमानी करऽ तारऽ. एह पर डाकबाबू ठठा के हंसले. कहले, ऊ जमाना गइल जब इमानदारी सर्वोत्तम नीति कहात रहे. हमरे एरियर के पइसा फंसल बा. दू हाली के इशोरेंस के पइसा नइखे मिलत. हम का करीं. ऊ लोग उहां से थाना में आइल कि ओहिजा कम्पलेन कइल जाई , लेकिन ओहिजा तैनात दरोगा कहलस कि बेपइसा के कम्पलेन ना लिखी आ कम्पलेन ना होई त जांच कइसे होई? अब बाबा आ मजदूर के आंखि खुल चुकल रहे. ऊ लोग पइसा ना दी. पइसा हार जा. बाबा ओहिजा से गांव लवट के अइले आ एगो अखबार के सम्पादक जी के लिखले कि, जइसे लोग आज काल ‘राम के रामा, आ कृष्ण के कृष्णा आ अशोक के अशोका कहल जाता ओसही डाक विभाग के डाका विभाग कहल जाऊ.’


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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