नेता बने के सोचले छोड़ दिहले रामचेला

by | Oct 9, 2011 | 3 comments

– जयंती पांडेय

जबसे तरह तरह के घोटाला के केस में नेता लोग दनादन जेल जाये लागल तबसे रामचेला बड़ा मायूस हो गइले. मुँह सड़ल आम अस बना लिहले आ चेहरा ओल अस लटका लिहले. बाबा लस्टमानंद के बड़ा माया लागल. लगे जा के पूछले, का हो रामचेला, बड़ा उदास लागऽतारऽ ?

रामचेला कहले, जान जा बाबा तहरा से कहऽतानी, अब हम कवनो आईडिया पर काम ना करब. एक दमे रिटायर ले लेब.

बाबा चउँकले, अरे रिटायर लेबे के कवन बाति बा, तूं नोकरिये कब कइलऽ ?

रामचेला गरमा गइले. कहले, बाबा सोच समुझ के बोलऽ. आईडिया सोचल आ ओह पर काम कइल का काम ना हऽ ? अब हम ओहू पर काम ना करब.

बाबा पूछले, कवन आईडिया रहे हो ?

सोचत रहीं कि नेता बन जाईं. कमाई के सोता फूटि जाई आ बाकी जिनिगी चैन से काट लेब. लेकिन घोटाला के नतीजा देखि के सब कुछ तियाग देवे के मन करत बा.

अरे भाई, राजनीति में त ई सब चलत रहेला, एह में मायूस ना होखे के चाहीं. आ मैदान में कतना बूढ़ बूढ़ नेता लोग जमल बा, कई लोग जेलो में बा. त ऊ लोग के कवनो फिकिर नइखे आ तूं त ऊ लोग से नया बाड़ऽ. तनि मुड़िया में के बार पाकल बा आ बाकी जवन बार बा से पाके खातिर लालायित बा. अउर तोहरा में कवन कमी बा ?

रामचेला उदास हो गइले. कहले, बाबा इहे तहरा मे एगो कमी बा, तूं हमेसा गलत समय पर गलत बात बोले लऽ. इहां बात नया जवान आ बूढ़ के नइखे. बात बा जनता के. ई जे जनता बिया नू ओकर कवन ठेकान. दक्खिन में देखऽ ए॰ राजा के का हाल हो गइल. अपने त गइबे कइले, करुणा चाचा के बेटियो के जाये के पड़ल. ऊ लोग के सब कइल धइल चउपट हो गइल.

बाबा कहले, त तूं इमानदारी से काम करीहऽ.

का कहलऽ बाबा ? ई उमिर में हम काम करब. सोचनी कि नेता बन जायेब, पइसा आ पावर दुनु रही. तनी एश क लेब, विदेश घूमि लेब. लेकिन ई सब सपना खतम हो गइल. बुझात बा कि भगवान बे बिदेशे गइले हमरा के उठा लीहें.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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3 Comments

  1. चंदन कुमार मिश्र

    लिखत समय हल्का रंग लउकता, ओकरे बारे में कहनी ह। अब मुख्य पन्नवा त बन्हिआ लागता। रंग हरिअर से बदल बदल के देखीं, जइसे भूअर, बुलू आदि। अँजोरिया हमरा ब्लाग के डैशबोर्ड पर लउकेला, ऊँहाँ से सीधे नाया लेख पर आ जानी। बाकिर पता ना चली के का लिखल। एकर कवनो खास जरूरत नइखे। बाकिर ठीक लागेला। वर्डप्रेस ब्लाग बा हमार, ओमें भाषा बदलला से कवनो असर ना पड़ी, हमरा खयाल से। एक बेर बदल के प्रिभिऊ देखल जा सकेला। …धन्यवाद रउरा के जे हमरा बात पर ध्यान देतानी।

  2. OP_Singh

    चंदन जी,
    अक्षर के रंग त उहे बा जवन बाकी हिस्सा मे बा.

    अंगरेजी के कम प्रयोग का बारे में मजबूरी बा. साफ्टवेयर वर्ड प्रेस के अंगरेजी में बा एहसे अंगरेजी त लउकीहें के बा. ओकरा के हिन्दी भा भोजपुरी करे का फेर में कहीं सगरी बाते मत बिगड़ जाव एकर डर लागेला.

    तिसरकी बात ई कि दाहिना तरफ वाला कॉलम अकेला लेख से हटा दिहल गइल बा. मुख्य पृष्ठ पर अबहियो मौजूद बा. एकर मकसद बस अतने बा कि पन्ना खुले में कम से कम समय लागे.

    राउर
    ओम

  3. चंदन कुमार मिश्र

    खयाल ठीके बा…

    हँ, सम्पादक जी, टिप्पणी के अक्छर के रंग, अंग्रेजी के कम प्रयोग आ बगल में दहिने टिप्पणी लउकत रहल हS, तवनो पर ध्यान दीं।

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