– जयंती पांडेय
सरकारी बीवी, बहू, समधिन, समधी लांग लाइफ काम देला लोग, रिटायर हो गइला के बादो. सरकारी होखला के फायदा रिटायर्ड होखला के बादे बुझाला. सरकारी आदमी के अरदवाय बेसी होला, ढेर दिन ले पेंशन खाला. जेतना वेतन ना पावे, ओकरा से बसी पेंशन पा जाला. पराइवेट नोकरी करे वाला आदमी वर्तमान दांव पर लगावेला, भविष्य में धोखा खाऽला. न जवानी में कुछ हाथ लागेला और ना ही बुढ़ापा में हाथ में कुछ रहेला. खा-पीके इंटरवल हो जाला. किस्मत ठीक रहल तऽ रही तो ..’द एण्ड.. भी सुखद हो जाला ना तऽ आखिरी पड़ाव में नरक अईसन जीवन जीये के बाध्य हो जाला.
सरकारी होखे के फायदा ही फायदा बा. देश गर्त में जाए, चाहे चांद पर, पहला तारीख के वेतन जरूर हाथ में आ जाला. सरकारी आदमी के तेवर मौसमी होला, कभी नरम-कभी गरम. सरकारी ढंग से सब कुछ चलेला. सरकारी होखे में ही फायदा बा काहे कि सरकारी होके गैर-सरकारी कामकाज निपटा सकेला. कई सोरसन से कमा सकेला. बीवी के नाम से एल आई सी, साली के नाम से आर डी, साला के नाम से सूमो चला सकेला.
सरकारी होखे के फायदा ही फायदा होला. तबे तऽ लोग सरकारी रिश्तेदार पसंद करेला. इहे वजह हऽ कि हमार परम मित्र पांडेजी अपने छोटका के खातिर एगो सरकारी बहू के खोज में लागल बाड़े. सरकारी नर्स चली पर निजी अस्पताल में काम करऽत डॉक्टर ना. सरकारी स्कूल के प्राइमरी टीचर चली लेकिन जूनियर कॉलेज में हेडमास्टरिन ना चली. सरकारी कुछऊ चली.
हमार सरकारी दोस्त लोग सरकार के पाछे चल के घर बना लिहल लोग. प्लॉट खरीद लिहल लोग. सरकारी क्वार्टर भाड़ा पर दे दिहल लोग. ऊ लोग चैन के बांसुरी बजा रहल बा और एक हम बानी कि आधा नौकरी खत्म होला के बाद भी पैदले चलऽ तानी. गलियन में धूरा फांकऽ तानी. जोहऽ तानी च्यवनप्राश पर घासो नइखे भेंटातऽ. हमार हालत दूध से बाहर निकाललऽ माछी अइसन हो गइल बा. घाट तऽ रहल ना, हम जरूर धोबी के कुत्ता हो गइल बानी. बड़ा दु:ख होला. जब विदेशी नस्ल के पिल्ला के देसी मेम के कोरा में मौज मनावत देखेनी तऽ बुझाला कि हमरा
से निमन तऽई पिलवे बाड़े सन. घर में कालीन पर और सड़कं पर आलीशान कार के पछिलका सीट पर घूम रहल बाड़े सन.
हम आपन दुखड़ा ईमानदारी से सुना दिहनी. अब फैसला आपके करेके बा कि आप सरकारी बनल पसंद करेब कि गैर सरकारी रहऽ के गुजर बसर करेब. फैसला आपके. तकदीर आपके. हम तो सिर्फ अलर्ट कर सकेनी. सरकारी लोग घरहुं लवटी तऽ वीआरएस समेत. गैर-सरकारी लोग कब और कइसे बिग दिहल जइहें, केहु नइखे जानत.
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
केहू के मुहँ से सुनले रहलीं “नोकरी करऽ त सरकारी ,ना त बेचऽ तरकारी “.ओही तर्ज पे राउर कुछ रचना बा . बड़ी निक लागल जयंती पांडेय जी .
बहुत – बहुत धन्यवाद !
ओ.पी .अमृतांशु