का हो गइल ई देस के भगवान !

by | Apr 6, 2011 | 0 comments

– जयंती पांडेय

एकदिन एगो नेताजी अपने दुलरुआ बेटा से पूछले – बाबू रे, तें आगे जा के का बने के चाहऽतारऽ ? माने कि जिनिगी में आगे जा के का करे के इरादा बा ?

उनुकर बेटा टप दे कहलसि – बाबूजी, हम त आगा चल के नेता बनब.

नेता ! खिसिया गइलन नेताजी. कहले – रे तोर दिमाग खराब हो गइल बा का ?

बेटा कहलसि – नेता होखे खातिर पागल भइल जरुरी बा का ?

अबही नेताजी कुछ बोलतन कि ओहिजा बइठल नेताजी के मेहरारू कहली – पागले ना, नेता बने खातिर नंगा, लफंगा आ बेढंगा भइल जरुरी बा. एतना कहला का बाद महतारी अपना बेटा से पूछली – आखिर तूं नेता काहे बनल चाहऽतारऽ ?

बेटा कहलसि – जब होस भइल तबसे आज ले देखले बानी कि इहे एगो काम अइसन बा जेहमें ना जियादा पढ़े के पड़ेला आ ना जियादा मेहनत, लेकिन लोग सलाम करेला आ रुपिया झरत रहेला.

माई खिसिया के कहली – का तूं नइखऽ जानत कि हर विभाग में भ्रष्टाचार बढ़ल जात बा आ महँगाई संगे संग बढ़त बा. नेता आ अफसर लगातार भ्रष्ट भइल जा तारे. नेता लोग जनता के दुख कमे करे का जगहा ओकरा के बढ़वले जात बा लोग. बड़का-बड़का अर्थशास्त्री लोग अनर्थशास्त्री जइसन आचरण करत बा लोग. तरह तरह के अपराध में नेता लोग फंसल बा लेकिन तबहुओ केहु में सुधार नइखे आवत. लोग जनता के दुख मेटावे से बेसी आपन कुर्सी बचावे पर ध्यान देत बा लोग.

बेटा ई बात सुनि के कहलसि – माई तूं त कहेलु कि भगवान के मर्जी के बिना एगो पत्ता ना डोलेला. त का एह स्थिति खातिर भगवान जिम्मेदार नइखन ?

माई कहली – बेटा, भगवान ई दुनिया जरुर बनवले. लेकिन ऊ सबका खातिर एगो नियम बनवले. अब जानवरन के देखऽ. गाइ मर जाई पर माँस इत्यादि ना खाई. ओसही शेर जान त्याग दी पर घास ना खाई. जानवर सब त भगवान के बनावल नियम मानेले सन लेकिन एगो आदमिये बा कि ऊ कवनो नियम ना माने. अब जब आपन औलादे नालायक हो जाई त माई-बाप का करी ? छोड़ दी. बस असहीं भगवान सबके छोड़ दिहले. जब अपने वाली करे के बा त करऽ लोगिन आ भुगतऽ लोगिन. लेकिन ई जान ल कि जहिया ई दुनिया बनावे वाला से मुलाकात भइल ओह दिन पूछब कि जवना देश में साधु संत आ महात्मा पैदा लिहल लोग ओही देश में का भइल कि एक से बढ़ के एक घोटालाबाज, भ्रष्टाचारी आ धोखेबाज पैदा लेता लोग ? जे लोग देश के सुनाम का जगहा बदनाम करऽता लोग. हँ जे नेता बनहि के बा त जनता के बीच इज्जत पावे वाला नेता बनऽ.

माई के ई बात सुन के बेटा हँसत दोसरा इयोर चलि गइल.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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