– जयंती पांडेय
रामचेला आ के बतवले कि अरे, सुनलऽ हऽ बाबा, ओने घनश्याम चाचा के घर में महाभारत मचल बा. ना जाने अंगरेजी के कवना टीवी चैनल के परोगराम में जा के ना जाने का कहि दिहले बाड़े कि उनका घर में महाभारत हो गइल बा. चाचा के पचासी बरिस के महतारी फरला चिल्लात बाड़ी आ मेहरी फरका लूघा खूँटले खाड़ा बिया कि जबे किरिया खइहें बरहम बाबा के तबे जाये देब. बाबा तूं त चाचा के घरे जालऽ कुछ मालूम बा कि का भइल बा?
बाबा कहलें, रामचेला तोहार सुभाव मेहरारुन के होत जा ता. दोसरा के घर के घरकच जनला के कवन दरकार बा। घनश्याम चाचा के घरे कवनो खास बात नइखे. तूं त जानते बाड़ऽ कि ऊ विदेश सेवा से रिटायर कइले बाड़े आ धकाधक अंग्रेजी बोले ले. अब बात ई भइल बा कि हिंदी त इज्जत करे वाली भाषा ह, हिंदी में त बिसकुटो के जी कहल जाला जइसे पारले जी. लेकिन अगरेजी पानी उतार भाषा ह. अब टीवी पर काका इस्पेसलिस्ट बन के जाले. उहाँ त जवान लइकियो उनुका के घन कहेली सँ. अब काका के महतारी देखली त उनका बड़ा बेजांय लागल कि हई देखऽ, काल्हु के जामल लइकी हमरा साठ बरिस के घनश्याम के घन, घन कहि के घनघना देत बाड़ी सँ. अब जब काका अइले त बुढ़ियो पुछली कि ए बबुआ, ई लइकिया तहरा के घन काहे कहत रहली सन? काका हँसि के कहले, माई ऊ प्यार से कहेली सँ.
अब महतारी त गरमा गइली, ई कवन प्यार ह, मुँहझौंसिन के आपन उमिर ना देखे के चाहीं. ओने मलिकाइन सुन लिहली आ जामा से बाहर हो गइली, कहली इनकर ई उमिर में प्यार चढ़ऽता, जस जस बुढ़ातारे वइसे बिगड़ा भइल जातारें. अब काका का कहस. ओने मेहरारू त अड़ गइली, काल्हु से टीवी फीवी पर नइखे जाए के.
अब घनश्याम चाचा कहले कि का कहीं अंगरेजी टीवी पर गइला से पइसा बहुत भेंटाला. अब इजतिया त लउके ना, पर पइसवा त लउकेला. अब जवन चीज ना लउके ओकरा खातिर काहे के त्याग आ जवन लउके ला ओकरा के त्यागे के का बा. आज काल के लइका लइकी त इज्जत के मामला में ज्यादा हुसियार बाड़े सँ. कहे ले सन कि इज्जत देब त इज्जत पइब ना त कवनो गरज नइखे.
बाबा उनका से पुछलें कि कइसे मैनेज कइलऽ त घनश्याम जी बतवले कि मलिकाइन से कहनी कि टीवी वाला जवन लक्ष्मीनारायण दीहऽसन सब तहरा के दे देब. अब श्रीमती जी इज्जत के लेके कवनो टेंशन में नइखी.
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
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