– जयंती पांडेय

गुरू लस्टमानंद मार मईल कुर्ता धोती अपना बेग में से निकाल के बिगत रहले साफ करेके. अतने में राम चेला अइले. दंडवत क के पूछले, का हो बाबा कई दिन से ना लउकलऽ? कहां चल गइल रहलऽ? बाबा कहले, दिल्ली गइल रहीं. राम चेला के चेहरा पर सवाल रहे जेकर माने कि काहे के? कहले भ्रष्टाचार पर एगो बहस रहे. गंवई भ्रष्टाचार मुख्य विषय रहे. अब ऊ त अरविंद भइया बोलवले रहले आ सरकार के गोस्सा के खतरा रहे एही से कवनो चैनली पत्रकार त आइल ना. हार पाछ के हमनी के बोलावल लोग. ओहिजा का बताईं कि चारू ओर से भ्रष्टाचार के प्रतिनिधि लोग आइल रहे. झारखंड से लगवले उत्तराखंड ले आ बंगाल से लिहले बनारस ले. सब ओर से भ्रष्टाचार के हिमायती लोग. उहां सेमिनार के आयोजक कहले कि विचार के विषय बा कि, मीडिया में भ्रष्टाचार के बड़ा बदनामी हो रहल बा. ई बदनामी हटावे खातिर कुछ करे के चाहीं. सब तरह आ वेराइटी के भ्रष्टाचारी लोग के राय भइल कि मीडिया में सबके बात आवे ला. कबो भ्रष्टाचार के आपन पीड़ा केहु ना कहल. एगो भ्रष्टाचार के आपन नजरिया से सम्बद्ध लेख तैयार कइल जाउ आ मीडिया के दिहल जाउ. सब लोग तइयार हो गइल. एह में सबसे बड़हन बात ई बा कि सब बहस इमानदारी के नजरिया से होला. बेइमानी के एंगल से केहु ना देखे. आखिर ओकरो बात त सुने के चाहीं. मीडिया चाहे केजरीवाल कहेले कि भ्रष्टाचार बड़ा खराब चीज हऽ, एकरा से दूर रहे के चाहीं. लेकिन हमरा रात में अचानक विचार आइल. बुझाता कि सपना देखऽतानी. केहु एकदम संन्यासी वेश में बा आ कहऽता कि भले अबही भ्रष्टाचार थोड़िका कमजोर पड़ गइल बा, सब लोग कहऽता कि एकरा मेटा के रहब. लेकिन केहु ई नइखे पूछत कि ओकर आपन नजरिया का बा.

भ्रष्टाचार के बड़ा फायदा बा. सबसे बड़हन बात बा कि एह से विकास के गति तेज हो जाला. दोसरका फायदा बा कि भ्रष्ट आदमी सुस्त ना हो सकेला. जब देखऽ तब जोगाड़ में लागल रहेला. कबहु शांति से ना बइठ सके. कुछ करे के चक्कर आ ओकरा बाद जवन क देहलस ओकरा के बचावे के आ खुद बांचे के चक्कर में रहेला. इहे ना, भ्रष्टाचार से डबल विकास होला. जइसे मान ल कि कहीं एगो पुल बनऽता. अब इमानदारी से त पुल बनी, लेकिन भ्रष्टाचार से एगो पुल बनी आ ओही में से थोड़े सीमिंट, छड़ , पइसा वगैरह निकाल के कहीं एगो बंगला बनि जाई. अरे बंगला मान ल अपने बनल लेकिन विकास त भइल न? एगो बजट में पुलो बन गइल आ बंगलो. एतने ना इमानदारी से रोजगार मिलेला आ भ्रष्टाचार रोजगार के संभावना बढ़ावे ला. अब मान लù कि एगो रोड बनù ता. ओह से एक बेर कुछ लोग के रोजगार मिल गइल. अब भ्रष्टाचार का करी कि ओह रोड के अइसन बनाई कि तीने महीना में टूट जाई. अब ओकरा मरम्मत के खातिर कुछ लोग के रोजगार मिल जाई. ओकर बजट आयी त फेर कवनो घर बन जाई चाहे गाड़ी किना जाई आ फेर तीन महीना के बाद सड़क टूट जाई त फेर इहे चालू हो जाई. रोजगार आ आमदनी के प्रचुर इंतजाम एगो सड़क से. एगो कहानी बा कि एगो प्रखंड में एक हाली एक जाना अफसर अइले. उनका कुछ पईसा के दरकार रहे. अब जान जा कि ऊ साहेब सरकार के लगे लिखले कि फलनवां गांव जे पोखरा बन जाइत त खेती में बड़ा मदद मिलित. सरकार से पइसा आ गइल आ साहेब चांपि लिहले. जब उनकर बदली भइल त दोसर साहेब अइले ऊ फाइल में पोखरा देखले लेकिन ऊ कतहुं जमीन पर ना रहे. ऊ बात बूझि गइले. अब चोर चोर मउसिआउत भाई! ऊ दन दे सरकार के लिखले कि गांव के बीच में पोखरा से मलेरिया डेंगू कई गो रोग फइलत बा आ एकरा से जवन कष्ट हो रहल बा ऊ पोखरा के फायदा से कहीं जियादा बा एही से व्यापक हित देखि के पोखरा भठवा दिहल जाय. सरकार से ग्रांट आ गइल आ फाइल पर खोनाइल पोखरा फाइले में भठा दिहल गइल.

हँ कुछ लोग कहेला कि भ्रष्टाचार चुपे चोरी होला. अरे भाई अतना चुपे चोरी होइत त अतना खबर कइसे फइलित? एह से मीडिया से निवेदन बा कि ऊ भ्रष्टाचार के पाछ छोड़ देऊ.

आपन भाषण खतम क के जब लस्टमानंद सांस लेहले तले ठीकदार साहेब उनका के फरका बोला ले गइले. का जाने का बात रहे ?


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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