मूस के सीख आ शेर के तमेचा

by | Sep 27, 2010 | 0 comments

– जयंती पांडेय

ई जान जा भाई, मूस चाहे जवना पार्टी में होखो बाकिर सलाह दिहला से बाज ना आवे. ऊ अपने चाहे जवन करऽ सन बाकिर ई ना चहिहें सन कि लोगो ऊहे करो. अइसने एगो मूस जंगल में भाषण ना दे के सलाह दिहला के सरकारी मिशन पर निकलल रहे. जइसहीं गोड़ आगे बढ़वलस ओकरा मन में आइल, ई सारे! चीता अपना के बड़ा चालाक बूझेला. आज चलीं ओही के सलाह दे आईं. जब मूस चीता के लगे पहुंचल तऽ ऊ जंगल के थाना से मिलल गांजा के दम लगावत रहे. चूहा बूझलसि, एकरा से निमन मौका ना भेंटाई. एकदम अकेले बइठल बा. ओकरा के सलाह देवे वाला केहू ओहिजा नईखे.

ऊ चट दे चीता के पास पहुंचल आ कहलस, ए भाई ई बाड़ा खराब लत धइले बाड़ऽ. एकरा के छोड़ऽ आ हमरा संगे चलऽ जंगल में. तोहरा के देखाईं कि हमार पार्टी जंगल में का का बना दिहले बा. मूस अपना पार्टी के सब काम गिना दिहलस. जेतना उपलब्धि रहे सगरी बता दिहलस.

चीता मूस के बात से बड़ा प्रभावित भइल आ कहलसि कि, तू मूस भाई, जंगल सुधार के काम में लागल बाड़ऽ. चलऽ तहरा संगे चलीं आ देखीं कि कतना काम भइल बा. चीता मूस के संगे चल दिहलस.

आगे गइला पर हाथी भेंटाइल. ऊ तऽ हीरोइन पीये में लागल रहे. मूस ओहू के उहे बात कहलसि जवन चीता के कहले रहे. हाथी कहलस – हँ, ई तऽ ठीके कहऽ तारऽ. ई सब खराब काम तऽ हइये हऽ. हमहूं सुनले बानी कि जंगल के ठेका पर सुंदर बना दिहल गइल बा. चलऽ तहरा संगे हमहूं जंगल देखि आईं. ई कहि के हथियो मूस के पाछा चल दिहलसि. अब ओह मूस के पाछा चीता आ हाथी रहे. कुछ दूर गइला पर मूस देखलस कि एगो शेर बइठल पाउच पीयत रहे. मूस डेरात- डेरात शेर के लगे पहुंचल आ कहलसि कि ई दारू पी के आपन आंत काहे खराब करे पर तुलल बाड़ऽ ? आवऽ हमरा संगे चलऽ आ देखऽ कि ई जंगल पहिले से केतना ज्यादा सुंदर भऽ गइल बा.

मूस के बात सुनते शेर खीसि लाल हो गइल आ तड़ से एक तमेचा मूस के दे दिहलस. चीता आ हाथी कहले सन कि – भाई, एकरा के काहे मरलऽ हऽ ? ई तऽ निमने बात कहत रहे.

शेर कहलसि, एकर जान ना लिहनी हॅ, ईहे कम बात बा. हाथी पूछलसि कि, आखिर बात का हऽ ? शेर तब बतवलसि, पछिलका हाली जब ई सरवा अफीम खा के आइल रहे तऽ हमरा के असहीं अवांट बवांट पढ़ा के सगरो जंगल घुमावत रह गइल दिन भर. आ आजु फेर हमरा के बुड़बक बनावे चलि आइल ससुरा. एतना कहत शेर आपन बोतल लिहले चल गइल फेरु घूंट लगावे.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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