ऊ दिन दूर नइखे

by | Dec 24, 2013 | 0 comments

jayanti-pandey

– जयंती पांडेय

बाबा लस्टमानंद के घर के सामने तिवारी जी के घर बा. बाबाजी गाय भईंस पोसले बाड़े आ पोता होला के आस में दूध बेच दे तारे. पोती लोग के दूध ना पियइहें. तिवराइन कहेली कि ‘का जाने कहां से ई लछमी जी लोग दउरल-दउरल चल आवऽता लोग.’ तिवराइन पोती आ नाती से उबिया गइल बाड़ी. ई बात अकेले तिवराइन के ना हऽ अपना देस में नाती चाहे पोता भइल राष्ट्रपति भइला के बराबर बा. तिवराइन के बात काऽ अस्सी साल के बुढ़ियो पोता चाहे नाती खातिर भगवान से अउरी उमिर के अप्लीकेशन देत रहेले. अब ई इंतजार में चाहे लइकिन के लाइन काहे ना लाग जाउ. बेटा के माई, दादी चाहे नानी हो के मेहरारू त अइसन इतराली सन कि बुझाला कि मुखियई के एलेक्शन जीत गइली सन. बेटा चाहे पोता के चक्कर में लोग पेटे में बेटिन के मुआ देऽता. अब एकनी के के बतावे कि बेटिया ना रहिहें सन त बेटवा कहां से अइहें सन.

अबहीं हाले में जनसंख्या के आंकड़ा बांच के बाबा लस्टमानंद कहले रामचेला से कि, “हो भाई ,देश में लइकवन से लइकियन के संख्या घटल जा ता. अब जे इहे हाल होई त बियाह-शादी कठिन हो जाई, आ एगो अइसन दिन आई जे लइकी वालन के भाव बढ़ि जाई आ उल्टे लइकिए वाला लगिहें सन दहेज मांगे आ दहेजो दे के बेटन के बियाह ना कर पइबऽ. जान जा रामचेला कि जे असहीं चलल त प्राचीन काल के कथा दोहरावे के पड़ी कि एगो बियाह के खातिर स्वयंवर से ले के युद्ध तक ना जाने कातना पापड़ बेलत रहे लोग. कबो शिव जी धनुष उठावऽ तऽ कबो मछली के आंख में तीर मारऽ ना जाने कातना अधापन करे के परत रहे तब कहीं जा के एगो कनिया भेंटात रहे.

पहिले लइकिन के बारे में का पोजीशन रहे ई तऽ कहीं लिखल नइखे लेकिन आज के जमाना में जब अपना देश में लइकी बहुते कम हो जइहें सन त स्वयंवरों दोसरा तरह के होई. एगो लइकी के बियाह खातिर अखबार-टीवी पर विज्ञापन आयी. हजारों लईका आ जइहें सन. भारी कमपीटीशन होई, हो सकेला आईपीएल के तर्ज पर क्वार्टर फाइनल, सेमीफाइनल आ फाइनल होखो आ जे जीते ओकरे कनियां भेंटाव. जइसे आई आई टी चाहे आई ए एस के कोचिंग होला ओसहीं बियाह के कोचिंग होई आ आइडियल दुलहा कइसे बनीं ओकरा पर किताब लिखल जाई. अइसन दुल्हा बने के गुण सिखावे के खातिर टीवी पर प्रवचन होई. आज जइसे एक-एक लइकिन के दस-दस गो लइका रिजेक्ट करऽ तारे सन ओसही ऊ समय में एगो लइकी दस-दस हजार लइकन के रिजेक्ट कऽ दी. इहे हाल रहल त एक दिन अइसन जरूर आई कि बेटी खातिर लोग तीरथ करी, व्रत करी आ लइका भइला पर गारी दी.

बाबा लस्टमानंद के ई बात तिवराइनो सुनली आ मन में लइकियन के नांव ले के मुसकियात चलि गइली.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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