– जयंती पांडेय
बाबा लस्टमानंद आ रामचेला सड़क के जरिए बंगाल से अपना गाँवे लवटत रहे लोग. रस्ता में एक जगह लेंग्चा पंतुआ के दोकान रहे. ओहिजा लेंग्चा के नांव से न जाने कतना दोकान रहे. कवनो लेंग्चा महल, त कवनो लेंग्चा पैलेस, त कवनो लेंग्चा … ओहिजा के हालत देख के त ई बुझात रहे कि कवनो दिन ई जगह लेंग्चा टूरिस्ट पाइंट के नांव से मशहूर हो जाई. खाली लेंग्चे ना, झाझा स्टेशन से ट्रेन में चढ़ेवाला “खराब से खराब चाय” के एगो अलग रेला बा. कानपुर के ठग्गू के लड्डू त खैर सुपरफेमस बा अरसा से. अमिताभ भाई के बंटी और बबली फिलिम में त इज्जत से ई लड्डू लउकल.
ठग्गू फग्गू जइसन नांव सफल होला. ई त अच्छा खबर ह कि खराब, तनी सोचीं. अस्पताल वाला भाई लोग ई रूल फॉलो करे लागे त हो सकेला कि काल्हु कवनो अस्पताल कातिल अस्पताल, हत्यारा क्लीनिक लउक जाउ. स्कूल आपन नांव राखऽ सन शातिर विद्यालय, चालू स्कूल, तस्कर महाविद्यालय. हो सकेला कि कुछ माई बाप ई नांव पसंद करे, चालू, शातिर जमाना ह नया चाल के स्कूल चाहीं.
एही तर्ज पर रेलगाड़ी सब के नांव हो सकेला. हो सकेला कि नांव हो जाय, मौत के पहिए, दौड़ती मौत, सीटी बजाते चुड़ैल टाइप. अभी कोलकाता शहर में मुर्दा ढोए वाला गाड़ी पर “स्वर्गीय वाहन” लिखल लउकल रहे. रामचेला कहले अभी एगो बस देखनी, कॉलेज के बस रहे आ बड़ा धीरे चले त लईका ओकर नांव ध देले रहले सन “पवन एक्सप्रेस”. बहुत पहिले एगो स्कूटर पर लिखल देखले रहनी, दहेज दानव. स्कूटरधारी के ऊ स्कूटर दहेज में मिलल रहे. यार लोग ओह पर नांव लिखवा देले रहे दहेज दानव. स्कूटर पूरा इलाका में फेमस हो गइल रहे. दहेज दानव के शहर भर के ट्रैफिक हवलदार छोड़त पकड़त ना रहे. बाद में देखा देखी बहुते दहेज दानव स्कूटर शहर में चले लगली सन. दहेज दानव एक तरह से प्रोटेक्शन बन गइल ट्रैफिक हवलदारन से. एगो ट्रक के नाम रहे चालबाज शेरनी. शेरनी त पढ़ल लिखल ना होली सन. ना त ऊ विकराल ट्रक के बदसूरती देख के आत्महत्या कर लेती सन. जवन एयरलाइंस में महीना महीना वेतन ना मिले, ओह कंपनी के जहाजन के नांव हो जाइत फकीर का उड़न खटोला, भगवान के नाम पर, बेगार यान वगैरह.
कोलकाता शहर में एगो आदमी बाड़े. उनकर बाबूजी उनकर नांव रखले बलेसर बाबू. बदल के हो गइल बोका बाबू. बोका बाबू के सोना के दोकान.
जमाना बदल रहल बा. पब्लिक के डिफरेंट नांव निमन लागेला. कहीं अइसन ना होखो कि ई देश के नांवो बदल दिहल जाउ. नया नाम होई ठग्गू गणराज्य.
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
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