– जयंती पांडेय
आज सबसे ज्यादा चर्चा दू बात के बा. पहिलका एफ डी आई आ दोसरका अण्णा चाचा के पार्टी में अलगा बिलगी. ई तऽ सबे जानत रहे कि करप्शन के ई मारामारी ना चली तबो करप्शन के नांव पर बड़ा हल्ला रहे. ई हल्ला उहे लोग मचवले रहे , जेकरा करप्ट होखे के मौका ना मिलल. जसहीं मौका मिलल, ऊ आपन ओठ सी लिहलस. ई रीति जमाना से चलि आ रहल बिया. लोग भ्रष्टाचार के विरोध करत समय ई ताक में लागल रहेला कि उनका कब मलाई के परमानेंट सोर्स मिल जाई. अइसन होतहीं ऊ लोग भ्रष्टाचरियन के जमात में शामिल हो जाई. देश में भ्रष्टाचारी लोगन के संख्या एही से बड़ रहल बा आ बढ़त रही. कुछ लोग तऽ करप्शन के विरोध एह से कर रहल बा कि चर्चा में आ जाईं. ऊ भ्रष्टाचार के संस्कृति के मुखालिफ हऽ लोग. आ कहीं जे अगर उनकरा से करप्शन कुछ बोले के कह दिहल जाउ तऽ एकतरफा बातियाई लोग. ओकरा गहराई में ना जाई लोग. खुद चाहें केतनो भ्रष्ट चाहे दुराचारी काहे ना बने के चाहे लोग लेकिन भ्रष्टाचार के गरिअवले बिना उनका अंघी ना आवे. ई बौद्धिक बेईमानी ना तऽ आउर का हऽ?
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
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