नेतवो बिला जइहें लोग त देस में बांची का?

by | Jul 31, 2012 | 0 comments

– जयंती पांडेय

सबेरे सबेरे रामचेला बाबा लस्टमानंद के दुअरा अइले आ लगले गादे करे. बाबा अचकचा के उठले, का हो का अतना प्राण तेयगले बाड़ऽ? सब ठीक बा नऽ? का ठीक बा बाबा, तूं त भईंस बेचि के सुतल बाड़ऽ, देस दुनिया के कवनो फिकिर कहाँ बा.

अरे भईल का? बतइबो करबऽ कि बस खाली चिचिआत रहबऽ.

अरे का बताईं बाबा? चारू ओर आंदोलन चल रहल बा. केहु महंगी से परेशान बा त केहु भ्रष्टाचार से हरान. केहु पेट्रोल के दाम बढ़ला से पसेने पसेने त केहु लइकिन के प्रति अपराधन से. जेने देखऽ अशांति बा. आंदोलन चल रहल बा, कवन कवन नेता एह में लागल बाड़े. एक इयोर जेकर गर्दन काटऽता लोग दोसरा ओर ओही के समर्थन में नारेबाजी करऽता लोग.

अब जान जा रामचेला कि नेता आ जनता में सद्गति आ दुर्गति के पुरान परम्परा ह. नेता एलेक्शन लड़ेलें, जनता वोट देले, नेता भाषण देला, जनता ताली बजावेले, नेता झूठ आश्वासन देला जनता ओकरा पर भरोसा करे ले. नेता कुकर्म करेला, जनता फल भोगेले. नेता भारत बंद करावेला, जनता पेट दाब ले ले. नेता गरीबी हटावल चाहे ला, जनता गरीबी के पिंड ना छोड़े ले. साँच त ई बा कि देश में पेट्रोल के जगहा जनता जरऽतिया.

अपना बात से त तूं सीरियस कन्फ्यूजन पैदा कए दिहलऽ. तहरा कहे के माने ई बा कि ई जे बाबा राम देव, ऊ केजरीवाल साहेब, चाहे किरण दीदी जवन करऽता लोग ओकरा से कवनो फायदा नइखे का?

काश अइसन होइत. ऐह में त नेता बा लोग लेकिन केहु अइसन नइखे जे जनता खातिर लाठी खा सको. इहां त हाल ई बा कि लाठी के भय से लोग मेहरारुन के कपड़ा पहिर के भागऽता. ओतना आंदोलन भइल ओह में तूं ही बताव केहु के खरोंच ले लागल?

ई जान जा कि अबसे पहिले आंदोलन नेता के हाथ में रहत रहे अब नेता लोग आंदोलन के हाथ में बा.

तूं त अईसन भूमिका बान्हऽतारऽ, लेकिन ई बतावऽ कि करप्शन आ महंगाई खातिर के जिम्मेदार बा?

ई बात ठीक कहलऽ. करप्शन खातिर त सांचो सरकार जिम्मेदार ह लेकिन महंगी के मामला ओकरा पर ना ठोकाई.

काहे ना ठोकाई, अगर मनमोहन सिंह दोषी ना रहते त एकरा बारे में कुछ बोलते ना.

कइसे बोलिहें? उ कहाउत सुनले बाड़ऽ कि ना कि जवना डाली पर बइठल जाला ओह डार के काटल ना जाला, चाहे जवना थरिया में खाइल जाला ओह में छेद ना कइल जाला.

तब ई बतावऽ कि मंहगी आ भ्रष्टाचार असहीं रही, केहु दूर ना करी?

सांचो रामचेला तूं बुद्धि से एक दम गोल बाड़ऽ, पूरा बकलोल बाड़ऽ. अरे अगर ई दूर हो जाई त नेता के का होई। नेता प्रजाती पर जुलुम काहे करऽतारऽ? अबहीं त बाघे विलुप्त हो रहल बाड़े सन, नेतवो बिला जइहें लोग त देस में बांची का?


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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