– जयंती पांडेय
बाबा लस्टमानंद कहले रामचेला से कि गाय आ चाय में का फरक बा. फरक तऽ ना बुझाइल बाकी बुड़बक अस मुंह बा के लगले तिकवे एने ओने. फेर सांस ले के कहले कि हमरा तऽ मालूम नइखे लेकि बतकुच्चन वाला बाबू ओम परकास जी से पूछ के बता देब. उहे बात के चाम घींच-घींच ओकर असली चेहरा देखावे ले.
बाबा लस्टमानंद कहले, तूं एक दम बुड़बके हव का. ओतहत आदमी के ई छोट बात के खातिर सांसत में काहे डलबऽ. गाय आ चाय में जवन तुक बा ऊ तऽ देखते बाड़ऽ. ओकरा बाद अपना गांव गिरांव में पहिले हर घर में गाय रहत रहे अब सब घरन में चाय रहऽता. गाय गायब. लेकिन ई बात नइखे कि जवना घर में गाय होई उहां चाय ना होई. लेकिन भेंटाई कि एकर कवनो ठेकाना नईखे. गाय से फायदा रहे चाय से फायदा नईखे लेकिन समय समय के बात हऽ एगो समय गाय के रहे अब समय चाय के बा. हां ई बात बा कि अपना देस में जहां गाय ना रहीं उहों चाय मिल जाई, जोगाड़ दूध से. एक दम दकदक उज्जर. चाय के सोर्स गांव से लेके शहर ले बा. कातना जगहि तऽ चाय चाह बन जाला आ चाह ना मिलला पर कातना लोगन के आह निकल जाला. आज लक्ष्कन के ना माई के दूध मिलऽता ना गाय के. एही से लक्ष्कनो में चाय भी मशहूर होत जाऽता. कई तरह के चाय यानी टी चलन में बा. जइसे डे टी, नाइट टी, मोर्निंग टी, नून टी, आफ्टर नून टी, इवनिंग टी. एकरा अलावा बीएम टी (बिफोर मील टी), एएम टी (आफ्टर मील टी), बेड टी, टॉयलेट टी, बाथरूम टी आदि. पीये वाला पियते बा. कहां ले बताईं कुछ लोग एक बेर पीयेला. कुछ लोग दू बेर आउर कुछ लोग बेर-बेर पीयेला. कुछ लोग असहुं बा जेकरा चाय नुकसान करेला. नुकसान भले करो लेकिन पीयेला जरूर . भले बे दूध के चाहे बे चीनी के चाहे नून मिलाके पिए. कुछ लोग साधारण तऽ कुछ लोग असाधारण माने स्पेशल पीयेला. कुछ लोग देखके, कुछ लोग देखाके अक कुछ लोग लुका के तऽ कुछ लोग लुकवा के भी पीयेला. चाहे जे कहऽ कुछ लोग चाय भी के बरबाद हो गईल तऽ कुछ लोग पिया के बन गईल. ई चाय के महातम रामचेला तूं अपना मन में बइठा लऽ आ तब चाय पीअऽ.
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
कातना जगहि तऽ चाय चाह बन जाला आ चाह ना मिलला पर कातना लोगन के आह निकल जाला. एकदम सही कहनीं रउआँ। सादर।।
कुछ लोग देखके, कुछ लोग देखाके अक कुछ लोग लुका के तऽ कुछ लोग लुकवा के भी पीयेला. चाहे जे कहऽ कुछ लोग चाय भी के बरबाद हो गईल तऽ कुछ लोग पिया के बन गईल. लाख रुपया के बाति।