अब नांव के ले के परेशानी

by | Feb 23, 2012 | 0 comments

– जयंती पांडेय

बाबा लस्टमानंद कलकाता अइले. उनका गांव के लोग इहां रहऽत रहे. ओहमें सबसे जियादा नांव रहे एकसिया बाबा के बेटा ठटपाल तिवारी के. अब बाबा उनका बाप से उनकर नांव पता ले लेहले आ पहुंच गइले खोजे. कलकाता के साल्ट लेक महल्ला आ सब केहु चेहरा पर एगो शान आ दंभ ओढ़ले घूमत रहे. खोजत – खोजत उनका पता जा पहुंचले.

अब दरवाजा पर जवन नांव लिखल रहे ऊ रहे टी. पॉल. बाबा के हाथ के पुर्जा पर लिखल रहे ठटपाल आ इहां तऽ कवनो टी पाल रहऽता. लवटि अइले. अपना नाती अर्जुन नंद के घरे जा के बतवले कि एकसिया बाबा के बेटवा के जोहे गइल रहीं लेकिन बुझाता कि ऊ घर छोड़ देले बा. ओहिजा कवनो
टी पाल के नाव लिखल बा. लवटि अइनी हंऽ. बड़ा बेकहल हो गइल बाड़े सन ई लइका. खैर कवनो तरीका से समझा बुझा के घरे भेज दिहले.

हमनी के जीवन में कई गो बात नत्थी बा जेहपर हमनी के आपन कवनो हक नईखे. जइसे आपन पड़ोसी, आपन माई बाप आ आपन नांव. ई बस हो जाला एकर चुनाव ना कइल जा सके. लेकिन आज के दुनिया में पहिलका दू गो बात तऽ आपके अधिकार में नईखे लेकिन नांव पर अब हक बा. भदेस नांव बा तऽ दन दे बदल दऽ. अखबारन में तऽ नांव बदले के एगो कालमे खुल गइल बा. लेकिन एहु में एगो बड़ा आश्चर्यजनक बात बा कि नांव बदले वाला 98 प्रतिशत लोग मर्द हऽ मेहरारू नांव बदलबे ना करऽ सन. एह में हमनी के नेता लोग भी पीछे नईखे. उनकर नांव मशहूर हो गइल बा तऽ लोग आपन नांव नईखे बदलत आ ई गोस्सा शहरन पर उतारऽता. अब देखऽ बम्बई के नांव मुम्बई हो गइल आ मद्रास चेन्नई हो गइल, बंगलोर पर तो रोज विवाद होला कि बंगलूर हऽ कि बंगलुरू. बंगाल बंग हो गइल. अब देखऽ कि बंगाल के बाहर बंगाली डाक्टर बंगो डाक्टर हो जहिये सन आ बंगाली रसगुल्ला बंगो रसगुल्ला कहाये लागी आ बंगाल के जादू बंगो जादू हो जाई. अब कोलकाता जा तऽ नया हरानी. ममता दीदी जब रेलमंत्री भइली तऽ इहवां के मय मेटो रेल के स्टेशनन कं नांव बदल दिहली. अब नांव हो गई उभम कुमार आ मास्टर दग् वगैरह- वगैरह.

एक ओर लोग दनादन नांव बदलऽता दोसरका ओर केहू के नांवे नइखे मिलत कि नाती पोता के का नांव दी. अरे दू चार के टेलीफोन डायरेक्टरी मंगवा लेते तऽ बात बनि जाइत. कई बेर ढेर प्रचारित नांवो से बडहन प्राबलम हो जाला. अभी अण्णा के नांव चलल बा. कई गो मेहरारू अपना बेटन के नांव अण्णा ध दिहले बा. अब आगे जा के कवनो लइकी अण्णा से कइसे बियाह करी काहे कि अण्णा के माने होला भइया.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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