बड़ा पुरान ह ई ट्रांसफर के धंधा

– जयंती पांडेय

यूपी में अफसरन के लगातार बदली माने ट्रांसफर के खबर से उबियाइल रामचेला लगले कहे बाबा लस्टमानंद से कि, हो बाबा ! ई ट्रांसफरन के खबर सुनि के मन आजिज आ गइल बा. जइसही केहू से जान पहिचान भइल कि ओकर बदली हो जा ता. बाबा कहले, हो रामचेला ! ई ट्रांसफर के एगो उद्योग ह आ पुरनका जमाना से चलल आवऽता. वइसे आदमी जनम से ट्रांसफर प्राणी ह. अस्पताल से घरे ट्रांसफर, घरे से स्कूले ट्रांसफर, उहाँ से कालेज आ तब नोकरी चाकरी. मुगल काल में त ट्रांसफर षडयंत्र के रूप रहे. जे सिपहसालार के टाइट करे के होखो त ओकरा चार गो सिपाही दे के कवनो राजा से लड़े खातिर डेपुटेशन पर भेज दियात रहे. उहाँ से ऊ घाही हो के आवे तब सब बात खतम आ मरा गइल त स्वर्ग में ट्रांसफर. अंगरेजन के राज आइल त ई कला षडयंत्र का बदले सजाय हो गइल. जे अफसर के सजाय देबे के बा ओकरा कहीं कुजगहा ट्रांसफर क द. जन से सुराज आइल तबसे ऊ सजाय का साथे साथ कमाई के साधनो बन गइल. ई अइसन धंधा हो गइल बा कि दूनो लोग कमाये ला. माने जे ट्रांसफर करे वाला बा उहो कमाला आ जेकर ट्रांसफर भइल उहो कमाला. जइसे अंडा से बच्चा निकलेला ओसही मंत्री के नोटशीट जेह में ट्रांसफर के आदेश होला ओह में से रुपिया निकलेला. सब सरकारी आफिसन में कार्मिक चाहे स्थापना विभाग होला, जेकरा में बइठल बाबू के लगे सब स्टाफन के बारे में पूरा जानकारी होला. ओकरा मालूम रहेला कि केकर लइका पढ़ऽता आ केकर मेहरारू नौकरी करऽतिया. बस ओकरा के टाइट करे खातिर ओकर ट्रांसफर आर्डर निकाल दिहले. अब ट्रांसफरित प्राणी के आर्डर देख के मूर्छा आ जाला. अब लागेला दउरे. आफिसे के केहू भेंटाला आ रुपिया तय होला. अब ऊ आ के रुपिया दीहें त आर्डर रद्द. हर आफिसन में ट्रांसफर के एगो सीजन होला. एही से जइसे चीनी सीजनल उद्योग होला ओसहीं ट्रांसफर सिजनल उद्योग ह. अब आगे एकर कवन स्वरूप होई ई त भगवाने जानस. एतना कहि के बाबा लस्टमानंद मुँह में सुर्ती दबा लिहले आ चल भइले.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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