आजु काल्हु बेईमान लोग बड़ा परसान बा

by | Dec 20, 2011 | 1 comment

– जयंती पांडेय

बेचारा बेईमान लोग बड़ा परसान बा रामचेला. ससुरा ईमानदार लोग ऊ लोग के बड़ा परसान करऽ ता. केहु धरना दे ताऽ, केहु प्रदर्शन करऽ ता आ केहु तऽ अनशन पर बईठ जा ताऽ. बईमान लोग परसान हो गईल तऽ एगो मदारी पासवान के ताड़ीखाना में एगो मीटिंग बोलावल लोग. अब ई मति पूछिहऽ कि ताड़ी खाना में काहै मीटिंग बोलावल लोग. हां तऽ राजघाटो में बोलाइत लोग तऽ गांधी बाबा का कऽ लिहें. मीटिंग के मेन मुद्दा रहे कि ई ईमानदार लोगवा से कइसे पार पावल जाउ. एगो जूनियर बेईमान बोललस कि ई इमानदार लोगवा के दिमाग खराब हो गईल बा. दोसरका बोललस कि जेकर दिमाग खराब होला उहे ईमानदार होला. तीसरका कढ़वलस कि ई इमानदार लोग परजातंत्र के बहुत गीत गावेला. पंचवा कहलस कि गावे ला लोग तऽ गावे आ हमनी पर आपन बात काहे थोपे के खातिर पीछे लागल बा लोग. हमनी का कबहुं कहनी सन कि तूं लोग बेईमानी करऽ लोगिन. एगो बूढ़ बेईमान बईठलव रहे. चुपचाप सबके बात सुनऽ रहे. अभी ओकरा पर ताड़ी ना चढ़ल रहे. पूरा लबनी गटक गईल तऽ दिमाग चले लागल. ऊ खंखार के कहलस कि काहे अतना हरान बाड़ऽ लोगिन. बेईमानी के इतिहास ओतने पुरान बा जेतना पुरान ई सभ्यता के इतिहास. महाभारत में नईखऽ पढ़ले. आतना बढ़हन ग्रथ खाली एही से लिखल गईल कि बेईमानी रहे. बेईमानी ना रहित तऽ महाभारत ना होईत आ महाभारत ना होईत तऽ ओतहत ग्रंथ कइसे लिखाइत. एगो बड़ा क्रांतिकारी नौजवान बेईमान रहे ऊहंवां. कहलस कि बाबा आदम के जमाना के बात कहि लोग के बहलाव मत. अब का कईल जाउ. बुढ़ऊ ओकरा अकिल पर तरस खा गइले. कहले कि नया जमाना के बात सुने के चाहऽ तारए तऽ सुनऽ. पहिले समाजवादी व्यवस्था रहे तऽ चोरी चुप्पे बेईमानी होत रहे अब खुल्लम खुल्ला हो ता. जवन चीज दो रुपिया में बिकाला ओकरा 20 रुपिया में भाड़ा लिहल जाला. ई जान लऽ कि कालाधन अब काला ना रहल. बेईमान धुरंधर लोग ओकरा के सतरंगा बाना दिहल. अब कहीं स्पेक्ट्रम लउके तऽ बूझि जइहऽ कि आस पास केहु घोटाला धुरंधर जरूर बा. जूनियर बेईमानन के इतमीनान से रहे के ब्पात कहि के ताड़ी खाना से जब सीनियर बेईमान अपना घरे पहुंचल तऽ मेहरारू बतवलस कि घर में रेड पर गईल रहे. ऊ एकदम सांत, कहलस कि ई तऽ हमरा महीना भरि पहिले से मालूम रहे एही से आज मीटिंग रखले रहीं. मेहरारू चिड़चिड़ा गइल लेकिन का करो. अंत में बड़ा दुखी हो के पूछलस कि ई ईमानदार लोग अतना ईमानदार काहे होला, लेकिन ऊ बात के उत्तर उनका पतिदेव के लगें ना रहे आ चुप चाप लोटा उठवले आ खेत की ओर चल दिहले.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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1 Comment

  1. प्रभाकर पाण्डेय

    सादर नमस्कार,

    गागर में सागर। संक्षिप्त में बहुत बड़हन मुद्दा के रखि देले बानीं। सादर आभार।

    पर इहाँ हमरा एगो संका बा, अउर इ संका ईमानदार के अउर बेइमान के, ले के बा। काल्हिए के बाति ह, हमार एक जाने सहकर्मी कहने की बाबा, चलिं मुंबई चलल जाव। हम पूछनी की का, कवनो जरूरी काम बा का? त उ कहने की रऊआँ पता ना बा, अरे भाई मुंबई में अन्ना हजारे जी के आगमन बा। हम कहनी की अच्छा ठीक बा पर अबहिन हमरी लगे समय नइखे, फैर कबो सोंचबी त हमार सहकर्मी कहि बइठने अरे महराज, फ्री में चले के बा खाली एगो काम करीं…गाँधी टोपी पहिन लीं अउर कवनो टरेने पर बइठ जाईं अगर कवनो टीटी पूछे त बता दीं की अन्ना हजारे……एकरी बाद उ कहल जारी रखने…अरे कबो-कबो अच्छो काम क लीं…..

    अब हमार त अकिलिए हेरा गइल रहे….त हमरा इ लागल की कहीं भस्टाचार मेटवले में भस्टाचार त नइखे बढ़ावल जात।
    आज की समय में रंगा सियारन के अधिकता बा। हँ ई बात सही बा की कुछ लोग एकदम पाक-साफ बा जइसे अन्ना हजारे पर कुछ लोग एइसन लोगन के नाव की ढाल पर भस्टाचार क रहल बा….हमरा लागता की पहिले अपनी घर के साफ-सुथरा बनावे के जरूरत बा…अगर पहिले हम ईमानदार-बेइमान में अंतर के समझि पाइबि तब्बे बैइमानी पर रोक लगि पाई। सादर।।

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