– जयंती पांडेय
जबसे आम आदमी राजनीति के अंगूर हो गइल तबसे राजनीति के नशा लोग पर अइसन छा गइल बा कि जेकरा देखऽ ऊ पी एम से नीचे के सपने नइखे देखत. लोग के चैन नइखे. ना केहु के भूखि लागऽता ना पियास. ना ठंडा के परवाह ना शीतलहरी के. जेकरा के देखऽ परधानमंत्री बने के चक्कर में लागल बा. घूरहू से लेके नरेंदर साव ले आ कृष्ण लाल से ले के लम्बोदर पांड़े ले जेकरा के देखऽ दिल्ली कीयोर मुंह उठवले दउरल जा ता. चाहे जंहवां जगहि मिलऽता उहें खड़ा हो के घिघियाता कि हमार दावा बा, हमरा के पीएम बनाव लोग. हम बिजली पानी फ्री क देब, गांव में इस्कूल खोलवा देब, रोड बनवा देब. संसद मार्ग से लेके गांव के खेतन के मेड़ पर ले जेकरा तनिको बइठे के जगहा मिलल कि ऊ ओहिजे बइठ के पी एम के कुर्सी के सपना देख रहल बा आ संगे संगे भाषण रटे में लागल बा. सब लोग इहे सोचऽता कि कहीं चुनाव भइल आ वोटर के मन बदल गइल त हम परधानमंत्री हो गइनी. एकरा बाद त लाल किला से अइसन भाषण देब कि लोग दांतन तले अंगुरी ना दबाई बलुक अंगुरिये काट ली. जेकरा कनस्तर में दू गो रोटी के आटा नइखे उहो रोटी के जोगाड़ छोड़ के प्रधानमंत्री के कुर्सी के जोगाड़ में लाग गइल बा.
अइसन बुझाता कि पी एम के कुर्सी ना भइल लाटरी हो गइल. कहीं हमरे ना निकल आवे. वइसे इ पद अब लाटरिये हो गइल बा. माने कि अनगिनत आंख आ सपना एके गो. इहां तकले कि जेकरा आंख में जोत नइखे, चाहे दुपहरियो में जेकरा अन्हार लउकऽता उहो प्रधानमंत्री होखे के सपना देखे में लाग गइल बा. कतना लोग आंखि के डाक्टरन के नाक में दम क दिहले बा कि अइसन चश्मा द कि सपना एकदम साफ लउके. उ त ऊ, सबसे दर्दनाक त बात बा कि हमरा बगल के रामकिशोर चौधरी ले जे पार्टी के आजु ले पाल्टी कहले, उहो सपना देखऽतारे.
एक दिन त लस्टमानंद के खद्दर के कुर्ता धोती सूखे खातिर फींच के पसारल रहे ओहि के ऊ कांखि तर दाबि के दिल्ली निकल गइले. कई हाली कलकाता में भासा के आंदोलन चला रहल एगो नेताजी खादी के कुर्ता पैजामा पहिरले वोट क्लब पर भेंटा गइले. सवचला पर पता चलल कि ऊ पीएम बने के चक्कर में ओहिजा घूरी काटऽ तारे. कई हाली अखबारन में टी वी कहल जाला कि जनता के काम सपना देखल ना ह खाली घोटाला ग्रस्त देश के अर्थ व्यवस्था के सुधारे के खातिर टैक्स दीहल ह. सपना देखल खाली नेता लोग के काम ह आ उहो सत्ताधारी दल के नेता के काम. लेकिन लोग बा जे मानते नइखे.
हम त इ कहब कि पी एम पद के हाई वोल्टेज सपना देखला से आंखि खराब हो सकेला लेकिन केकरा डर बा, आंखि बा तबो सपना आ ना रही तबो सपना.
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
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